दुनिया में बढ़ती आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने पिछले सप्ताह भारतीय वित्तीय प्रणाली और व्यापक अर्थव्यवस्था को कुछ निश्चितता प्रदान करने के लिए एक साहसिक कदम उठाया है। मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने चालू वित्त वर्ष में अपनी दूसरी बैठक के बाद शुक्रवार को रीपो दर 50 आधार अंक घटाकर 5.5 फीसदी कर दी। बाजार को रीपो दर में 25 आधार अंक की कमी का अनुमान था।
इतनी बड़ी कटौती का मकसद निश्चित रूप से आर्थिक गतिविधियों की गति बढ़ाना है। इस तरह, नीतिगत दरों में कमी के मौजूदा चक्र में एमपीसी रीपो दर में 100 आधार अंक की कमी कर चुका है। आरबीआई ने नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) भी 100 आधार अंक घटाकर इसे 3 फीसदी करने का निर्णय लिया। सीआरआर में यह कमी चार चरणों में पूरी की जाएगी। आरबीआई के इस कदम से वित्तीय प्रणाली में 2.5 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त नकदी आएगी। इससे नीतिगत दर में कटौती का लाभ जल्द मिलेगा और बैंकिंग प्रणाली के लिए पूंजी जुटाने पर लागत भी कम हो जाएगी।
वित्तीय प्रणाली में नकदी बढ़ाने के लिए आरबीआई ने हाल के महीनों में कई कदम उठाए हैं। केंद्रीय बैंक इस वर्ष की शुरुआत से अब तक वित्तीय प्रणाली में 9.5 लाख करोड़ रुपये नकदी डाल चुका है। इसके परिणामस्वरूप भारित औसत कॉल दर (डब्ल्यूएसीआर) नकदी समायोजन व्यवस्था के निचले सिरे के करीब पहुंच गई है। डब्ल्यूएसीआर मौद्रिक नीति का परिचालन लक्ष्य है। इसका यह भी आशय है कि नीतिगत दरों में कटौती से जो अनुमान थे, वास्तविक नीति समायोजन उससे अधिक रहा है। रीपो दर में कटौती का लाभ पहुंचाने के लिए आरबीआई डब्ल्यूएसीआर संभवतः नकदी समायोजन व्यवस्था के निचले सिरे पर रखेगा।
उल्लेखनीय है कि एमपीसी ने न केवल रीपो दर में अनुमान से अधिक कमी की है बल्कि बाजार को यह संदेश भी दिया है कि ‘मौजूदा परिस्थितियों में आर्थिक वृद्धि को समर्थन देने के लिए आरबीआई के पास काफी कम गुंजाइश मौजूद है’। इसे दूसरे तरीके से कहा जाए तो आरबीआई ने आर्थिक वृद्धि को मदद पहुंचाने के अपनी तरफ से लगभग सभी प्रयास कर लिए हैं। आरबीआई ने अपना नीतिगत रुख भी ‘उदार’ की जगह अब ‘तटस्थ’ कर लिया है जो यह संकेत दे रहा है कि एमपीसी की अगली बैठक में दरें नहीं भी घटाई जा सकती हैं।
बाजार एवं निवेशकों के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण सवाल खड़ा करता है। क्या एमपीसी मौजूदा चक्र में रीपो दर उस स्तर तक पहुंचा चुकी है जहां इसमें और कमी की गुंजाइश नहीं है? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि समग्र मुद्रास्फीति दर में कमी के बाद रीपो दर में बड़ी कटौती की गुंजाइश बनी थी। अप्रैल में समग्र मुद्रास्फीति दर कम हो कर 3.2 फीसदी रह गई। एमपीसी ने इस साल के लिए मुद्रास्फीति का लक्ष्य 4 फीसदी से घटाकर 3.7 फीसदी कर दिया। कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि वास्तविक मुद्रास्फीति एमपीसी के अनुमान से भी कम रहेगी।
एमपीसी के अनुमान सही साबित हुए तो इसके अनुसार चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में औसत मुद्रास्फीति 4 फीसदी से थोड़ी अधिक रह सकती है। आरबीआई के अर्थशास्त्रियों ने पहले यह बताया है कि तटस्थ दर 1.4 फीसदी से 1.9 फीसदी के बीच रहती है। यह मानते हुए कि एमपीसी इस अनुमान के साथ आगे बढ़ती है और मौद्रिक नीति दूरदर्शी रखने की जरूरत है तो आगे दरें और घटने की संभावना कम रहेगी। अगर मुद्रास्फीति और निचले स्तर पर आई तो दरों में अतिरिक्त कमी की गुंजाइश बढ़ जाएगी मगर यह आगामी महीनों में तो नहीं होगी। एमपीसी ने आर्थिक वृद्धि दर 6.5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है मगर यह स्पष्ट नहीं है कि दरों में कटौती से आर्थिक वृद्धि में किस सीमा तक उछाल आने की उम्मीद है। पिछले वित्त वर्ष भी वृद्धि दर समान स्तर पर रही थी जिसे देखते हुए मध्यम अवधि की संभावित वृद्धि दर 7 फीसदी से ऊपर पहुंचाने के लिए नीतिगत हस्तक्षेप का दायरा मौद्रिक उपायों तक सीमित न रखकर इसे आगे बढ़ाना होगा।