जीवन बीमा निगम (एलआईसी) की बहुचर्चित प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) ने कमजोर बाजार रुझान का संकेत दिया है। यह इश्यू 949 रुपये (पॉलिसी धारकों और कर्मचारियों को मिली रियायत के अलावा) के मूल्य पर ओवरसबस्क्राइब (उपलब्धता से अधिक आवेदन) हुआ जो कीमत का उच्चतम स्तर था। सरकार ने इस इश्यू से 20,516 करोड़ रुपये जुटाए। परंतु पहले कारोबारी सत्र में यह शेयर 873 रुपये के मूल्य पर बंद हुआ जो इश्यू मूल्य से 8 प्रतिशत कम था। यह आईपीओ शुरु से ही बदकिस्मत रहा। यूक्रेन युद्ध और मुद्रास्फीति से निपटने के लिए मौद्रिक नीति में कड़ाई के कारण 5 फीसदी हिस्सेदारी की बिक्री की योजना त्यागनी पड़ी। न्यूनतम 5 फीसदी विनिवेश के मानक के उलट नियामक को 3.5 फीसदी शेयरों की बिक्री की अनुमति देनी पड़ी। इसके अलावा मूल्यांकन भी कम हुआ। इसके परिणामस्वरूप सरकार को अनुमान से काफी कम राशि मिली। इसका असर बजट अनुमान पर भी पड़ेगा जिसमें चालू वित्त वर्ष के लिए 65,000 करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य तय किया गया था। जब तक बाजार परिस्थितियां नहीं सुधरतीं विनिवेश लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल होगा।
यह सही है कि एलआईसी की कई मजबूतियां हैं लेकिन बाजार शायद संभावित प्रतिस्पर्धी चुनौतियों को लेकर भी प्रतिक्रिया दे रहा हो। बीते पांच वर्षों में उसकी बाजार हिस्सेदारी कम हुई है। सालाना प्रीमियम संग्रह के मामले में एलआईसी की बाजार हिस्सेदारी 2015-16 के 81 प्रतिशत से घटकर 74 फीसदी रह गई है। व्यक्तिगत प्रीमियम के मामले में इसी अवधि में बाजार हिस्सेदारी 56 प्रतिशत से घटकर 43 प्रतिशत रह गई है। देश में इस समय 30 से अधिक जीवन बीमा कंपनियां हैं तथा अन्य कंपनियां न केवल अधिक आक्रामक हैं बल्कि उन्होंने पॉलिसी भी बेहतर ढंग से तैयार की हैं। एलआईसी की नीतियों में से 99 प्रतिशत इक्विटी लिंक्ड नहीं हैं, इस वजह से इनका प्रतिफल भी अन्य कंपनियों की योजनाओं की तुलना में कम रहता है। अन्य कंपनियों में इक्विटी लिंक्ड योजनाओं की तादाद अधिक है। खर्च काटने और दावे निपटाने के बाद बीमाकर्ता कंपनियों के पास अच्छी खासी सस्ती नकदी दीर्घावधि के लिए बचती है जिसे ‘फ्लोट’ कहा जाता है। बैंकों के उलट बीमाकर्ता दीर्घावधि की परियोजनाओं में निवेश कर सकते हैं। इस राशि को कैसे निवेश किया जाता है, यह बात बहुत अहम है क्योंकि बीमा कंपनियों को लंबी अवधि का उच्च प्रतिफल यहीं से मिलता है। यह मसला प्रबंधन पर प्रवर्तकों के प्रभाव को एक संभावित जोखिम मानता है और यह बात एलआईसी के निवेश के निर्णय में भी नजर आती है। बहुलांश हिस्सेदार यानी सरकार की प्रवृत्ति इसका इस्तेमाल खुद को मुश्किलों से उबारने में करने की रही है। विनिवेश के विभिन्न अवसरों पर एलआईसी का इस्तेमाल अन्य सरकारी उपक्रमों की मदद के लिए किया गया है। क्योंकि यदि एलआईसी धन नहीं लगाता तो शायद उनकी बिक्री के लिए रखी गई हिस्सेदारी भी नहीं बिकती। एलआईसी के पोर्टफोलियो निवेश में बमुश्किल 25 प्रतिशत इक्विटी है जबकि 6.6 फीसदी अतिरिक्त हिस्सा दीर्घावधि की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश किया गया है। शेष निवेश राज्य या केंद्र सरकार के ऋण में है।
चाहे जो भी हो एलआईसी ने अप्रैल 2021 और दिसंबर 2021 के बीच शेयरों की बिक्री से 42,862 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया और करीब 42,900 करोड़ रुपये की राशि 2020-21 में शेयरों की बिक्री से जुटाई। निजी बीमा कंपनियों का इक्विटी जोखिम ज्यादा है और ब्लूचिप कंपनियों के डेट में भी उनकी अधिक हिस्सेदारी ह। उनके निवेश पर प्रतिफल भी निरंतर अधिक है। यह भी एक वजह है जिसके चलते एलआईसी को सूचीबद्ध निजी बीमाकर्ताओं के तुलना में एक तिहाई मूल्यांकन पर शेयर पेशकश करनी पड़ी। जिन लोगों को आईपीओ आवंटन हुआ है फिलहाल वे नुकसान में हैं। हालांकि कम मूल्यांकन अस्थायी हो सकता है। अगर यह सूचीबद्धता एलआईसी की वित्तीय स्थिति को अधिक पारदर्शी बनाती है और उसके निवेश निर्णयों में हस्तक्षेप कम होता है तो इससे प्रतिफल में भी सुधार आ सकता है।