भारत में नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) द्वारा पंजीकृत उड़ान प्रशिक्षण संगठनों (एफटीओ) की पहली रैंकिंग एक स्पष्ट एवं व्यावहारिक संदेश देती है। इनमें कोई भी संगठन या प्रशिक्षण केंद्र विमानन नियामक की शीर्ष दो श्रेणियों ‘ ए प्लस’ और ‘ए’ में जगह नहीं बना पाया है। 22 संगठनों को ‘बी’ रैंकिंग और 13 को ‘सी’ रैंकिंग दी गई है। अधिक स्पष्ट शब्दों में कहें तो भारत के अधिकांश एफटीओ ‘औसत’या ‘औसत से ऊपर’ हैं। ‘बी’ रैंकिंग 70 प्रतिशत और 50 प्रतिशत के बीच अंक (स्कोर) दर्शाती है और बताती है कि केवल कुछ ही एफटीओ शीर्ष समूह में शामिल हैं। ‘सी’ श्रेणी में आए एफटीओ को ‘आत्म-विश्लेषण और सुधार’ के लिए नोटिस जारी किए गए हैं और वे डीजीसीए की जांच के दायरे में भी आ सकते हैं।
सरकार से समर्थन प्राप्त प्रायोजित एफटीओ रैंकिंग में काफी नीचे हैं। एफटीओ हर साल 800 से 1,000 वाणिज्यिक-पायलट लाइसेंस धारकों को स्नातक की उपाधि देते हैं लेकिन यह संख्या बढ़ने की उम्मीद है। घरेलू एफटीओ के औसत एवं इससे थोड़े अधिक प्रदर्शन की रैंकिंग ऐसे समय में आई है जब पायलटों की मांग काफी बढ़ रही है। अनुमान है कि अगले 15 वर्षों में पायलटों की संख्या मौजूदा कार्यरत 6,000 -7,000 से बढ़कर 30,000 तक पहुंच सकती है। इसका कारण यह है कि प्रमुख भारतीय विमानन कंपनियां नए विमानों के लिए भारी भरकम ऑर्डर दे रही हैं।
डीजीसीए ने रैंकिंग तय करने के लिए जो मानदंड लागू किए हैं। उन पर गहराई से विश्लेषण करें तो स्थिति काफी चिंताजनक लगती है। यह विश्लेषण बताता है कि मुख्य समस्या प्रशिक्षण संबंधित आवश्यक ढांचे की कमी और अपेक्षाकृत ढीले सुरक्षा मानकों से जुड़ी है। रैंकिंग तय करने में इन दोनों पहलुओं का भारांश 60 प्रतिशत है। उदाहरण के लिए नियामक ‘परिचालन से जुड़े विषयों पहलुओं’ को 40 प्रतिशत यानी सबसे अधिक भारांश देता है जिसमें छात्र-विमान अनुपात, छात्र- अनुदेशक अनुपात, बेड़े का आकार और ग्राउंड स्कूल और सिम्युलेटर की उपलब्धता जैसे मानदंड शामिल हैं। सुरक्षा मानकों का भारांक 20 प्रतिशत है और इनमें पिछले 12 महीनों में दुर्घटनाओं एवं घटनाओं की संख्या शामिल है।
इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ये पाठ्यक्रम सस्ते नहीं हैं। उदाहरण के लिए नागरिक उड्डयन मंत्रालय के तहत काम करने वाली इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकादमी वाणिज्यिक पायलट के लाइसेंस के लिए 30 लाख रुपये अग्रिम फीस ले लेती है (जिसमें 200 घंटे की उड़ान शामिल है)। डीजीसीए ने इस अकादमी को ‘सी ‘ रेटिंग दी है। इस फीस में ‘टाइप रेटिंग’ शामिल नहीं है, जो पायलटों को विशिष्ट विमान उड़ान के लिए अनिवार्य रूप से हासिल करनी होती है।
इस तरह, पाठ्यक्रम का खर्च 15-20 लाख रुपये बढ़ जाता है। कुल मिलाकर, एक प्रशिक्षु पायलट के लिए 40-60 लाख रुपये खर्च आता है। जो लोग दूसरे विकल्प तलाश रहे हैं वे विमानन कंपनियों द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम (डीजीसीए रेटिंग प्राप्त नहीं) चुन सकते हैं, लेकिन ये अच्छी गुणवत्ता के बावजूद अधिक महंगे हो सकते हैं यानी फीस 1 करोड़ रुपये तक पहुंच सकती है।
चिंता की दूसरी बात यह है कि पायलट प्रशिक्षण पर यह भारी खर्च (जिस पर परिवार अक्सर अपनी बचत का बड़ा हिस्सा खर्च करते हैं) नौकरी की गारंटी नहीं देता है क्योंकि भारतीय विमानन उद्योग में अनुभवी पायलटों को अधिक तवज्जो दी जाती है, न कि नए प्रशिक्षित पायलटों की।
इस तरह की पहली रैंकिंग में निकल कर आए तथ्यों के बाद डीजीसीए ने उन सैकड़ों युवा महिलाओं और पुरुषों को एक महत्त्वपूर्ण संदेश दिया है जो तेजी से बढ़ते भारतीय विमानन उद्योग में उड़ान भरने की आकांक्षा रखते हैं। यह रैंकिंग से जुड़ी कवायद वर्ष में दो बार 1 अप्रैल और 1 अक्टूबर को आयोजित की जाएगी जिससे एफटीओ अपनी तरफ से कोई अनुचित कार्य व्यवहार नहीं कर पाएंगे।
नियामक के लिए सभी संस्थागत रैंकिंग में निहित महत्त्वपूर्ण चुनौती सार्थक जांच के साथ प्रणाली की विश्वसनीयता बनाए रखनी है ताकि यह पूरी कवायद केवल दिखावे एवं हल्की-फुल्की औपचारिकताएं निभाने तक सिमट कर नहीं रह जाए। तेजी से भीड़भाड़ वाले भारतीय विमानन उद्योग में गहन जांच एवं समीक्षा की जरूरत है।