बीते एक पखवाड़े में जो कुछ इंडसइंड बैंक में घटित हुआ उसने आंतरिक प्रबंधन और नियामकीय निगरानी से जुड़े कई सवाल खड़े किए हैं। पहला, बैंक ने स्टॉक एक्सचेंजों को बताया कि भारतीय रिजर्व बैंक ने उसके प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (एमडी और सीईओ) सुमंत कठपालिया को केवल एक साल के लिए दोबारा नियुक्त करने की मंजूरी दी है। बैंक के बोर्ड ने तीन साल के लिए मंजूरी दी थी। यह पहला मौका नहीं है, जब नियामक ने बोर्ड की फरमाइश से कम समय के कार्यकाल पर मुहर लगाई है। पहले भी बोर्ड ने तीन साल के लिए नियुक्ति मांगी थी मगर रिजर्व बैंक ने केवल दो साल की इजाजत दी। लेकिन यह तो शुरुआत थी। बाद में बैंक ने स्टॉक एक्सचेंजों को डेरिवेटिव्स के लेखा में गड़बड़ी की सूचना दी। उसने बताया कि आंतरिक समीक्षा के मुताबिक उसकी शुद्ध संपत्ति के 2.35 फीसदी के बराबर गड़बड़ी है। अब बैंक को करीब 1,600 करोड़ रुपये की व्यवस्था करनी होगी।
इस तरह की जानकारी बाजार के लिए कभी अच्छी नहीं होती है। इसलिए हैरत नहीं हुई, जब स्टॉक एक्सचेंजों पर बैंक की कीमत एक ही दिन में एक चौथाई से ज्यादा घट गई। बैंकिंग भरोसे का कारोबार है और खराब आंतरिक नियंत्रण तथा प्रबंधन दर्शाने वाली ऐसी घटनाएं हमेशा हितधारकों के भरोसे पर चोट कर सकती हैं। निवेशकों ने अपनी घबराहट और बेचैनी शेयर बेचकर जाहिर की। जमाकर्ता भी अगर ऐसा ही करते तो मामले और भी पेचीदा हो जाता। शायद इसी से डरकर रिजर्व बैंक ने होली वाले सप्ताहांत पर बयान जारी किया कि बैंक स्थिर है और जमा करने वालों को फिक्र करने की जरूरत नहीं है। वास्तव में बैंक के पास पर्याप्त पूंजी है और घबराने की जरूरत नहीं है। बैंक के प्रवर्तकों ने जरूरत पड़ने पर और पूंजी डालने की बात भी कही है। चूंकि जमा की सुरक्षा के बारे में कोई फौरी चिंता नहीं है, इसलिए लोग दो बड़े मसलों पर चर्चा कर रहे हैं।
बैंक ने समस्याओं की समीक्षा बाहरी एजेंसी को सौंपी है मगर खबरों से लगता है कि बैंक ने विदेशी मुद्रा में अपने निवेश को सुरक्षित रखने के लिए जो डेरिवेटिव पोजिशन लीं, उन्हीं से गड़बड़ी उत्पन्न हुई। समस्या इसलिए हुई क्योंकि परिसंपत्ति-देनदारी प्रबंधन तथा ट्रेजरी डेस्क ने जोखिम से बचने के अलग-अलग तरीके अपनाए। खजाने की पोजिशन का मूल्य वर्तमान बाजार मूल्य से जोड़ दिया गया मगर दोनों के बीच आंतरिक अनुबंध में ऐसा नहीं किया गया, जिससे गड़बड़ हुई। कठपालिया ने कहा है कि रिजर्व बैंक के सितंबर 2023 के सकुर्लर के बाद बैंक ने अपने बही खातों का जायजा लेना शुरू किया और गड़बड़ पता चली। सर्कुलर के अनुसार ऐसे आंतरिक सौदों को 1 अप्रैल 2024 से समाप्त होना था। ऐसे में सवाल उठता है कि इसकी जानकारी पहले क्यों नहीं दी गई और बैंक के ऑडिटरों तथा नियामकों को इसका पता था या नहीं। ये पहलू स्पष्ट किए जाने चाहिए।
दूसरा बड़ा मुद्दा बैंकों में एमडी और सीईओ की नियुक्ति का है। अगर नियुक्ति की शर्तों पर नियामक और बैंक बोर्ड में मतभेद है तो बाजार को बताया जाना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति 3 साल के लिए दोबारा नियुक्ति के लायक नहीं है तो वह 2 साल या 1 साल के लिए लायक कैसे होगा? ऐसे निर्णय बैंक के प्रबंधन में भरोसा कम कर सकते हैं, जिसका बुरा असर हो सकता है। विनियमित संस्थाओं से निश्चित ढर्रे में काम करने की उम्मीद की जाती है और समय के साथ खुलासों का स्तर भी बढ़ा है मगर अब वक्त आ गया है कि नियामक अपने निर्णयों के पीछे काम करने वाले तर्क भी बताएं। इससे खुलासों और निर्णय प्रक्रिया का स्तर सुधरेगा।
(डिस्क्लेमर: कोटक समूह के नियंत्रण वाली इकाइयों की बिज़नेस स्टैंडर्ड प्राइवेट लिमिटेड में बहुलांश हिस्सेदारी है)