दस साल की परिपक्वता अवधि वाले सरकारी बॉन्ड और अमेरिकी ट्रेजरी के बीच का अंतर 250 आधार अंक के करीब पहुंचने के साथ ही भारतीय रिजर्व बैंक संभवत: बाजार को अपनी चिंताओं से अवगत कराना चाहता है। यही कारण है कि केंद्रीय बैंक इस सप्ताह और अगले सप्ताह बाजार प्रतिभागियों के साथ कई बैठकें कर रहा है।
फरवरी और जून के बीच रीपो दर में कुल मिलाकर 100 आधार अंकों की कमी किए जाने के बावजूद 10-वर्षीय बॉन्ड यील्ड नीतिगत दरों के अनुरूप कम नहीं हुई है। जून में नीतिगत दर में 50 आधार अंकों की कटौती किए जाने के बाद यील्ड और बढ़ गई है। बेंचमार्क 10 साल की परिपक्वता अवधि वाले सरकारी बॉन्ड पर यील्ड में जून के बाद 24 आधार अंकों की वृद्धि हुई है। जबकि इस दौरान 10-वर्षीय अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड पर यील्ड में 32 आधार अंकों की गिरावट आई है।
बेंचमार्क 10-वर्षीय बॉन्ड पर यील्ड फिलहाल 6.53 फीसदी है। यील्ड स्प्रेड साल की शुरुआत में लगभग 219 आधार अंकों से बढ़कर फिलहाल करीब 244 आधार अंक हो गया है। पिछले सप्ताह केंद्रीय बैंक ने 7 साल की परिपक्वता अवधि वाले बॉन्ड की नीलामी रद्द कर दी थी क्योंकि बाजार ने अधिक यील्ड की मांग की थी। इससे 7 साल और 10 साल की परिपक्वता अवधि वाले बॉन्ड पर यील्ड का रुख उल्टा हो सकता था।
बाजार प्रतिभागियों ने रिजर्व बैंक के साथ बातचीत के दौरान खुले बाजार (ओएमओ) से बॉन्ड खरीद की अनुमति मांगी थी। उनका कहना था कि इससे तरलता बड़ेगी और यील्ड में तेजी पर लगाम लगेगा। हो सकता है कि आरबीआई ने नेगोशिएटेड डीलिंग सिस्टम-ऑर्डर मैचिंग (एनडीएस-ओएम) प्लेटफॉर्म पर बॉन्ड खरीद के जरिये हस्तक्षेप किया होगा। यह इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग सिस्टम है जो बैंकों, प्राथमिक डीलरों और म्युचुअल फंडों के बीच पारदर्शी और ऑर्डर से संचालित लेनदेन को सुविधाजनक बनाता है। इस समय ओएमओ की घोषणा करना मुश्किल होगा क्योंकि नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) में कटौती की अंतिम किस्त लंबित है, जो 29 नवंबर से शुरू होने वाले पखवाड़े के लिए निर्धारित है।
अब आगे का रुख निर्धारित करने के लिए बाजार की नजर शुक्रवार को होने वाली 32,000 करोड़ रुपये के नए 10-वर्षीय बॉन्ड की नीलामी पर होगी।
3 अक्टूबर को हुई पिछली नीलामी में कूपन 6.48 फीसदी पर निर्धारित किया गया था। आगामी नीलामी में कटऑफ यील्ड में 3 से 4 आधार अंकों की वृद्धि होने की उम्मीद है।
पिछली बार आरबीआई ने ग्रीन बॉन्ड को छोड़कर 10-वर्षीय सरकारी बॉन्ड को 17 फरवरी, 2023 को वापस ले लिया था। निवेशकों की ओर से कमजोर मांग के कारण केंद्रीय बैंक ने प्राथमिक डीलरों को 7.26 फीसदी 2033 बॉन्ड के 8,254 करोड़ रुपये वापस किए थे, जबकि अधिसूचित रकम 12,000 करोड़ रुपये थी।
डीलरों के अनुसार, कई बैंक काफी मार्क-टू-मार्केट नुकसान पहले ही झेल चुके हैं। ऐसे में वे अतिरिक्त जोखिम नहीं लेना चाहते हैं और इसलिए एसएलआर होल्डिंग्स में कमी कर रहे हैं।