संपादकीय

Editorial: संतोषजनक स्थिति — कम मुद्रास्फीति का अर्थ अगली दर कटौती नहीं

दर कटौती की संभावना तभी बनेगी जब मुद्रास्फीति के अनुमान लक्ष्य से काफी नीचे हों।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- July 15, 2025 | 10:50 PM IST

सरकार द्वारा सोमवार को जारी आंकड़े दिखाते हैं कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति की दर मई के 2.8 फीसदी से कम होकर जून में 2.1 फीसदी रह गई। मुद्रास्फीति की दर में यह गिरावट मोटे तौर पर खाद्य कीमतों में कमी की बदौलत आई। अखिल भारतीय उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक में 1.06 फीसदी की गिरावट आई। इसमें सब्जियों की कम कीमत का काफी योगदान रहा जिनमें 19 फीसदी की कमी देखी गई। अच्छे मॉनसून के पूर्वानुमान को देखते हुए उम्मीद है कि आने वाले दिनों में भी खाद्य कीमतें नियंत्रण में रहेंगी। बहरहाल, यह भी ध्यान देने लायक है कि खाद्य क्षेत्र में कीमतों की कमी में एकरूपता नहीं है। उदाहरण के लिए तेल एवं वसा की कीमतों में 17 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी देखी गई और इस पर नीतिगत स्तर पर ध्यान देने की जरूरत पड़ सकती है। हालांकि आने वाले महीनों में समग्र मुद्रास्फीति दर के सहज स्तर पर बने रहने की उम्मीद है।

बहरहाल, उम्मीद से कम मुद्रास्फीति की दर होने के बावजूद भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) आगामी अगस्त माह में होने वाली बैठक में शायद नीतिगत रीपो दर में फिर कटौती न करे और इसकी कई वजह हैं। पहली बात, मुद्रास्फीति के अनुकूल परिणामों के अनुमान के कारण एमपीसी ने जून की बैठक में ही नीतिगत रीपो दर में 50 आधार अंकों की कटौती कर दी थी।  मौजूदा चक्र में उसने अब तक नीतिगत दर में 100 आधार अंकों की कटौती कर दी है और वह चाहती है कि व्यवस्था में इसका प्रभाव नजर आए। दूसरी बात, रिजर्व बैंक ने व्यवस्था में नकदी की स्थिति बेहतर बनाने के लिए कई उपाय किए हैं। इसके परिणामस्वरूप नकदी अधिशेष की स्थिति बनी है और वेटेड एवरेज कॉल रेट (डब्ल्यूएसीआर यानी मौद्रिक नीति का परिचालन लक्ष्य) रीपो दर से नीचे बनी हुई है। नकद आरक्षित अनुपात यानी सीआरआर में कमी का प्रभाव नजर आने पर बैंकिंग व्यवस्था में और अधिक नकदी नजर आ सकती है। रिजर्व बैंक ने जून में सीआरआर में 100 आधार अंकों की कटौती की थी जिसे चार चरणों में लागू होना है। अतिरिक्त नकदी और डब्ल्यूएसीआर के नीतिगत दर से नीचे रहने के कारण शायद एमपीसी समायोजन में तत्काल इजाफा न करना चाहे।

तीसरा, मौद्रिक नीति को दूरदर्शी होना चाहिए और उसे पिछले महीने के मुद्रस्फीति के आंकड़ों से प्रभावित नहीं होना चाहिए। यह ध्यान देना उचित रहेगा कि एमपीसी की जून की बैठक में अनुमान जताया गया था कि चालू वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में मुद्रास्फीति दर 4.4 फीसदी रह सकती है जो चार फीसदी के लक्ष्य से ऊपर है। इसके अलावा अगस्त और उसके बाद की बैठकों में एमपीसी 2026-27 के मुद्रास्फीति संबंधी अनुमानों पर केंद्रित हो जाएगी। ऐसे में जब तक अगले वर्ष के मुद्रास्फीति संबंधी अनुमान 4 फीसदी के लक्ष्य से काफी कम नहीं रहते तब तक एमपीसी शायद नीतिगत दरों में कटौती को समझदारी न माने। 

रिजर्व बैंक के अर्थशास्त्रियों के शोध के मुताबिक वास्तविक नीतिगत दर, जो न तो बढ़त वाली है और न ही संकुचन वाली, 2023-24 की चौथी तिमाही में 1.4 से 1.9 फीसदी के बीच रही। ऐसे में अगर आगामी समय में मुद्रास्फीति की दर 4 फीसदी के लक्ष्य के करीब बनी रहती है तो एमपीसी संभवत: रीपो दर को वर्तमान स्तर यानी 5.5 फीसदी के स्तर पर बनाए रखेगी। दरों में कटौती की संभावना तब बनेगी जब मुद्रास्फीति अनुमान लक्षित दर से काफी नीचे हो जाए। जहां तक वृद्धि को सहारा देने की बात है तो फिलहाल जो हालात हैं उनमें एमपीसी और रिजर्व बैंक ने अपनी भूमिका निभा दी है। अब सरकार को टिकाऊ सुधारों के साथ कारोबारी जगत तो प्रोत्साहित करना है कि वे निवेश करें।

First Published : July 15, 2025 | 10:50 PM IST