वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद की आज आरंभ हो रही दो दिवसीय बैठक से पहले गैर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) दलों द्वारा शासित कई राज्यों के प्रतिनिधियों ने गत सप्ताह एक बैठक की ताकि अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था में संभावित बदलावों का आकलन कर सकें। उनके सुझाव यह संकेत देते हैं कि वांछित बदलावों का क्रियान्वयन करना आसान नहीं होगा।
उदाहरण के लिए समूह ने नुकसानदेह और विलासिता की वस्तुओं पर 40 फीसदी की दर के अलावा एक अतिरिक्त शुल्क लगाने का सुझाव दिया है। उन्होंने यह सुझाव भी दिया है कि अतिरिक्त शुल्क से प्राप्त राशि पूरी तरह राज्यों को स्थानांतरित कर दी जानी चाहिए। इसके अलावा संबंधित राज्यों ने कहा है कि 2024-25 के आधार वर्ष होने के कारण अगर वृद्धि 14 फीसदी से कम रहती है तो उनके राजस्व को होने वाले नुकसान की भरपाई की जानी चाहिए। जीएसटी दरों के प्रस्तावित पुनर्गठन के कारण करीब 85,000 करोड़ रुपये से 2 लाख करोड़ रुपये तक के राजस्व नुकसान का अनुमान लगाया गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में कहा था कि जीएसटी व्यवस्था को तर्कसंगत बनाया जाएगा। बाद में पता चला कि व्यवस्था को सैद्धांतिक तौर पर 5 फीसदी और 18 फीसदी की दो दरों वाले ढांचे पर लाया जाएगा और अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं को इन दो दरों में शामिल किया जाएगा। इसके अलावा नुकसानदेह वस्तुओं के लिए 40 फीसदी की दर रहेगी।
इस बात पर जोर देना उचित होगा कि विशेषज्ञ लंबे समय से यह कहते रहे हैं कि दरों की विविधता ने जीएसटी प्रणाली के कामकाज और प्रदर्शन को प्रभावित किया है। ऐसे में उन्हें युक्तिसंगत बनाने की कवायद काफी समय से लंबित थी। बहरहाल, कुछ राज्यों की चिंताएं और उनके द्वारा सुझाए गए हल बताते हैं कि दरों और स्लैब को सुसंगत बनाने की दिशा में सावधानीपूर्वक आगे बढ़ना होगा।
उदाहरण के लिए राज्यों को संभावित राजस्व हानि की भरपाई करने का विचार अत्यंत कमजोर है। उन्हें जीएसटी के शुरुआती पांच साल तक क्षतिपूर्ति उपकर के जरिये भरपाई की गई है। जब उपकर संग्रह महामारी के दौरान कम हो गया तो उन्हें उधारी के जरिये भरपाई की गई। फिर उसे चुकाने के लिए उपकर संग्रह की अवधि बढ़ाई गई। यह व्यवस्था हमेशा जारी नहीं रह सकती।
इसलिए, जब परिषद दरों में बदलाव पर विचार कर रही है, तो कुछ महत्त्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है। इस प्रक्रिया को केवल घरेलू मांग को बढ़ाने के उपाय के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। उदाहरण के लिए कुछ लोगों का तर्क है कि अमेरिका द्वारा लगाए गए उच्च शुल्कों के कारण संभावित निर्यात हानि की भरपाई के लिए करों को कम किया जाए। बल्कि इस प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य कर संरचना को सरल बनाना और राजस्व संग्रह को बेहतर करना होना चाहिए।
जैसा कि अर्थशास्त्री अरविंद सुब्रमण्यन तथा अन्य लोगों ने इसी समाचार पत्र में लिखा, वास्तविक लागू जीएसटी दरें व्यापक दर स्लैब से ऊंची हैं। समस्या का एक हिस्सा उपकर संग्रह के अंत के साथ ही समाप्त हो जाएगा। ऐसे में अगर उपकर को जीएसटी दर में समाहित कर लिया जाना है तो इसे सावधानी से पूरा करना होगा।
राजस्व संग्रह के मामले में सरकार ने दिसंबर 2024 में संसद को सूचित किया कि 2023-24 में औसत जीएसटी दर 11.64 फीसदी थी, जो कि सरकारी समिति द्वारा सुझाई गई 15-15.5 फीसदी की राजस्व निरपेक्ष दर से काफी कम थी। जीएसटी लागू होने के समय इसकी औसत दर 14.4 फीसदी थी। दरों में जल्दबाजी में की गई कटौती ने राजस्व संग्रह को प्रभावित किया।
परिषद को वही गलती दोहराने से बचना चाहिए। राज्यों का यह तर्क उचित है कि वे जीएसटी पर अधिक निर्भर हैं। इसलिए उनके लिए यह बेहतर होगा कि वे राजस्व बढ़ाने के उपाय खोजें, न कि किसी मुआवज़े पर निर्भर रहें। केंद्र और राज्य दोनों को राजस्व संग्रह में सुधार करना होगा ताकि सरकार का कुल घाटा और ऋण एक टिकाऊ मार्ग पर बना रह सके।