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वित्त मंत्री ने दिए संकेत: बड़े बैंकों के निर्माण के लिए सरकारी बैंकों के विलय के दूसरे चरण पर शुरू हुई चर्चा

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के एकीकरण का पहला चरण वित्त वर्ष 2019-20 में हुआ था। उस समय 13 बैंकों को मिलाकर 5 बैंक बनाए गए थे

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अभिजित लेले   
Last Updated- November 06, 2025 | 10:25 PM IST

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में एकीकरण के दूसरे चरण पर बातचीत शुरू होने का संकेत देते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज कहा कि सरकार ने भारत में बड़े बैंक बनाने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने हेतु भारतीय रिजर्व बैंक और बैंकों के साथ चर्चा शुरू कर दी है।उन्होंने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय देश में बड़ी बैंकिंग संस्थाओं के गठन के मार्ग में से एक है।

सीतारमण ने एसबीआई बैंकिंग ऐंड इकनॉमिक्स कॉन्क्लेव में कहा, ‘देश को कई बड़े और विश्व स्तरीय बैंकों की जरूरत है। हमें बैंकों के साथ बैठकर बात करनी होगी कि वे इसे कैसे आगे ले जाना चाहते हैं। हमें आरबीआई के साथ भी चर्चा करनी होगी कि वे बड़े बैंक बनाने के बारे में क्या सोचते हैं।’

उन्होंने कहा, ‘इस पर कोई निर्णय लेने से पहले बहुत सारा काम किया जाना बाकी है। हम आरबीआई और बैंकों के साथ इस पर चर्चा कर रहे है।’ उन्होंने संकेत दिया कि सरकार और नियामक बड़े बैंक बनाने के लिए विलय सहित कई विकल्पों पर विचार कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘आपको एक ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र और माहौल की जरूरत है जिसमें ज्यादा बैंक काम कर सकें और आगे बढ़ सकें।’

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के एकीकरण का पहला चरण वित्त वर्ष 2019-20 में हुआ था। उस समय 13 बैंकों को मिलाकर 5 बैंक बनाए गए थे।

भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के कुल 12 बैंक हैं मगर संपत्ति के आधार पर वैश्विक बैंकों की शीर्ष 50 सूची में केवल एक घरेलू बैंक है। एसऐंडपी रैंकिंग के अनुसार स्टेट बैंक (43वें) और एचडीएफसी बैंक (73वें) शीर्ष 100 वैश्विक बैंकों में शामिल हैं। शीर्ष चार वैश्विक बैंक चीन के हैं और शीर्ष 20 में से 7 बैंक भी इसी देश के हैं।

वित्त मंत्री कहा, ‘आपको ज्यादा सक्रिय होना होगा, ग्राहकों तक पहुंच बनानी होगी। साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि आप जो भी करें, उसमें पुराने जमाने की बैंकिंग और नई तकनीक से संचालित बैंकिंग, दोनों का मिश्रण हो।’

सीतारमण ने कहा, ‘भाषा आपके ग्राहकों से संवाद करने का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की ओर से मैं जिस एकमात्र मुद्दे का बचाव नहीं कर पा रही हूं, वह यह है कि वे कहते हैं कि हमारी मानव संसाधन नीति के कारण हम अलग-अलग मातृभाषाओं वाले लोगों को दूसरे क्षेत्रों में नियुक्त करते हैं।’

First Published : November 6, 2025 | 10:20 PM IST