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Editorial: मुद्रा प्रबंधन में नई चुनौतियां

Currency management in India: इस हफ्ते अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया छह महीने के ऊच्चतम स्तर पर पहुंच गया और यह लगभग उसी स्तर पर है जहां एक साल पहले था।

Last Updated- March 13, 2024 | 9:49 PM IST

हाल के वर्षों में भारत के आर्थिक प्रबंधन की सबसे उल्लेखनीय विशेषताओं में से एक, बाहरी मोर्चे पर स्थिरता रही है। यह अहम बात है क्योंकि भारत चालू खाते के घाटे से जूझ रहा है और वैश्विक बचत पर निर्भर है। हालांकि, कई बड़े केंद्रीय बैंकों द्वारा नीतिगत दरों में तीव्र और समन्वित तरीके से हुई बढ़त से वैश्विक वित्तीय स्थितियों में हाल ही में आई सख्ती ने बाह्य मोर्चे पर कुछ दबाव बनाया, लेकिन इसका असर संतोषजनक और अल्पकालिक था।

पिछले कुछ वर्षों में बाह्य खातों के प्रबंधन ने कई विश्लेषकों को इस बात के लिए मजबूर किया है कि वे साल 2013 के अमेरिकी टैपर टैंट्रम से तुलना करें जिसने भारत को लगभग मुद्रा संकट में धकेल दिया था। हालांकि इस बार हालात काफी अलग हैं। इस हफ्ते अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया छह महीने के ऊच्चतम स्तर पर पहुंच गया और यह लगभग उसी स्तर पर है जहां एक साल पहले था।

हालांकि बाह्य मोर्चे पर प्रदर्शित स्थिरता और ताकत के लिए कई सहायक कारण हैं, जैसे कि समग्र वृहद आर्थिक प्रबंधन और वृदि्ध का नजरिया, लेकिन हाल के वर्षों में भारतीय रिजर्व बैंक ने जिस तरह से पूंजी प्रवाह का प्रबंधन किया है, उसकी भी अहम भूमिका रही है। वर्ष 2020 की महामारी से हुए व्यवधान से होने वाले नुकसान को रोकने के लिए दुनियाभर के बड़े केंद्रीय बैंकों ने सिस्टम में जैसे ही नकदी की भरमार की, भारत को इस पूंजी प्रवाह का बड़ा हिस्सा मिल गया।

लेकिन इससे रुपये को मजबूती देने की जगह, जिससे भारत के व्यापार योग्य क्षेत्र प्रभावित होते, रिजर्व बैंक ने मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप किया और साल 2020 में 120 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार जुटा लिया। विदेशी मुद्रा का यह भंडार वैश्विक सख्ती के दौर में घरेलू मुद्रा में स्थिरता बनाए रखने में उपयोगी साबित हुआ।

इसके बाद जनवरी से अक्टूबर 2022 के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में 100 अरब डॉलर से ज्यादा की गिरावट आई। अगर बड़ा मुद्रा भंडार नहीं होता, तो उस समय बाह्य मोर्चे का प्रबंधन बहुत मुश्किल होता। बाह्य मोर्चे पर सुविधाजनक स्थिति ने घरेलू स्तर पर भी नीतिगत गुंजाइश प्रदान की और सरकार को यह सहूलियत दी कि वह एक बड़े राजकोषीय घाटे के साथ चल सके।

हालांकि, अब जब उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में नीतिगत सख्ती चरम पर पहुंच गई है और रिजर्व बैंक ने भी मोटे तौर पर पहले जैसा मुद्रा भंडार हासिल कर लिया है, तो उसे मुद्रा प्रबंधन के लिए अपने दृष्टिकोण को परिष्कृत करने की आवश्यकता हो सकती है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने दिसंबर 2023 की अपनी कंट्री रिपोर्ट में भारत की विनिमय दर व्यवस्था को परिवर्तनशील की जगह ‘स्थिर व्यवस्था’ बताया है।

रिजर्व बैंक की यह घोषित नीति है कि वह मुद्रा बाजार के लिए किसी स्तर का लक्ष्य नहीं बनाता है और जब बहुत ज्यादा अस्थिरता होती है तो ही वह दखल देता है। बड़े भंडार तैयार करने का भी उद्देश्य यही है कि दबाव या तनाव के दौर में बाह्य मोर्चे की स्थिरता को बनाए रखा जाए, जैसा कि हाल के नीतिगत सख्ती के दौरान देखा गया। लेकिन जैसे-जैसे चीजें स्थिर होंगी, रिजर्व बैंक को अपने कदम पीछे लेने पड़ सकते हैं।

यह देखते हुए कि उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में महंगाई दर काफी नीचे आ चुकी है, अब खासकर अमेरिका में दरों में कटौती की उम्मीद से उभरते बाजारों में नकदी का भारी प्रवाह हो सकता है। ऐसे में भारत को ज्यादा पोर्टफोलियो पूंजी हासिल हो सकती है, क्योंकि यह दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। यही नहीं, भारत सरकार के बॉन्डों को अब कई वैश्विक बॉन्ड सूचकांकों में शामिल किया जा रहा है, जिससे पूंजी का प्रवाह और बढ़ेगा। अगर रिजर्व बैंक ने बाजार में हस्तक्षेप नहीं किया तो रुपये में मजबूती आ सकती है।

हालांकि, लगातार दखल और भंडार जमा करते जाने से और ऊंचा पूंजी प्रवाह आ सकता है क्योंकि विदेशी निवेशकों और घरेलू ऋणधारकों, दोनों के लिए मुद्रा का जोखिम काफी कम होता जाएगा। लगातार मुद्रा भंडार जमा होते जाने के कई दूसरे निहितार्थ भी हो सकते हैं। यह राजकोषीय और मौद्रिक नीति संचालन, दोनों को प्रभावित कर सकता है। इसलिए अगली तिमाहियों में भले ही वैश्विक वित्तीय दशाएं सामान्य हो जाएं, बाह्य मोर्चे पर कुशल प्रबंधन की जरूरत होगी।

First Published - March 13, 2024 | 9:49 PM IST

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