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बैंकिंग सेक्टर में आने वाली है सुधारों की नई लहर, कैपिटल और ग्रोथ को मिलेगी रफ्तार

बैंकों में विदेशी हिस्सेदारी की सीमा हटाने से हालात बदलेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि बैंकों को व्यावसायिक संस्थाओं की तरह ही माना जाना चाहिए

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तमाल बंद्योपाध्याय   
Last Updated- November 06, 2025 | 9:28 PM IST

भारतीय बैंकिंग क्षेत्र कई मोर्चों पर सुधार की राह पर है। पिछले एक दशक में यह उद्योग लगातार खबरों में रहा है। सबसे पहले, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा के माध्यम से बड़े पैमाने पर सफाई अभियान चलाया। उसने डूबती परिसंपत्तियों का पता लगाया और यह सुनिश्चित किया कि बैंक इनके समाधान के लिए धनराशि अलग रखें और अपनी बैलेंस शीट को मजबूत बनाएं। वित्त वर्ष 19 की विभिन्न तिमाहियों में कम से कम तीन बैंकों की सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) 25 फीसदी या उससे अधिक थीं, और प्रोविजनिंग यानी प्रावधान के बाद चार बैंकों का शुद्ध एनपीए 10 से 19 फीसदी के बीच था।

बैंकों को अपनी ऋण मूल्यांकन और जोखिम प्रबंधन क्षमताओं को भी मजबूत करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसके बाद 11 सरकारी बैंकों (पीएसबी) को त्वरित सुधार कार्रवाई (पीसीए) ढांचे के अंतर्गत रखा गया, जिसके तहत उन्हें तब तक नए ऋण देने से रोक दिया गया, जब तक कि वे जमा के रूप में एकत्रित जनता के धन को उधार देने के लिए सही क्षेत्र और उधारकर्ताओं की पहचान करने में कुशलता हासिल नहीं कर लेते।

अगला चरण समेकन का था। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने 2017 में अपने पांच सहयोगी बैंकों और भारतीय महिला बैंक का अपने में विलय कर लिया। इसके बाद 2019 और 2020 में पीएसबी के बीच कई विलय हुए। सरकारी बैंकों की संख्या 27 से घटकर 12 रह गई।

कुछ बैंकों को छोड़कर, जो समेकन अभियान का हिस्सा नहीं रहे हैं, अधिकांश सरकारी बैंकों ने अपना आकार बढ़ा लिया है। उनके पास अच्छी खासी पूंजी है तथा वे रिकॉर्ड मुनाफा कमा रहे हैं। पिछले साल सभी 12 सरकारी बैंकों ने लाभ दर्ज किया। वित्त वर्ष 2025 में उनका समेकित शुद्ध लाभ 1.78 लाख करोड़ रुपये रहा, जो इसके पिछले वर्ष की तुलना में 26 फीसदी की वृद्धि दर्शाता है। इसमें एसबीआई की हिस्सेदारी कम से कम 40 फीसदी यानी 70,901 करोड़ रुपये थी।

वित्त वर्ष 2018 की तुलना में कितना बड़ा बदलाव! उस वर्ष सरकारी बैंकों का समेकित शुद्ध घाटा 85,390 करोड़ रुपये था। उस समय 21 सरकारी बैंकों में से केवल दो ही शुद्ध लाभ अर्जित कर पाए थे – इंडियन बैंक और विजया बैंक (जिसका अप्रैल 2019 में देना बैंक के साथ बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय हो गया था)। यहां तक कि एसबीआई ने भी उस वर्ष शुद्ध घाटा दर्ज किया था।

सभी सरकारी बैंकों ने अभी तक अपनी सितंबर तिमाही की आय की घोषणा नहीं की है। चालू वित्त वर्ष की जून तिमाही में उनका सामूहिक शुद्ध लाभ 44,218 करोड़ रुपये था। जून तिमाही में एक भी सरकारी बैंक का शुद्ध एनपीए 1 फीसदी नहीं था। एसबीआई का शुद्ध एनपीए 47 आधार अंक (बीपीएस) था, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और इंडियन बैंक, दोनों का शुद्ध एनपीए केवल 18 आधार अंक था।

इस पृष्ठभूमि में सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए सुधारों का एक नया दौर शुरू करने के लिए तैयार है। उसने पहले ही निजी बैंकिंग उद्योग के ढांचे में बदलाव शुरू कर दिया है। सबसे पहले अक्टूबर में, कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने सरकारी बैंकों के पूर्णकालिक निदेशकों के चयन के लिए नए दिशानिर्देशों की घोषणा की। अब निजी क्षेत्र के उम्मीदवार एसबीआई के चार प्रबंध निदेशकों में से किसी एक पद के लिए आवेदन कर सकते हैं। शेष तीन पदों के लिए सरकारी क्षेत्र के अन्य बैंकर भी आवेदन कर सकते हैं। अब तक ये पद केवल आंतरिक उम्मीदवारों के लिए आरक्षित थे।

सरकारी क्षेत्र के बैंकों में शीर्ष पदों के लिए निजी क्षेत्र के लिए भी दरवाजे खोल दिए गए हैं। चयन प्रक्रिया में निजी और सरकारी क्षेत्र, दोनों की ओर से खुला विज्ञापन शामिल होगा। अंततः कम से कम 10 लाख करोड़ रुपये के कारोबार वाले सरकारी क्षेत्र के बड़े बैंकों के चार कार्यकारी निदेशकों में से एक निजी क्षेत्र से आ सकता है।

