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Editorial: परमाणु ऊर्जा भारत की आर्थिक वृद्धि में हो सकती है सहायक, निजी क्षेत्र का सहयोग स्वागत योग्य कदम

केंद्र सरकार ने परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी भागीदारी को मंजूरी देकर 2047 तक 100 गीगावॉट उत्पादन का लक्ष्य तय किया और यूरेनियम खनन से ऊर्जा सुरक्षा को नई दिशा दी।

Last Updated- August 22, 2025 | 11:13 PM IST
Nuclear Energy
प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

केंद्र सरकार की योजना है कि यूरेनियम खनन, आयात, प्रसंस्करण और परमाणु ऊर्जा उत्पादन पर दशकों से चले आ रहे सरकारी एकाधिकार को समाप्त किया जाए और इसमें निजी क्षेत्र की कंपनियों को भागीदारी देने की पहल की जाए। यह अपने आप में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन को दर्शाता है। नीतिगत बदलाव का पहला संकेत केंद्रीय बजट में मिला था जिसमें 2047 तक देश की परमाणु ऊर्जा क्षमता को बढ़ाकर 100 गीगावॉट करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया गया। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसे ध्यान में रखते हुए परमाणु ऊर्जा मिशन की घोषणा की थी और उसके लिए 20,000 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की थी। इस मिशन का लक्ष्य है देश की मौजूदा परमाणु ऊर्जा क्षमता को वर्तमान 8.18 गीगावॉट के स्तर से आगे बढ़ाना। ये हालिया घटनाएं बताती हैं कि थोड़ी देर से ही सही लेकिन जलवायु परिवर्तन से निपटने, ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने और जीवाश्म ईंधन पर देश की निर्भरता को कम करने में परमाणु ऊर्जा की भूमिका को पहचाना जा रहा है।

दशकों से सरकार ने विकिरण सुरक्षा, परमाणु सामग्री के दुरुपयोग और सामरिक सुरक्षा का हवाला देते हुए इस क्षेत्र पर अपने नियंत्रण को उचित ठहराया। भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (एनपीसीआईएल) देश में असैन्य परमाणु संयंत्रों की इकलौती संचालक थी। बहरहाल, देश में ऊर्जा बदलाव की बढ़ती आवश्यकता के कारण नीतिगत बदलाव संभव हो रहा है। घरेलू यूरेनियम भंडार जो करीब 76,000 टन का है, वह भविष्य की मांग के एक छोटे हिस्से की ही भरपाई कर सकता है। ऐसे में आयात और प्रसंस्करण क्षमता में विस्तार जरूरी होगा। इस संदर्भ में निजी भागीदारी अहम होगी। उसके आधार पर ही आपूर्ति श्रृंखला तैयार होगी, पूंजी का प्रवाह तय होगा और परियोजना क्रियान्वयन में तेजी आ सकेगी।

इसके लिए सरकार को कानूनी बदलाव करने होंगे। परमाणु ऊर्जा अधिनियम में संशोधन करके ही एनपीसीआईएल के एकाधिकार को खत्म किया जा सकता है और निजी कारोबारियों को परमाणु ऊर्जा उत्पादन से जोड़ा जा सकता है। परमाणु क्षति के लिए नागरिक जवाबदेही अधिनियम में बदलाव भी उतने ही अहम हैं। भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के बाद भी मौजूदा आपूर्तिकर्ता-जवाबदेही प्रावधानों ने वैश्विक परमाणु कंपनियों को हतोत्साहित किया है। किसी भी तरह के सुधार में यह ध्यान रखना होगा कि किसी दुर्घटना के हालात में उचित क्षतिपूर्ति की आवश्यकता के साथ संतुलन कायम हो। ऐसा ढांचा तैयार किया जाना चाहिए जो निवेश या तकनीक हस्तांतरण को हतोत्साहित न करता हो। 

भारत का लक्ष्य 2033 तक कम से कम पांच स्वदेशी डिजाइन वाले स्माॅल मॉडुलर रिएक्टर्स (एसएमआर) तैयार करने का है। इसके साथ ही भारत स्माॅल रिएक्टर्स (बीएसआर)  का उन्नयन किया जा रहा है, जो मूलत: 220 मेगावॉट के प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर हैं। इससे जमीन की जरूरत कम की जा सकेगी। ऐसे रिएक्टर उद्योगों के निकट कैप्टिव यानी उनकी जरूरतों के लिए उपयोगी के रिएक्टर रूप में एकदम उपयुक्त माने जा रहे हैं। एसएमआर और बीएसआर एक साथ मिलकर मिलकर नवीकरणीय ऊर्जा का पूरक बन सकते हैं, क्योंकि ये उन क्षेत्रों तक ऊर्जा पहुंचा सकते हैं जहां पारंपरिक बड़े संयंत्र उपयुक्त नहीं होते। 

अक्सर यह जोखिम होता है कि परमाणु परियोजना कहीं लागत को पार न कर जाए। इसके अलावा लाइसेंसिंग संबंधी दिक्कतें और ग्रिड मूल्य संबंधी विवादों की भी आशंका रहती है। इतना ही नहीं ये आमतौर पर अग्रिम तौर पर पूंजी की मांग वाली होती हैं और इन्हें पूरा होने में काफी समय लगता है। इनका परिचालन चक्र भी छह दशक से अधिक होता है। भारत में तेजी से बढ़ते परमाणु ऊर्जा क्षेत्र पर नजर रखने वाले निजी निवेशकों के लिए यह आवश्यक है कि वे परमाणु परिसंपत्तियों की दीर्घकालीन प्रकृति के अनुरूप धन जुटाने के लिए नवोन्मेषी तरीके अपनाएं। निवेश को जोखिममुक्त करने के लिए सरकार व्यवहार्यता अंतर के लिए वित्तपोषण और संप्रभु गारंटी जैसे उपायों पर भी विचार कर सकती है। 

जैतापुर और कुडनकुलम जैसी जगहों पर पूर्व में हुए विरोध और निजी भागीदारी से उत्पन्न होने वाले संभावित जन भय को देखते हुए, समुदायों के साथ संवाद स्थापित करना, पर्यावरणीय संरक्षण सुनिश्चित करना और उचित मुआवजा देना अत्यंत आवश्यक है।

First Published - August 22, 2025 | 10:44 PM IST

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