संपादकीय

Editorial: वित्तीय स्थिरता का लक्ष्य और जवाबदेह नवाचार

भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में पेटीएम पेमेंट्स बैंक के खिलाफ जो नियामकीय कदम उठाया है उसने व्यवस्था में काफी असहजता पैदा की है।

Published by
बीएस संपादकीय   
Last Updated- February 27, 2024 | 10:03 PM IST

भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में पेटीएम पेमेंट्स बैंक के खिलाफ जो नियामकीय कदम उठाया है उसने व्यवस्था में काफी असहजता पैदा की है। खासतौर पर तेजी से बढ़ते फिनटेक कारोबार में इसे लेकर असहज माहौल बना है।

नियामक ने यह स्पष्ट किया है कि उसने उक्त कदम कंपनी के साथ पर्याप्त द्विपक्षीय चर्चा के बाद उठाया है जबकि कुछ लोगों का मानना है कि ऐसा नियामक को कारोबार की प्रकृति की पर्याप्त समझ न होने के कारण हुआ है और इससे नवाचार को बढ़ावा मिलना कम हो सकता है।

वित्तीय क्षेत्र में नियामक के विरुद्ध ऐसा दृष्टिकोण नया नहीं है। जोखिम को कम करने और वित्तीय स्थिरता बरकरार रखने के लिए नियामकीय हस्तक्षेप अल्पावधि में वृद्धि और विनियमित कंपनियों को प्रभावित करते हैं और अक्सर उन्हें लेकर ऐसी टिप्पणियां देखने को मिलती हैं।

चाहे जो भी हो यह भी सही है कि नियामकों को एक बारीक संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता होती है और कोशिश होनी चाहिए कि बिना वित्तीय स्थिरता के लक्ष्य से समझौता किए नवाचार को बढ़ावा दिया जा सके। इस संदर्भ में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के हस्तक्षेप इस लक्ष्य को हासिल करने में दूर तक जाएंगे।

सीतारमण ने सोमवार को फिनटेक कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों के साथ एक बैठक में सुझाया कि रिजर्व बैंक फिनटेक और स्टार्टअप की चिंताओं को दूर करने के लिए उनके साथ मासिक बैठक करे। साफ कहें तो नए दौर की फिनटेक कंपनियां ऐसे क्षेत्रों में काम कर रही हैं जहां नियमन स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं हैं।

नियामक भी कारोबार तथा उनसे व्यवस्था को उत्पन्न होने वाले संभावित खतरों को समझने की प्रक्रिया में हैं। हालांकि नियामक सभी अंशधारकों के साथ नियमित संवाद करता है लेकिन एक औपचारिक व्यवस्था बनाने से दोनों पक्षों को लाभ होगा।

वित्तीय सेवा विभाग से भी कहा गया है कि वे फिनटेक और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ एक दिन की कार्यशाला का आयोजन करें जहां वे अपनी चिंताएं सामने रख सकती हैं। इससे भी फिनटेक को लाभ होना चाहिए क्योंकि वे अपनी आशंकाएं सामने रख सकती हैं। नियामक और सरकार दोनों अगर फिनटेक की चिंताओं को सुनकर नवाचार को बढ़ावा देने के लिए जरूरी समायोजन करें तो बेहतर होगा।

सरकार ने केंद्रीय वित्त सचिव टी वी सोमनाथन के अधीन एक विशेषज्ञ समिति भी गठित की है ताकि ‘अपने ग्राहक को जानें’ (केवाईसी) मानकों को एकरूप बनाया जा सके। ग्राहक को जानने के मानकों में सुधार से वित्तीय सेवा कंपनियों और उपभोक्ताओं दोनों को लाभ होगा।

ऐसी चिंताएं हैं कि कुछ फिनटेक कंपनियां इन मानकों का पालन नहीं करती हैं। ऐसे में वित्त मंत्री द्वारा समय पर हस्तक्षेप किए जाने से फिनटेक की चिंताओं को दूर करने में मदद मिलेगी और ऐसा नियामकीय माहौल बनेगा जो नवाचार को बढ़ावा देता हो और अंतिम उपभोक्ता को लाभ पहुंचाता हो।

फिनटेक कंपनियों का विकास रिजर्व बैंक के लिए चुनौती बना हुआ है। कुछ कंपनियों ने यूनीफाइड पेमेंट इंटरफेस की मदद से भुगतान को सुगम बनाया है तो वहीं बड़ी संख्या में ऐसी कंपनियां बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों से ऋण को सुगम बना रही हैं। इसके परिणामस्वरूप उपभोक्ता ऋण बहुत बढ़ गया है। इस संदर्भ में रिजर्व बैंक ने गत नवंबर में उपभोक्ता ऋण का जोखिम भार बढ़ा दिया। इसके पीछे विचार था असुरक्षित ऋण वृद्धि की गति को धीमा करना।

रिजर्व बैंक ने अलगोरिद्म आधारित ऋण में इजाफे को लेकर भी चिंता जताई है। अगर बिना समुचित जांच परख के उपभोक्ता ऋण बढ़ता है तो इससे बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों दोनों को दिक्कत हो सकती है। यह देखा गया है कि कुछ उपभोक्ता एक से अधिक प्लेटफॉर्म से ऋण लेने में सक्षम हैं।

हालांकि यह संभव है कि फिनटेक उन उपभोक्ताओं तक पहुंच रही हों जो औपचारिक ऋण बाजार से बाहर हैं लेकिन फिर भी तब तक सावधानी बरतना आवश्यक है जब तक कि इस पूरी प्रणाली और संभावित निष्कर्षों को अच्छी तरह समझ नहीं लिया जाता है। नवाचार और वृद्धि अनुमानों में संतुलन होना चाहिए और वित्तीय स्थिरता को खतरा उत्पन्न नहीं होने देना चाहिए।

First Published : February 27, 2024 | 10:03 PM IST