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Editorial: विकास का सूचकांक, सुधार के बावजूद चुनौतियां बरकरार

सूचकांक में भारत को 100 में से समग्र रूप से 71 अंक मिले हैं जबकि 2021 में उसे 66 तथा आधार वर्ष 2018 में 57 अंक प्राप्त हुए थे।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- July 14, 2024 | 10:11 PM IST

सरकारी थिंक टैंक नीति आयोग ने अपने ताजा सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) भारत सूचकांक में एक उम्मीद भरी तस्वीर पेश की है। सूचकांक में भारत को 100 में से समग्र रूप से 71 अंक मिले हैं जबकि 2021 में उसे 66 तथा आधार वर्ष 2018 में 57 अंक प्राप्त हुए थे। यह रिपोर्ट 113 अलग-अलग संकेतक पर आधारित होती है जो संयुक्त राष्ट्र के राष्ट्रीय संकेतक फ्रेमवर्क के तहत निर्धारित हैं और ये दिखाते हैं कि सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के एसडीजी में सुधार हुआ है तथा उनके अंक 57 से 79 के बीच हैं। इन्हें 2018 में 42 से 69 के बीच अंक मिले थे।

व्यापक राष्ट्रीय रैंकिंग की बात करें तो 32 राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों ने 65 से 95 तक अंक हासिल किए और इनमें 10 राज्य पहली बार शामिल हुए। अगर किसी राज्य को 49 से कम अंक नहीं मिले हैं तो अधिकतम अंक यानी 100 भी किसी राज्य को नहीं मिले। 16 में से 12 लक्ष्यों पर उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिली है। सबसे चिंताजनक मुद्दा महिला-पुरुष समानता का है जहां 2019-20 से अब तक हालात में शायद ही कोई सुधार हुआ है। भारत एसडीजी में अभी भी मजबूती राज्यों की श्रेणी में है।

रिपोर्ट में बेहतर समग्र अंकों को सरकार की कल्याण योजनाओं तथा पहलों से जोड़ा गया है। अगर ऐसा है तो आंकड़ों को अलग-अलग करके देखने पर पता चलता है कि यह सहायता सभी को बांटी गई है। भूख के मामलों को समाप्त करना इसका उदाहरण है। हालांकि कुल अंक 48 से सुधरकर 52 हुए हैं लेकिन ‘आकांक्षी’ राज्य पश्चिम में गुजरात से लेकर बिहार और उत्तर पूर्व के कुछ इलाकों तक बंटे हुए हैं।

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात करें तो मध्य, पूर्व और उत्तर-पूर्व भारत के कुछ हिस्से अभी ‘आकांक्षी’ स्तर पर हैं। इन सभी बातों से संकेत मिलता है कि भोजन अथवा स्कूलों तथा शैक्षणिक संस्थाओं तक पहुंच का अर्थ आवश्यक रूप से संतोषजनक नतीजों वाला नहीं है। इन दोनों मानकों का देश की भविष्य की आबादी की गुणवत्ता पर सीधा असर होना है। उद्योगों में नवाचार और अधोसंरचना क्षेत्र पर भी यही बात लागू होती है।

कुछ आंकड़े ऐसे हैं जो वास्तविक हकीकत से मेल खाते नहीं नजर आते हैं। टिकाऊ शहरों और समुदायों के मामले में भारत को 2018 के 29 की तुलना में इस बार 83 अंक मिले हैं। देश के शहरों में अधिकांश लोग जिन खराब परिस्थितियों में रह रहे हैं उन्हें देखते हुए इसे हजम करना मुश्किल है। यह मानक इस बात पर निर्भर करता है कि जैविक-मेडिकल कचरे तथा अन्य जैविक कचरों का निपटान किस प्रकार किया जाता है। यह शहरों की बेहतरी का केवल एक पहलू होना चाहिए।

इसी प्रकार किफायती और स्वच्छ ऊर्जा के मामले में भारी उछाल दर्ज की गई। देश के अधिकांश राज्यों को 100 फीसदी अंक दिए गए हैं जबकि भारत दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में भी आगे है। साथ ही हमारे बिजली उत्पादन में कोयले की काफी अहम भूमिका है।

नीति आयोग की एसडीजी रिपोर्ट निस्संदेह सहकारी संघवाद की दिशा में एक अनमोल कवायद है और बहुआयामी गरीबी में कमी आने के प्रमाण सुखद हैं। परंतु यह कवायद अनिवार्य तौर पर अंदर की ओर झांकने वाली है और देश के भीतर की सामाजिक और विकास संबंधी प्रगति की तुलनात्मक तस्वीर पेश करती है।

वैश्विक स्तर से, यहां तक कि एशियाई देशों से भी तुलना करें तो भारत लगभग सभी मानकों पर पीछे नजर आता है। संयुक्त राष्ट्र की टिकाऊ विकास संबंधी ताजा रिपोर्ट में भारत को 193 देशों में 109वां स्थान दिया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि केवल 30 फीसदी एसडीजी लक्ष्य ही हासिल हुए हैं या पटरी पर हैं, 40 फीसदी में सीमित प्रगति हुई है जबकि शेष 30 फीसदी के मामले में हालात बेहद खराब हैं। इन हालात को बदलने के लिए उन मानकों में बदलाव लाना होगा जिनके आधार पर राज्यों का आकलन किया जाता है। उन्हें हकीकत के और करीब लाना होगा।

First Published : July 14, 2024 | 10:11 PM IST