पिछले महीने, एमिरेट्स एनबीडी बैंक (ईएनबीडी) और आरबीएल बैंक के निदेशक मंडल ने एमिरेट्स बैंक द्वारा आरबीएल बैंक में नियंत्रक हिस्सेदारी हासिल करने के लिए उसमें 26,850 करोड़ रुपये निवेश करने पर सहमति जताई। ईएनबीडी, आरबीएल बैंक में 60 फीसदी हिस्सेदारी खरीदेगा, अपनी तीन शाखाओं का भारतीय निजी बैंक में विलय करेगा और अंततः इसे अपने शेयरधारकों, नियामकों और सरकार की मंजूरी के अधीन एक पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी बनाएगा। इससे पहले, जापानी दिग्गज कंपनी सूमीतोमो मित्सुई बैंकिंग कॉरपोरेशन ने येस बैंक में 24.22 फीसदी हिस्सेदारी हासिल की थी।

हाल में दुनिया की सबसे बड़ी वैकल्पिक परिसंपत्ति प्रबंधक कंपनी ब्लैकस्टोन द्वारा फेडरल बैंक में 9.99 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने के लिए 6,197 करोड़ रुपये का निवेश किया गया। इसके अलावा, अमेरिका की निजी इक्विटी फर्म वारबर्ग पिंकस एलएलसी और अबू धाबी इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी (एडीआईए) आईडीएफसी फर्स्ट बैंक में 7,500 करोड़ रुपये का निवेश कर रही हैं। हम यह देखने के लिए उत्सुक हैं कि आईडीबीआई बैंक का क्या होगा, जहां सरकार और भारतीय जीवन बीमा निगम की संयुक्त रूप से 94.72 फीसदी हिस्सेदारी है, और दोनों 60.72 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की योजना बना रहे हैं।

हालांकि घरेलू निजी बैंकों में विदेशी स्वामित्व की सीमा 74 फीसदी तथा मताधिकार 26 फीसदी पर बरकरार है, फिर भी निजी बैंकों में विदेशी निवेशकों की भूमिका के संबंध में नियामक के दृष्टिकोण में स्पष्ट रूप से बदलाव आया है।

जल्द ही, हम सरकारी बैंकों के क्षेत्र में भी ऐसा ही कुछ देखेंगे। विदेशी निवेशकों को सरकारी बैंकों में ज्यादा हिस्सेदारी रखने की अनुमति देने की योजना है। तो क्या सरकार इन बैंकों में अपनी हिस्सेदारी 51 फीसदी से कम कर देगी? बिल्कुल नहीं। लेकिन विदेशी हिस्सेदारी, जिसकी सीमा 20 फीसदी है, बढ़ाकर 49 फीसदी की जाएगी।

सरकार इन बैंकों में पूंजी डालती रही है। सरकारी बैंकों को सक्रिय रखने के लिए वित्त वर्ष2022 तक 4,38,780 करोड़ रुपये डाले जा चुके हैं। यह प्रक्रिया 1980 के दशक के अंत में शुरू हुई थी। सबसे बड़ी किस्त वित्त वर्ष 2019 में जारी की गई जो 1,06,000 करोड़ रुपये थी , उसके बाद वित्त वर्ष 2018 में 90,000 करोड़ रुपये और वित्त वर्ष 2020 में 70,000 करोड़ रुपये जारी किए गए। उस दौर में इस उदार पूंजी निवेश के
बिना, सरकारी क्षेत्र के बैंक अपनी बैलेंस शीट को साफ नहीं कर पाते।

मजबूत और लाभ कमाने वाले सरकारी बैंकों ने पिछले तीन वर्षों में यानी वित्त वर्ष 2023 से वित्त वर्ष 2025 के बीच सरकार को कम से कम 54,500 करोड़ रुपये का लाभांश दिया है। इस समय, सरकारी बैंकों में विदेशी हिस्सेदारी बढ़ाना सही कदम है। इससे उन्हें अपनी पूंजी बढ़ाने और कारोबार बढ़ाने में मदद मिलेगी।

फिलहाल, सरकारी बैंकों में विदेशी हिस्सेदारी बहुत कम है। यह सबसे ज्यादा केनरा बैंक (11.88 फीसदी) में है, उसके बाद एसबीआई (9.56 फीसदी), बैंक ऑफ बड़ौदा (8.71 फीसदी) और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (7.86 फीसदी) का स्थान है। बाकी बैंकों में यह 5 फीसदी से भी कम है; और कम से कम तीन बैंकों में तो यह कुछ ही आधार अंक है।

सरकारी बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी कितनी रही है? न्यूनतम सीमा 51 फीसदी है, लेकिन कम से कम तीन बैंकों में यह 90 फीसदी से ज्यादा है। एसबीआई में यह 55.5 फीसदी है। बाकी बैंकों में यह 62.93 फीसदी से 89.27 फीसदी के बीच है।

क्या सरकार अपनी हिस्सेदारी विदेशी निवेशकों को बेचेगी? नहीं। मेरा अनुमान है कि सरकारी बैंक पात्र संस्थागत नियोजन (क्यूआईपी) और अन्य माध्यमों से नई पूंजी जुटाएंगे। चूंकि ये बैंक मजबूत और लाभ कमाने वाले हैं, इसलिए इनके लिए कई खरीदार होंगे। हालांकि इसे सफल बनाने के लिए सरकार को इन बैंकों के संचालन के तरीके पर पुनर्विचार करना चाहिए।

बैंकों में विदेशी हिस्सेदारी की सीमा हटाने से हालात बदलेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि बैंकों को व्यावसायिक संस्थाओं की तरह ही माना जाना चाहिए।

First Published : November 6, 2025 | 9:28 PM IST