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Editorial: बिलासपुर रेल दुर्घटना ने फिर उठाए सुरक्षा पर सवाल

शुरुआती जांच बताती है कि यह दुर्घटना तब हुई जब सवारी गाड़ी खतरे का निशान दिखा रहे सिग्नल को पार कर गई

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- November 06, 2025 | 10:02 PM IST

छत्तीसगढ़ में बिलासपुर के निकट एक स्थानीय मेमू (मेनलाइन इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट) सवारी गाड़ी और एक मालगाड़ी की टक्कर ने देश की रेलवे सुरक्षा तैयारी को एक बार फिर सवालों के घेरे में ला दिया है। शुरुआती जांच बताती है कि यह दुर्घटना तब हुई जब सवारी गाड़ी खतरे का निशान दिखा रहे सिग्नल को पार कर गई।

यह बताता है कि इंसानी गलतियों और सिग्नलिंग में चूक भारत के विशाल रेल नेटवर्क में अभी भी एक बड़ी कमजोरी है। यह दुर्घटना उस समय हुई है जबकि केंद्र सरकार ने हाल ही में विभिन्न राज्यों में 900 किलोमीटर नए ट्रैक बिछाने के लिए 24, 634 करोड़ रुपये की राशि मंजूरी की है। बहरहाल, रेल लाइनों के विस्तार में सुरक्षा को दरकिनार नहीं कर सकता है।

यह सही है कि उल्लेखनीय रेल दुर्घटनाओं की संख्या 2019-20 के 55 से घटकर 2024-25 में 31 रह गई है लेकिन ऐसी हर घटना बताती है सुरक्षा के मामले में अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है। वित्त वर्ष 26 के बजट अनुमानों के मुताबिक सरकार ने 2025-26 में सुरक्षा के मसले पर खर्च के लिए 1.16 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए। इस राशि का पांचवां हिस्सा पटरियों के नवीनीकरण पर खर्च होना है। कुल रेलवे व्यय के प्रतिशत के रूप में सुरक्षा पर होने वाला खर्च वित्त वर्ष 19 के 27 फीसदी से घटकर वित्त वर्ष 26 में 21 फीसदी रह गया।

आधुनिकीकरण के उपाय मसलन स्वदेशी टकरावरोधी व्यवस्था ‘कवच’ की स्थापना, ट्रैक सर्किटिंग और इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग का विस्तार सही दिशा में उठाए गए कदम हैं। हालांकि इनका क्रियान्वयन अभी भी असंगत और अधूरा बना हुआ है। वर्ष 2024-25 की आर्थिक समीक्षा में भी कहा गया था कि इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग के लिए चिह्नित 62 स्टेशनों में से केवल 25 पर ही वित्त वर्ष 25 में काम पूरा हो सका। 37 अन्य का उन्नयन बाकी है। भारी मालवहन और घने यात्री परिवहन दोनों का प्रबंधन इस चुनौती को और कठिन बना रहा है जबकि कर्मचारियों में थकान भी सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर रही है।

बहरहाल, चाहे जो भी हो रेलवे ने तकनीक के क्षेत्र में उत्साहजनक वृद्धि हासिल की है। भारतीय रेल और डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (डीएफसीसीआईएल) के बीच हालिया गठजोड़ का इरादा आर्टिफिशल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग की मदद से रोलिंग स्टॉक और पटरियों की जांच करने का है। हर तरह की क्रॉसिंग पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जा रहे हैं ताकि ट्रेनों की भिड़ंत जैसी घटनाओं को टाला जा सके। हालांकि, इन बिखरे हुए प्रयासों को एक करने की आवश्यकता है ताकि तकनीक, अधोसंरचना और इंसानी कारकों को जोड़ने वाली सुरक्षा रणनीति कायम की जा सके।

सुरक्षा के लिए बहुमुखी रणनीति की आवश्यकता है। सबसे पहले डिजिटल सिग्नलिंग का व्यापक इस्तेमाल शुरू करना होगा और कवच जैसे भिड़ंत रोकने वाले उपायों को ऐसे सभी रूटों पर लागू करना होगा जहां जोखिम बहुत अधिक है। दूसरी बात, सेंसर और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस की मदद से अनुमान लगाकर मरम्मत करनी होगी और पहले ही समस्याओं का पता लगाना होगा। तीसरा, कर्मचारियों के प्रबंधन पर ध्यान देने की जरूरत है।

काम के बेहतर हालात, थकान की निगरानी, अतिरिक्त लोको पायलट की भर्ती और नई तकनीक को लेकर विशेष प्रशिक्षण की मदद से मानवीय चूक में भारी कमी की जा सकती है। चौथी बात, हर विस्तार या आधुनिकीकरण परियोजना के लिए स्वतंत्र सुरक्षा जांच जरूरी की जानी चाहिए। ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सिग्नलिंग, ब्रेकिंग और आपातकालीन प्रणालिया अधोसंरचना की क्षमता वृद्धि के साथ तालमेल बनाए रख सकें।

इसमें दो राय नहीं कि भारत को अधिक रेल पटरियों, तेज ट्रेनों और विस्तृत संपर्क व्यवस्था की आवश्यकता है। परंतु सुरक्षा के बिना तेज गति कोई कामयाबी नहीं है। नई रेल लाइन के हर किलोमीटर के साथ लक्ष्य को सिर्फ तेज से ‘सुरक्षित और तेज’ की ओर ले जाने की आवश्यकता है। देश में रोजाना सफर करने वाले 2.4 करोड़ रेल यात्रियों के लिए रेलवे प्रणाली में विश्वास केवल कुशलता या विस्तार पर नहीं बल्कि इस आश्वासन पर टिकी है कि आगामी यात्रा सुरक्षित है।

First Published : November 6, 2025 | 9:55 PM IST