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दोधारी तलवार: भाजपा के घोषणापत्र में रक्षा क्षेत्र के लिए क्या अहम

BJP's manifesto defence: वर्ष 2014 और 2019 के आम चुनावों के दौरान पार्टी के घोषणापत्र में भाजपा ने रक्षा से जुड़े चार प्रमुख मुद्दे और कई छोटे मुद्दे उठाए थे।

Last Updated- March 06, 2024 | 10:02 PM IST
भाजपा के घोषणापत्र में रक्षा क्षेत्र के लिए क्या अहम, BJP's manifesto on defence

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने चुनावी घोषणापत्र के लिए जनता से सुझाव मांगने के मकसद से करीब एक पखवाड़े के अभियान की शुरूआत की है। पार्टी ने विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों के लोगों से सुझाव लेने के लिए वीडियो रथ भेजना शुरू कर दिया है। पार्टी ने नमो ऐप के जरिये भी सुझाव मांगे हैं और देश भर में करीब 6,000 ड्रॉप बॉक्स लगाए हैं जिनमें सुझाव दिए जा सकते हैं। पार्टी ने अपने काडर को संभावित मतदाताओं से आमने-सामने मिलकर बातचीत करने के लिए भी प्रोत्साहित किया है।

भाजपा ने 2024 के आम चुनाव घोषणापत्र के लिए 15 मार्च तक करीब 1 करोड़ भारतीयों से सुझाव लेने की योजना बनाई है। इस घोषणापत्र को ‘संकल्प पत्र’ कहा जाएगा। इनमें से पार्टी रक्षा और सुरक्षा से संबंधित मुद्दों के सार निकालेगी और इसे 2024 के आम चुनावों के घोषणापत्र में शामिल करेगी।

वर्ष 2014 और 2019 के आम चुनावों के दौरान पार्टी के घोषणापत्र में भाजपा ने रक्षा से जुड़े चार प्रमुख मुद्दे और कई छोटे मुद्दे उठाए थे। घोषणापत्र में यह आरोप लगाया गया था कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने सुरक्षा के मोर्चे पर लापरवाही बरती और इस वजह से चीन और पाकिस्तान की तरफ से सीमा पर कई बार घुसपैठ की गईं। इसके अलावा लड़ाकू विमानों, युद्धपोतों और पनडुब्बियों की कमी, नौसेना के युद्धपोतों से जुड़ी कई दुर्घटनाएं, पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी समूहों की तरफ से बढ़ते दबाव और बांग्लादेश से अवैध आप्रवासन जैसे मुद्दे भी उठाए गए। दूसरा, भाजपा के घोषणापत्र में भारत के परमाणु सिद्धांत को ‘अद्यतन’ करने का वादा किया गया था।

इसकी वजह से ये अटकलें बढ़ने लगीं कि भारत अब ‘परमाणु हथियारों का पहले इस्तेमाल न करने की नीति’ छोड़ने पर विचार कर रहा है। वर्ष 2014 के घोषणापत्र में यह वादा किया गया था कि भारत के परमाणु सिद्धांत का अध्ययन विस्तार से किया जाएगा और इसमें संशोधन किए जाने के साथ ही इसे अद्यतन किया जाएगा। यह स्पष्ट नहीं है कि इसका अर्थ बड़े पैमाने पर परमाणु हथियारों से बचाव का माध्यम तैयार करना है या फिर सामरिक परमाणु हथियारों का एक जखीरा तैयार करना है जो पाकिस्तान के ऐसे परमाणु हथियारों का मुकाबला कर सके। हालांकि इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई।

