अमेरिका ने भारतीय निर्यात पर शुल्क दरों को बढ़ाकर 50 फीसदी कर दिया है। इसमें 25 फीसदी का वह अतिरिक्त शुल्क शामिल है जो भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने के कारण जुर्माने के तौर पर लगाया गया है। भारत अपने निर्यात का करीब 20 फीसदी अमेरिका को करता है ऐसे में निर्यातकों पर इसका गहरा असर होगा।
अनुमानों के मुताबिक भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात का 66 फीसदी हिस्सा ऐसा है जिस पर 50 फीसदी शुल्क लगेगा। इससे रत्न एवं आभूषण, कपड़ा एवं परिधान, हस्तशिल्प और कृषि उत्पाद प्रभावित होंगे। ऊंची शुल्क दरें भारतीय निर्यात को अन्य देशों की तुलना में गैर प्रतिस्पर्धी बना देंगी। गत वित्त वर्ष में भारत ने अमेरिका को 86.5 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुएं निर्यात की थीं। इस दौरान भारत को 41 अरब डॉलर का अधिशेष हासिल हुआ।
अगर दरें इस स्तर पर बनी रहती हैं तो इन आंकड़ों में भारी बदलाव आएगा। भारत को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने कहा भी है कि अतिरिक्त शुल्क दरें उन देशों पर लागू की जाएंगी जिन्होंने अमेरिकी टेक कंपनियों के लिए भेदभाव वाले नियम बना रखे हैं। उन्होंने चिप की आपूर्ति सीमित करने की बात भी की। यह बात भारत को भी प्रभावित करेगी।
अब जबकि भारत कठिन हालात से दो-चार है तो हमारे पास क्या विकल्प हैं? सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हमें अमेरिका के साथ बातचीत जारी रखनी चाहिए। हाल ही में दोनों देशों के बीच जो वार्ता हुई वह बताती है कि संचार के दरवाजे खुले हुए हैं। यह प्रक्रिया जारी रहनी चाहिए। भारत द्वारा रूसी तेल आयात करने पर अतिरिक्त शुल्क लागू करना यह दिखाता है कि ट्रंप शुल्क दरों का इस्तेमाल भू राजनीतिक लक्ष्य पाने के लिए किया जा रहा है।
यह गलत रणनीति है लेकिन भारत को इसका शिकार होने से बचने का प्रयास करना होगा जैसा कि हम पहले भी कह चुके हैं। रूसी तेल पर रियायत काफी कम हो चुकी है और भारत को धीरे-धीरे वैकल्पिक स्रोतों की दिशा में बढ़ना होगा। परंतु जोखिम यह है कि ट्रंप शायद केवल तेल तक नहीं रुकेंगे।
वह अमेरिकी टेक कंपनियों के साथ भेदभाव के बहाने या किसी अन्य बहाने से शुल्क दरों में और अधिक इजाफा कर सकते हैं। ऐसे में इन हालात से निपटना आसान नहीं है। भारत को हर हालात में बातचीत जारी रखनी चाहिए और एक हद तक रियायत देने के लिए तैयार रहना चाहिए।
इसके अलावा, भारत के सबसे बड़े बाजार में अनिश्चित माहौल को देखते हुए, भारतीय निर्यातकों को अन्य बाजारों की ओर ध्यान देना होगा और विविधता में इजाफा करना होगा। हालांकि, यह आसान नहीं होगा क्योंकि कई देश भी यही प्रयास कर रहे होंगे। इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि वर्तमान में चल रही व्यापार वार्ताएं, जैसे कि यूरोपीय संघ के साथ, जल्द से जल्द पूरी की जाएं।
भारत को फिर से यह मूल्यांकन करना चाहिए कि क्या उसे बड़े क्षेत्रीय व्यापार समझौतों में शामिल होना चाहिए। ये सभी प्रयास अमेरिका के बाजार के लगभग बंद हो जाने की तत्काल समस्या का समाधान नहीं कर सकते, लेकिन भारत को मध्यम और दीर्घकालिक संभावनाओं पर अवश्य ध्यान देना होगा।
भारतीय कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार में तभी प्रतिस्पर्धा कर पाएंगी जब वे खुद प्रतिस्पर्धी होंगी। भारत प्रतिस्पर्धा के मुद्दे के कारण भी व्यापार समझौतों में शामिल होने का अनिच्छुक रहा है। भारत को अगली पीढ़ी के सुधारों की दिशा में तेजी से बढ़ना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में इसकी बात की थी। अब वक्त आ गया है कि बाकी व्यवस्था भी तेजी से उसी दिशा में बढ़े।
सुधारों के क्रियान्वयन में देरी से आने वाले समय में देश की वृद्धि और रोजगार संभावनाएं प्रभावित हो सकती हैं। ऐसे में भारत को तीन अहम क्षेत्रों पर ध्यान देने की आवश्यकता है: अमेरिका के साथ संपर्क बरकरार रखना, व्यापार में विविधता लाना और प्रतिस्पर्धी क्षमता मजबूत करना। वैश्विक माहौल आने वाले समय में भी प्रतिकूल बना रह सकता है।