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संपादकीय: सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स में चल रही हड़ताल का अंत…

सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस से संबद्ध सैमसंग इंडिया वर्कर्स यूनियन (एसआईडब्ल्यूयू) की मान्यता की मांग हड़ताली कर्मचारियों और कंपनी प्रबंधन के बीच तनाव का प्रमुख मुद्दा था।

Last Updated- October 17, 2024 | 10:39 PM IST
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एक स्वागतयोग्य घटनाक्रम में कर्मचारियों, कंपनी प्रबंधन और तमिलनाडु सरकार के बीच सफल बातचीत के बाद श्रीपेरुंबुदूर स्थित सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स (Samsung Electronics) के विनिर्माण संयंत्र में चल रही 37 दिन पुरानी श्रमिकों की हड़ताल इस सप्ताह समाप्त हो गई।

इस हड़ताल की शुरुआत तब हुई जब कर्मचारियों ने काम के बोझ और कम वेतन भत्तों, कड़े ओवरटाइम लक्ष्यों और सैमसंग की उनके संगठन को मान्यता न देने की नीति को लेकर आपत्ति प्रकट करनी शुरू की।

सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) से संबद्ध सैमसंग इंडिया वर्कर्स यूनियन (एसआईडब्ल्यूयू) की मान्यता की मांग हड़ताली कर्मचारियों और कंपनी प्रबंधन के बीच तनाव का प्रमुख मुद्दा था और अब यह मामला मद्रास उच्च न्यायालय के समक्ष है। दोनों पक्षों को अब संगठन की मान्यता के मामले में न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा है।

इस बीच एक सकारात्मक बात यह हुई कि कंपनी प्रबंधन ने काम के हालात और वेतन भत्तों से संबंधित मांग को स्वीकार कर लिया। यह उत्साह बढ़ाने वाली बात है कि विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटा लिया गया और कर्मचारी संगठन का मामला अदालत में है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस मामले में दोनों पक्ष अदालती निर्णय का सम्मान करेंगे।

बहरहाल व्यापक स्तर पर देखें तो यह जोखिम हमेशा रहता है कि औद्योगिक विवाद बढ़ जाए। हम अतीत में ऐसे कई उदाहरण देख चुके हैं जहां ऐसी घटनाओं से विनिर्माण केंद्र के रूप में भारत की छवि पर बुरा असर पड़ता है। बीते दशकों में देश को वैश्विक स्तर पर विनिर्माण केंद्र बना पाने में हमारी निरंतर नाकामी की एक वजह देश में श्रम संगठनों की प्रवृत्ति और देश के श्रम कानूनों की प्रकृति भी है। इसके परिणामस्वरूप कंपनियां पूरी कोशिश करती हैं कि वे ऐसे विवाद में न पड़ें। इसके लिए या तो वे अपना आकार छोटा रखती हैं या फिर उत्पादन को विभिन्न संयंत्रों के बीच बांट देती हैं।

अर्थशास्त्री अरविंद सुब्रमण्यन तथा अन्य के हालिया शोध ने दिखाया है कि विनिर्माण कंपनियां किसी एक कारखाने का आकार बढ़ाने के बजाय अपने कर्मचारियों को एक ही राज्य की अलग-अलग फैक्टरियों में भेज देती हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि भारत का विनिर्माण न केवल बड़े पैमाने पर काम करने से होने वाला असर उत्पन्न करने में नाकाम रहा बल्कि हम प्रतिस्पर्धा और निर्यात के मोर्चे पर भी पीछे छूट गए।

इसके अलावा विनिर्माण संयंत्रों में अनुबंधित श्रम तेजी से बढ़ा है और ऐसे श्रमिकों के पास मोलतोल की पर्याप्त क्षमता नहीं होती और न ही वे संगठित हो पाते हैं और न हड़ताल में शामिल हो पाते हैं। ऐसे में कुछ कर्मचारियों वाले कई संयंत्र स्थापित करना और अनुबंधित श्रमिकों से काम करना कंपनियों को आर्थिक या राजनीतिक झटकों से निपटने में मदद करता है। इस मामले की बात करें तो श्रीपेरुंबुदूर संयंत्र के कुल 5,000 श्रमिकों में अनुबंधित श्रमिकों की तादाद अच्छी खासी है और वे हड़ताल में शामिल नहीं हुए।

यह बात अच्छी तरह ज्ञात है कि औद्योगिक विवाद संभावित निवेश को नुकसान पहुंचा सकते हैं। मौजूदा चरण में जबकि देश बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की चीन प्लस वन की रणनीति का लाभ उठाना चाहता है, तब यह खासा नुकसानदेह साबित हो सकता है। ऐसे में यह अहम है कि कर्मचारियों और प्रबंधन के बीच के मतभेदों को सौहार्दपूर्ण माहौल में हल किया जाए।

संबंधित राज्य और केंद्र सरकार को भी यह सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभानी होगी कि कर्मचारियों की उचित अपेक्षाओं को पूरा किया जाए। इस संदर्भ में देश के श्रम कानूनों में सुधार जरूरी है।

केंद्र सरकार ने श्रम कानूनों को सरल बनाकर चार संहिताओं में समेटकर अच्छा कदम उठाया हालांकि अभी भी उनका क्रियान्वयन होना बाकी है। इस काम को राज्यों के साथ सहमति कायम करके आगे ले जाया जाना चाहिए। एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाने के लिए भारत को बड़े पैमाने पर उत्पादन करने वाले संयंत्र कायम करने होंगे। इसकी कामयाबी में श्रमिकों के साथ रिश्तों के प्रबंधन के तौर तरीकों की अहम भूमिका होगी।

First Published - October 17, 2024 | 10:30 PM IST

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