facebookmetapixel
ECMS योजना से आएगा $500 अरब का बूम! क्या भारत बन जाएगा इलेक्ट्रॉनिक्स हब?DMart Q2 Results: पहली तिमाही में ₹685 करोड़ का जबरदस्त मुनाफा, आय भी 15.4% उछलाCorporate Actions Next Week: अगले हफ्ते शेयर बाजार में होगा धमाका, स्प्लिट- बोनस-डिविडेंड से बनेंगे बड़े मौके1100% का तगड़ा डिविडेंड! टाटा ग्रुप की कंपनी का निवेशकों को तोहफा, रिकॉर्ड डेट अगले हफ्तेBuying Gold on Diwali 2025: घर में सोने की सीमा क्या है? धनतेरस शॉपिंग से पहले यह नियम जानना जरूरी!भारत-अमेरिका रिश्तों में नई गर्मजोशी, जयशंकर ने अमेरिकी राजदूत गोर से नई दिल्ली में की मुलाकातStock Split: अगले हफ्ते शेयरधारकों के लिए बड़ी खुशखबरी, कुल सात कंपनियां करेंगी स्टॉक स्प्लिटBonus Stocks: अगले हफ्ते कॉनकॉर्ड और वेलक्योर निवेशकों को देंगे बोनस शेयर, जानें एक्स-डेट व रिकॉर्ड डेटIndiGo बढ़ा रहा अंतरराष्ट्रीय कनेक्टिविटी, दिल्ली से गुआंगजौ और हनोई के लिए शुरू होंगी डायरेक्ट फ्लाइट्सDividend Stocks: अगले हफ्ते TCS, एलेकॉन और आनंद राठी शेयरधारकों को देंगे डिविडेंड, जानें रिकॉर्ड-डेट

Editorial: गाजा में बदलता माहौल: फिलिस्तीन को मान्यता पर बन रही अंतर्राष्ट्रीय सहमति

गाजा में नागरिकों पर लगातार हो रहे इजरायली हमलों पर महीनों आंखें मूंदे रहने के बाद आखिरकार प्रमुख पश्चिमी देशों ने अपना रुख बदलते हुए सख्ती दिखाई है

Last Updated- August 01, 2025 | 10:46 PM IST
Protesters in Iraq, Indonesia and South Korea condemn Israeli attacks on Gaza
प्रतीकात्मक तस्वीर

गाजा में नागरिकों पर लगातार हो रहे इजरायली हमलों पर महीनों आंखें मूंदे रहने के बाद आखिरकार प्रमुख पश्चिमी देशों ने अपना रुख बदलते हुए सख्ती दिखाई है। फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम और कनाडा ने फिलिस्तीन को दी सशर्त मान्यता सितंबर में बढ़ा दी है तथा संयुक्त राष्ट्र महा सभा के 80वें सत्र के पहले दो राष्ट्रों वाले हल को समर्थन देने की बात कही है। व्यावहारिक तौर पर तो यह कद सांकेतिक ही है क्योंकि फिलिस्तीन राज्य का कोई अस्तित्व ही नहीं है। लेकिन व्यापक भूराजनीतिक संदर्भों में यह बदलाव इजरायल के बारे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय के रुख में बहुत अहमियत रखता है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच में से चार सदस्यों (चीन और रूस भी) से पहली बार द्वारा फिलिस्तीन को मान्यता मिलने की संभावना है। ऐसे में अमेरिका अलग-थलग पड़ जाएगा। वे संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से उन 147 देशों में शामिल हो जाएंगे, जिन्होंने फिलिस्तीन को मान्यता दी है। भारत ने बहुत आरंभ में ही उसे मान्यता दे दी थी। रुख में इस बदलाव से पहले तीन देशों ने संयुक्त घोषणा की थी कि वे गाजा में इजरायल के आक्रामक रुख से ‘भयाक्रांत’ हैं और पश्चिमी तट पर अवैध बस्तियों के विस्तार की निंदा करते हैं।

Also Read: RBI के संभावित हस्तक्षेप से रुपये में मामूली मजबूती, डॉलर के मुकाबले 87.55 पर बंद

