प्रतीकात्मक तस्वीर
मंगलवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने रोजगार से जुड़ी प्रोत्साहन (ईएलआई) योजना को मंजूरी दे दी। इसकी घोषणा वित्त वर्ष 2024-25 के केंद्रीय बजट में की गई थी। यह योजना इस बात की स्वीकारोक्ति है कि भारत की आर्थिक वृद्धि को उपयोगी रोजगार अवसरों के रूप में प्रतिफलित होना चाहिए। सावधिक श्रम शक्ति सर्वे के ताजा मासिक बुलेटिन के अनुसार श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी 33.2 फीसदी रही जो वैश्विक औसत से काफी कम है। युवाओं (15-29 वर्ष) की बेरोजगारी की दर 15 फीसदी थी। यह 5.6 फीसदी की कुल बेरोजगारी दर की तुलना में काफी अधिक है। इसके अलावा अधिकांश लोग असंगठित क्षेत्र में कम वेतन वाले काम कर रहे हैं।
ईएलआई योजना का लक्ष्य औपचारिक रोजगार में सुधार करना है और इसके दो हिस्से हैं। पहला हिस्सा कर्मचारी भविष्य निधि संगठन में पहली बार पंजीकृत होने वाले कर्मचारियों के भविष्य निधि फंड (पीएफ) में 15,000 रुपये का एकबारगी भुगतान करने से संबंधित है। अधिकतम एक लाख रुपये तक के वेतन वाले कर्मचारी इसके पात्र होंगे और उनके खाते में यह राशि दो किस्तों में डाली जाएगी। उम्मीद है कि इस योजना से पहली बार नौकरी पाने वाले 1.92 करोड़ लोगों को लाभ होगा और कर्मचारियों में बचत की प्रवृत्ति भी पैदा होगी। दूसरा हिस्सा नियोक्ताओं को वित्तीय मदद मुहैया कराने से संबंधित है जिसके तहत हर नए तैयार होने वाले रोजगार की लागत का कुछ बोझ साझा किया जाएगा। सरकार नियोक्ताओं को हर नए कर्मचारी के लिए दो साल तक प्रति माह 3,000 रुपये तक की प्रोत्साहन राशि देगी। विनिर्माण के क्षेत्र में इसे चौथे वर्ष तक बढ़ाया जाएगा। औपचारिक रोजगार तैयार करने के लिए निजी कंपनियों को प्रोत्साहित करने से लगभग 2.6 करोड़ लोगों के लिए अतिरिक्त रोजगार तैयार होने की उम्मीद है। कुल 99,446 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ इस योजना के जरिये दो साल में देश में करीब 3.5 करोड़ रोजगार तैयार होने की उम्मीद है।
यह योजना विनिर्माण क्षेत्र पर केंद्रित है और जिससे पता चलता है कि यह केंद्र सरकार की रोजगार रणनीति के लिए कितनी अहम है। उम्मीद है कि ईएलआई जैसी लक्षित योजनाओं की मदद से विनिर्माण क्षेत्र बड़ी संख्या में कम कौशल वाले श्रमिकों को शामिल करेगा और उन्हें औपचारिक व्यवस्था में लाएगा। परंतु केवल इतना करने से बड़े पैमाने पर गुणवत्तापूर्ण रोजगार तैयार करने में देश की गहरी ढांचागत चुनौती को दूर करने में मदद नहीं मिलेगी। ढांचागत गतिरोध यानी कठोर श्रम कानूनों से लेकर कौशल प्रशिक्षण के कमजोर परिणामों तक तमाम बातें रोजगार को बाधित कर रही हैं। इंस्टीट्यूट फॉर कंपेटिटिवनेस द्वारा हाल ही में जारी स्किल्स फॉर द फ्यूचर रिपोर्ट के अनुसार 2023-24 में लगभग 88 फीसदी कामगार कम योग्यता वाले पेशों में लगे थे। इसके अलावा केवल 9.76 फीसदी आबादी ने माध्यमिक स्तर से आगे की शिक्षा पूरी की है।
कौशल में व्यापक विसंगति और तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा की कम पहुंच ने भी समस्या बढ़ा दी है। ऐसे में ईएलआई की कामयाबी इस बात पर निर्भर करेगी कि हमारे पास पर्याप्त संख्या में रोजगार के लिए तैयार श्रम शक्ति हो और विनिर्माण आधार का तेजी से विस्तार हो। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री की इंटर्नशिप योजना भी कौशल की कमी दूर करने पर लक्षित है। इससे पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 1,000 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों को पांच साल में उन्नत बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। इसके अलावा पांच नए राष्ट्रीय कौशल उत्कृष्टता केंद्रों के निर्माण की बात कही गई। यह सही दिशा में उठाया गया कदम है लेकिन अनुभव बताते हैं कि ऐसे प्रयास अक्सर पुराने पाठ्यक्रम और शिक्षा-उद्योग के बीच कमजोर संपर्क के कारण विफल हो जाते हैं। ऐसे में देश की युवा श्रम शक्ति के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने से संबंधित योजनाओं को कौशल सुधार और नीतिगत सुधार का सहारा मिलना जरूरी है। ऐसा करके ही कारोबारी माहौल बेहतर बनाया जा सकता है, खासकर छोटे और मझोले उपक्रमों के लिए।