दो दिनों तक चली सघन बातचीत के बाद 20 देशों के समूह जी20 के नेता आखिरकार एक संयुक्त वक्तव्य पर सहमत हो गए जिसमें जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध लड़ाई को रेखांकित किया गया। इसके बावजूद जी20 के कुछ सदस्य देशों के हठ के परिणामस्वरूप अंतिम वक्तव्य सफलता के बजाय अपेक्षाकृत नाकामी दर्शाने वाला रहा। प्रमुख तौर पर यह कहा गया कि कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलने वाली वित्तीय सहायता बंद की जाएगी। हालांकि यह सवाल जरूर उठेगा कि इस वचन से उन संयंत्रों पर क्या असर होगा जिनकी योजना पहले ही बन चुकी है। घरेलू अर्थव्यवस्थाओं के लिए जलवायु निरपेक्षता के लिए अस्पष्ट रूप से ‘तकरीबन मध्य सदी’ की प्रतिबद्धता की बात कही गई। कोयले के घरेलू इस्तेमाल पर कोई सहमति नहीं बन सकी। जी20 ने छह वर्ष पहले पेरिस समझौते की तुलना में ज्यादा महत्त्वाकांक्षी प्रतिबद्धता भी नहीं दिखाई।
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने रूस और चीन जैसे बड़े प्रदूषण फैलाने वाले देशों पर दोषारोपण करते हुए कहा कि ‘इन देशों ने जलवायु परिवर्तन से निपटने में प्रतिबद्धता नहीं दिखाई।’ दिलचस्प बात है कि बाइडन ने भारत का नाम नहीं लिया जबकि भारत में भी भारी भरकम घरेलू कोयला क्षेत्र है, हालांकि उसने वित्तीय सहायता उपलब्ध होने पर नवीकरणीय ऊर्जा का प्रयोग बढ़ाने की बात कही है। जी20 वार्ता में गतिरोध इसलिए भी अहम है क्योंकि ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन संबंधी वार्ता जिसे सीओपी26 कहा जा रहा है, होने जा रही है। इस बैठक से भी तमाम आशाएं जुड़ी हुई हैं। दो वर्षों में यह अपनी तरह की पहली बड़ी बैठक है और यह बैठक ऐसे समय पर हो रही है जब इस बात के प्रमाण लगातार बढ़ रहे हैं कि वैश्विक तापवृद्धि दुनिया भर में उथलपुथल मचा रही है। मेजबान देश के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने चेतावनी देते हुए कहा कि जी20 देशों द्वारा जताई गई प्रतिबद्धता ‘तेजी से गर्म होते समुद्र में कुछ बूंदों’ के समान है। उन्होंने यह भी कहा कि इससे सीओपी शिखर बैठक को भी खतरा उत्पन्न हो गया है।
माना जा रहा है कि सीओपी26 जलवायु वित्त पोषण को विकल्प के रूप में प्रस्तुत करके मौजूदा गतिरोध को तोड़ेगी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी जी20 बैठक में कहा कि विकसित देशों को अपने जीडीपी का एक फीसदी, उभरते देशों में पर्यावरण के अनुकूल परियोजनाओं के वित्त पोषण के लिए देना चाहिए। उन्होंने इस बात को भी रेखांकित किया कि बिना जलवायु वित्त पोषण की दिशा में प्रगति किए विकासशील देशों पर जलवायु परिवर्तन को लेकर महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य थोपना अन्याय है। प्रधानमंत्री ने सुझाव दिया कि स्वच्छ ऊर्जा परियोजना को लेकर एक पाइपलाइन तैयार की जाए जिसकी मदद से विकासशील देशों को धनराशि मुहैया कराई जा सकती है। इसके अलावा जी20 देशों को स्वच्छ ऊर्जा शोध नेटवर्क तैयार किया जाना चाहिए तथा हरित हाइड्रोजन से संबंधित मानक रेखांकित किए जाने चाहिए।
मोदी की दलील को केवल न्याय के प्रश्न के रूप में नहीं देखा जा सकता बल्कि यह अनिवार्यता का प्रश्न भी है। बेहतरीन इच्छाशक्ति के साथ भी विकासशील देश बिना वित्तीय मदद के पर्यावरण के अनुकूल विकास की दिशा में नहीं बढ़ पाएंगे। ऐसे में सीओपी26 में वित्तीय सहायता का पहलू अतिरिक्त महत्त्व वाला हो गया है। इसके बावजूद जी 20 शिखर बैठक में जलवायु परिवर्तन को लेकर प्रयासों में इजाफा न हो पाना सीओपी26 के लिए अच्छा संकेत नहीं है। सच यह है कि उत्सर्जन में जी20 देशों की हिस्सेदारी अधिक है। बहुपक्षीय या संयुक्त राष्ट्र के स्तर पर हल तभी निकल सकता है जब जी20 देश आगे बढ़कर रुचि दिखाएं। फिलहाल वह होता नहीं दिखा है।