उत्तर अटलांटिक संधि संगठन यानी नाटो के इन तीन साझेदार देशों की सरकारें गाजा और पश्चिमी किनारे पर इजरायली अत्याचारों के खिलाफ बढ़ते जनमत पर अपनी प्रतिक्रिया दे रही हैं। गत सप्ताह स्लोवेनिया यूरोपीय संघ का पहला सदस्य देश बना जिसने गाजा में आक्रामक भूमिका निभाने वाले दो इजरायली मंत्रियों को अवांछित व्यक्ति घोषित कर दिया। 30 जुलाई को यूरोपीय संघ के 58 पूर्व दूतों ने आग्रह किया कि संघ हथियारों का निर्यात बंद करे, इजरायल पर प्रतिबंध लगाए और वहां अत्याचार रोकने के लिए कदम उठाए।

इस सप्ताह के आरंभ में फ्रांस और इटली में बंदरगाहों पर काम करने वालों ने इजरायल भेजे जा रहे हथियारों की खेप रोक दीं और अपनी सरकारों से इजरायल को राजनयिक समर्थन रोकने के लिए कहा। जर्मनी में जनसंहार (होलोकॉस्ट) का इतिहास होने के कारण इजरायल को तगड़ा समर्थन हासिल है। उसने भी गाजा में विमानों से राहत सामग्री पहुंचाने की बात कही मगर इजरायल को समर्थन भी वह देता रहेगा। सऊदी अरब ने भी हवाई मार्ग से वहां खाद्य सहायता पहुंचाई और इस संकट पर अब तक दिखाई जा रही उदासीनता त्याग दी। इन घोषणाओं के साथ ही महत्त्वपूर्ण राजनयिक गतिविधियों से भरा हफ्ता भी पूरा हो गया। एक उच्च स्तरीय संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में 29 और 30 जुलाई को न्यूयॉर्क घोषणा पत्र जारी किया गया तथा आठ दशकों से चले आ रहे विवाद को हल करने की चरणबद्ध योजना पेश की। इसका अंत स्वतंत्र और असैन्य फिलिस्तीन के रूप में होगा, जो इजरायल के साथ शांति से रहेगा।

Also Read:  In Parliament: संसदीय समिति की रिपोर्ट में खुलासा, 2 साल में विवादित प्रत्यक्ष कर की राशि 198% बढ़ी

लगभग उसी समय दक्षिण अफ्रीका के नेतृत्व में आठ देशों के हेग समूह ने चीन, स्पेन और कतर सहित करीब 30 देशों की एक बैठक आयोजित की, जिसमें गाजा में इजरायल की हरकतों के खिलाफ कई कदमों पर सहमति बनी। इनमें हथियारों की आपूर्ति पर प्रतिबंध, हथियार ले जाने वाले जहाजों पर प्रतिबंध और इजरायली कंपनियों से जुड़े ठेकों पर पुनर्विचार शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्र की विशेषज्ञ फ्रांसेस्का अल्बानीज भी इस बैठक में रहीं और उन्होंने इसे ‘पिछले 20 महीनों का सबसे अहम राजनीतिक घटनाक्रम’ करार दिया।

अब सवाल यह है कि जनमत में इस बदलाव से जमीनी दशा भी कितनी बदल पाएगी। चूंकि अमेरिका से इजरायल को लगातार समर्थन और 70 फीसदी हथियार मिल रहे हैं, इसलिए इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू गाजा में रक्षा बलों पर और पश्चिमी तट में बसने वालों पर शायद ही लगाम कसें। असली इम्तहान तो इस बात का होगा कि यूरोप क्या इजरायल पर प्रतिबंध लगाकर अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की शुल्क की धमकियों का जोखिम उठाएगा। अधिक दबाव बनाए बगैर आठ दशक से चले आ रहे इस संघर्ष का दो राज्यों वाला समाधान हकीकत नहीं बन पाएगा।

First Published - August 1, 2025 | 10:43 PM IST

संबंधित पोस्ट