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Editorial: राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति पर RBI Report

सब्सिडी और नकदी हस्तांतरण देने के मामलों में राज्यों के बीच जो होड़ लगी है वह उनकी उत्पादक निवेश की क्षमता को प्रभावित कर सकती है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- December 24, 2024 | 10:02 PM IST

राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति पर रिजर्व बैंक का ताजा अध्ययन गत सप्ताह जारी किया गया। यह दिखाता है कि समेकित स्तर पर काफी प्रगति हुई है। बहरहाल, अभी भी सुधार की काफी गुंजाइश है और समग्र आर्थिक प्रबंधन काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि राज्य सरकारों के वित्त का प्रबंधन किस प्रकार किया जाता है। व्यापक स्तर पर देखें तो चूंकि केंद्र सरकार का वित्त आमतौर पर सार्वजनिक बहस के केंद्र में रहता है इसलिए ऐसी रिपोर्ट अक्सर अहम कमी को दूर करने का काम करती हैं।

रिजर्व बैंक का ताजा अध्ययन दिखाता है कि राजकोषीय जवाबदेही के नियमों को अपनाने से राज्यों को काफी मदद मिली है। सन 1998-99 से 2003-04 के बीच राज्यों का समेकित सकल राजकोषीय घाटा जीडीपी के औसतन 4.3 फीसदी से घटकर 2.7 फीसदी रह गया। डेट स्टॉक में भी कमी आई और यह मार्च 2024 तक जीडीपी के 28.5 फीसदी तक रह गया। हालांकि यह अभी भी राजकोषीय जवाबदेही एवं बजट प्रबंधन समिति द्वारा 2017 में अनुशंसित 20 फीसदी के स्तर से काफी अधिक है।

अभी हाल ही में 2023-24 में राज्यों ने अपने सकल राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 2.9 फीसदी पर सीमित किया जो जीडीपी के तीन फीसदी की तय सीमा से कम था। चालू वर्ष में समेकित राजकोषीय घाटे के जीडीपी के 3.2 फीसदी रहने की बात कही गई है। बहरहाल जैसा कि कुछ विश्लेषकों ने कहा है, राज्यों का व्यय कम रहने की संभावना है, जैसा कि 2023-24 में भी हुआ था। उस वक्त राज्यों ने जीडीपी के 3.2 फीसदी के बराबर राजकोषीय घाटे का अनुमान जताया था। यह बात भी ध्यान देने लायक है कि राज्यों के लिए व्यय की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।

2023-24 में पूंजीगत आवंटन जीडीपी के 2.6 फीसदी के बराबर रहा जबकि 2022-23 में यह 2.2 फीसदी था। हाल के वर्षों में अनुकूल राजकोषीय नतीजे आंशिक तौर पर राज्यों के बेहतर राजस्व की बदौलत भी थे। महामारी के बाद की अवधि में यह सुधरकर 1.44 फीसदी हो गया है जबकि 2012-13 से 2019-20 के बीच यह 0.86 फीसदी था। दिलचस्प बात है कि रिपोर्ट में शामिल एक विश्लेषणात्मक अध्ययन दिखाता है कि कर राजस्व और सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के अनुपात में अंतरराज्यीय असमानता वस्तु एवं सेवा कर लागू होने के बाद कम हुई है।

बहरहाल, सुधार के बावजूद कुछ मसले ऐसे हैं जिन्हें प्राथमिकता पर हल करने की जरूरत है। पहला है कर्ज का स्तर। यह बात भी रेखांकित करने लायक है कि राज्यों के बीच काफी असमानता मौजूद है। उदाहरण के लिए हिमाचल प्रदेश की बकाया देनदारी जीएसडीपी के 45 फीसदी से अधिक है और बीते दशक में इसमें काफी इजाफा हुआ है। ऐसी राजकोषीय स्थिति में सुधार के लिए कोई न कोई व्यवस्था विकसित करनी होगी।

दूसरी बात, राज्य सरकारों द्वारा जारी की गई गारंटियों को भी हल करने की आवश्यकता है। 2023 में यह जीडीपी के 3.8 फीसदी के बराबर थी और यह राज्य सरकारों के लिए तनाव का कारण बनकर उभर सकती है।

तीसरी बात, सब्सिडी और नकदी हस्तांतरण देने के मामलों में राज्यों के बीच जो होड़ लगी है वह उनकी उत्पादक निवेश की क्षमता को प्रभावित कर सकती है। इसका वृद्धि और विकास पर दीर्घकालिक असर हो सकता है।

भविष्य के ढांचागत सुधारों की बात करें तो रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में कुछ सुझाव ध्यान देने लायक हैं और उन पर यहां चर्चा होनी चाहिए। पहला, बड़ी संख्या में केंद्र सरकार की योजनाएं राज्य सरकारों के व्यय लचीलेपन को प्रभावित करती हैं। ऐसी योजनाओं को तार्किक बनाने से राज्य सरकारों के लिए बजटीय गुंजाइश बन सकती है और वे संसाधनों को जरूरत के समय व्यय कर सकती हैं।

दूसरी बात, स्थानीय निकायों को समय पर संसाधनों का आवंटन करना जरूरी है। ऐसा करके ही उन्हें अपनी जवाबदेही पूरा करने लायक बनाया जा सकेगा। इससे वृद्धि संबंधी निष्कर्षों में सुधार संभव होगा। कुल मिलाकर देखा जाए तो राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति में सुधार हुआ है लेकिन निरंतर सतर्कता और सुधारों की मदद से ही नतीजों को और बेहतर बनाया जा सकता है।

First Published : December 24, 2024 | 9:56 PM IST