स्थिर बैंकिंग व्यवस्था वित्तीय स्थिरता के लिए अत्यंत आवश्यक है। ऐसे में यह आवश्यक है कि बैंकों का समुचित नियमन हो और वे अनावश्यक जोखिम न लें। बैंकिंग क्षेत्र में ऋण की गुणवत्ता और फंसे हुए कर्ज का स्तर अक्सर सार्वजनिक तौर पर ध्यान आकृष्ट करता है। नियामक के लिए यह आवश्यक है कि वह निवेश पोर्टफोलियो पर करीबी नजर रखे।
भारतीय रिजर्व बैंक ने मंगलवार को बैंकिंग क्षेत्र के लिए संशोधित निवेश मानक जारी किए हैं। यह बात ध्यान देने लायक है कि अमेरिका में हाल में बैंकों को लेकर जो दिक्कत हुई वह एक हद तक अपर्याप्त निवेश नियमन का परिणाम थी। सिलिकन वैली जैसे बैंकों में परिसंपत्ति और देनदारी दोनों ही मोर्चों पर संकेंद्रण बहुत अधिक था। हालांकि भारतीय बैंकों के सामने ऐसा कोई खतरा नहीं है लेकिन अनुभव और प्रमाण के आधार पर नियामकीय ढांचे में संशोधन से नियामकीय ढांचे को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी।
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निवेश के मूल्यांकन को लेकर मौजूदा नियमन निर्देशों की बात करें तो वे व्यापक तौर पर अक्टूबर 2000 में जारी फ्रेमवर्क पर आधारित हैं। नए मानक एक परिचर्चा पत्र पर आधारित हैं जिसे रिजर्व बैंक ने 2022 में जारी किया था। बैंकिंग नियामक के अनुसार संशोधित ढांचा वैश्विक मानकों और श्रेष्ठ व्यवहार के अनुरूप है। वह उचित मूल्य लाभ एवं हानि का सुसंगत उपचार प्रस्तुत करेगा।
बैंकों के पास एक स्पष्ट रूप से चिह्नित कारोबारी पुस्तक होगी। नए मानक मौजूदा निवेश बही में से परिपक्वता तक धारण (एचटीएम) करने वाले हिस्से को भी निकाल देंगे और साथ ही खुलासों में इजाफा होगा। यह फ्रेमवर्क अगले वित्त वर्ष से प्रभावी होगा और यह बैंक बोर्डों पर और अधिक जिम्मेदारी डालता है। इसमें बैंकों से अपेक्षा की गई है कि वे व्यापक निवेश नीति को अपनाएं जो निदेशक मंडल द्वारा समुचित रूप से मंजूर हो।
ब्योरे की बात करें तो बैंकों को पूरे निवेश पोर्टफोलियो को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत करना होगा- एचटीएम, बिक्री के लिए उपलब्ध (एएफएस) और लाभ-हानि के जरिये उचित मूल्य (एफवीटीपीएल)। बहरहाल इसमें संयुक्त उपक्रमों और अनुषंगी कंपनियों में किया गया निवेश शामिल नहीं होगा। कारोबार के लिए रखी गई प्रतिभूतियां एफवीटीपीएल की उप श्रेणी में होंगी।
एचटीएम श्रेणी की सीमा को समाप्त किए जाने से बैंकों को अपनी निवेश बही का गठन करने की आजादी मिलेगी। इससे कॉर्पोरेट बॉन्ड की मांग बढ़ेगी। इसके अलावा इससे आय में स्थिरता आएगी। बहरहाल बैंकों को अपनी बही का पुनर्गठन सावधानी से करना होगा क्योंकि उदाहरण के लिए वे प्रतिभूतियों को आसानी से एचटीएम के अंदर और बाहर नहीं कर सकेंगे। बदलाव की अवधि के बाद बैंक निवेश को आसानी से पुनर्वर्गीकृत नहीं कर पाएंगे।
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पुनर्वर्गीकरण के लिए न केवल बोर्ड की मंजूरी की आवश्यकता होगी बल्कि रिजर्व बैंक की पूर्व मंजूरी भी जरूरी होगी जो दुर्लभ परिस्थितियों में ही दी जाएगी। किसी भी वित्तीय वर्ष में एचटीएम श्रेणी से बिकने वाली प्रतिभूति को पोर्टफोलियो के आरंभिक मूल्य के 5 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए। इससे अधिक बिक्री के लिए रिजर्व बैंक की मंजूरी की जरूरत होगी।
फ्रेमवर्क में उस स्थिति के लिए भी विस्तृत नियमों की व्यवस्था की गई है जो प्रतिभूतियों के एक श्रेणी से दूसरी श्रेणी में जाने पर अंकेक्षण में काम आएंगे। किस तरह की प्रतिभूतियों को किस श्रेणी में रखना है और उनका मूल्यांकन कैसे होगा इस बारे में भी स्पष्ट नियम उल्लिखित हैं।
बैंकों को निवेश में उतार-चढ़ाव के लिए भंडार बनाने की भी आवश्यकता है। ये जहां दूसरी श्रेणी के पूंजी में शामिल किए जाने के लिए योग्य होगा वहीं इससे बैंकिंग व्यवस्था की नुकसान वहन करने की क्षमता बढ़ेगी। कुल मिलाकर उम्मीद यही है कि नया फ्रेमवर्क खुलासों में सुधार करेगा और बैंकिंग तंत्र में अधिक स्थिरता लाएगा।