तीसरा, भाजपा के 2014 के घोषणापत्र में उच्च रक्षा प्रबंधन की संरचना के पुनर्गठन का वादा किया किया था। इस संदर्भ में इस तथ्य को दरकिनार किया गया कि राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) तीनों सेना के प्रमुख चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) की नियुक्ति करने से कतराती रही। इसी घोषणापत्र में भाजपा ने रक्षा मंत्रालय की निर्णय लेने की प्रक्रिया में सशस्त्र बलों की अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने का वादा किया था। विचार यह था कि यह मंत्रालय को सेना के साथ एकीकृत करेगा और ऐसी संरचना तैयार करेगा जहां वर्दीधारी सैनिक, अफसरशाहों के साथ उनके बॉस बनकर काम करें।

मंत्रियों के एक समूह (जीओएम) ने 2001 में ही इस कदम का प्रस्ताव दिया था लेकिन भाजपा को अफसरशाहों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा जिससे आखिरकार इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ (आईडीएस) का गठन हुआ जहां तीनों सेनाओं से जुड़ी सेवाओं ने एक साथ काम किया जबकि प्रशासनिक अफसरशाह इससे बिल्कुल अलग रहे।

भाजपा के 2014 के घोषणापत्र में कई तरह के छोटे-छोटे वादे का जिक्र किया गया था जैसे कि 25 प्रतिशत कर्मियों की कमी को दूर करने के लिए उच्च-क्षमता वाले अधिकारियों की भर्ती करना (जो अभी तक पूरी नहीं हुई)। इसके अलावा इसने एक राष्ट्रीय युद्ध स्मारक बनाने का संकल्प लिया गया जो बन चुका है। पूर्व सैनिकों के बढ़ते राजनीतिक दबदबे का दबाव भाजपा के वादे में भी दिखा और इसी वजह से सेवानिवृत्त सैनिकों और उनके परिवारों की समस्याओं का समाधान करने के मकसद से ‘पूर्व सैनिकों के आयोग’ का गठन करने का वादा किया गया। भाजपा ने ‘वन रैंक, वन पेंशन’ की नीति का वादा किया जिस पर काफी हद तक अमल करने की कोशिश की गई।

भाजपा ने स्वदेशी रक्षा तकनीक के उत्पादन को बढ़ावा देने का वादा करते हुए कहा कि ‘इससे चुनिंदा रक्षा उद्योगों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) सहित निजी क्षेत्र की भागीदारी और निवेश बढ़ाने की दिशा में प्रोत्साहन मिलेगा।’ हालांकि इससे पहले न तो भाजपा ने और न ही कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में रक्षा खर्च को लेकर कोई प्रतिबद्धता जताई थी, भले ही रक्षा क्षेत्र के लिए आवंटन 1980 के दशक के अंत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4 प्रतिशत से घटकर आज 2 प्रतिशत से भी कम रह गया है।

उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के सभी 31 सदस्य देशों को रक्षा क्षेत्र में अपने जीडीपी का 2 प्रतिशत तक खर्च करना होता है, भले ही सैन्य सहयोगी देश के तौर पर सामूहिक रक्षा का आश्वासन क्यों न दिया गया हो। इस संधि के अनुच्छेद 5 में प्रावधान है कि प्रत्येक सदस्य देश, किसी एक सदस्य देश के खिलाफ हिंसा के कार्य को सभी सदस्यों के खिलाफ सशस्त्र हमले के रूप में देखेंगे और हमले का सामना करने वाले सहयोगी देश की सहायता के लिए आवश्यक कार्रवाई करेंगे।

दुश्मन के हमले की स्थिति में भारत ने अकेले खड़े होने का विकल्प चुना है लेकिन वास्तविक रक्षा आवंटन जीडीपी के 3 प्रतिशत पर लाने की मांग होती रही है। वास्तविक रक्षा आवंटन साल दर साल कम होता जा रहा है, ऐसे में 3 फीसदी रक्षा खर्च के वादे की संभावना नहीं है। वैमानिकी और रक्षा उद्योग में वृद्धि के लक्ष्य निर्धारित करते समय संसाधनों का उपयोग करने की स्पष्ट अनिच्छा दिखती है।

राजनीतिक दलों ने राजनीतिक घोषणापत्र के बजाय नीतिगत दस्तावेजों के जरिये वृद्धि के लक्ष्य तय करने का विकल्प चुना है। रक्षा उत्पादन, 2018 के रक्षा मंत्रालय की ‘रक्षा उत्पादन नीति 2018’ शीर्षक वाले एक रोडमैप पर आधारित है। इसमें वर्ष 2025 तक वैमानिकी और रक्षा सेवाओं और उत्पादन कारोबार सालाना 1.7 लाख करोड़ रुपये (तब 26 अरब डॉलर) तक करने का लक्ष्य तय किया गया था।

इसे करीब 70,000 करोड़ रुपये (तब 10 अरब डॉलर) के अतिरिक्त निवेश के साथ हासिल करना था जिससे करीब 20-30 लाख लोगों के लिए रोजगार के मौके तैयार होंगे। वर्ष 2018 की नीति में वर्ष 2025 तक करीब 35,000 करोड़ रुपये (तब 5 अरब डॉलर) तक की रक्षा वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात का लक्ष्य तय किया गया है।

जब उत्पादन लक्ष्य में ऊपरी स्तर पर संशोधन करने की आवश्यकता है जैसा कि पिछले हफ्ते औद्योगिक उत्पादन के मामले में किया गया लेकिन इसके लिए आगामी चुनाव के घोषणापत्र को इसका माध्यम नहीं बनाया गया। इसके बजाय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने घोषणा की कि वैमानिकी, रक्षा सेवाएं और उत्पादन वर्ष 2028-29 तक 3 लाख करोड़ रुपये (36 अरब डॉलर) के स्तर को छू लेंगे। उन्होंने कहा कि इनका निर्यात उत्पादन इसी समय-सीमा के दायरे में बढ़कर 50,000 करोड़ रुपये (6.25 अरब डॉलर) होगा।

विनिर्मित वस्तुओं और सेवाओं की बढ़ती तादाद को देखते हुए वर्ष 2024 के घोषणापत्र में इनका निर्यात बढ़ाने के लिए एक सुसंगत नीति जरूर होनी चाहिए। एक हथियार आयातक बने रहने के बाद अब भारत को शीर्ष 25 हथियार निर्यातक देशों की सूची में जगह मिली है। सात-आठ साल पहले रक्षा निर्यात 1,000 करोड़ रुपये से नीचे था। आज, इसने 16,000 करोड़ रुपये के स्तर को छू लिया है।

भाजपा को अपने 2024 के घोषणापत्र में यह भी बताना होगा कि सरकार ने ‘दो मोर्चे पर युद्ध’ जैसी योजनाओं को अंजाम देने की योजना कैसे बनाई है, जिसमें पाकिस्तान को सैन्य तरीके से हराना, चीन को रोकना, जम्मू-कश्मीर में विद्रोहियों से निपटने के साथ यह सुनिश्चित करना भी शामिल है कि हम हिंद महासागर में अपना दबदबा कैसे कायम करें। वैसे दो मोर्चों पर युद्ध लड़ना, भारतीय रणनीति, कूटनीति, सीमा और सैन्य प्रबंधन और हमारी आंतरिक सुरक्षा की व्यापक विफलता को साथ-साथ दर्शाएगा।

किसी खराब परिस्थितियों के लिए हमारी सुरक्षा व्यवस्था की संरचना ठीक करने से हमारी रक्षा योजना, वित्तीय आवंटन और सैन्य तैनाती दुरुस्त होगी। रणनीतिक समझदारी के तहत ही देश के शीर्ष सुरक्षा योजनाकारों को सामूहिक रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा जाता है कि भारत कभी उस स्थिति में न आए जहां उसे कई मोर्चे पर व्यापक युद्ध का सामना करना पड़े।

First Published - March 6, 2024 | 10:02 PM IST

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