facebookmetapixel
Gold, Silver price today: सोने का वायदा भाव ₹1,09,000 के आल टाइम हाई पर, चांदी भी चमकीUPITS-2025: प्रधानमंत्री मोदी करेंगे यूपी इंटरनेशनल ट्रेड शो 2025 का उद्घाटन, रूस बना पार्टनर कंट्रीGST कट के बाद ₹9,000 तक जा सकता है भाव, मोतीलाल ओसवाल ने इन दो शेयरों पर दी BUY रेटिंग₹21,000 करोड़ टेंडर से इस Railway Stock पर ब्रोकरेज बुलिशStock Market Opening: Sensex 300 अंक की तेजी के साथ 81,000 पार, Nifty 24,850 पर स्थिर; Infosys 3% चढ़ानेपाल में Gen-Z आंदोलन हुआ खत्म, सरकार ने सोशल मीडिया पर से हटाया बैनLIC की इस एक पॉलिसी में पूरे परिवार की हेल्थ और फाइनेंशियल सुरक्षा, जानिए कैसेStocks To Watch Today: Infosys, Vedanta, IRB Infra समेत इन स्टॉक्स पर आज करें फोकससुप्रीम कोर्ट ने कहा: बिहार में मतदाता सूची SIR में आधार को 12वें दस्तावेज के रूप में करें शामिलउत्तर प्रदेश में पहली बार ट्रांसमिशन चार्ज प्रति मेगावॉट/माह तय, ओपन एक्सेस उपभोक्ता को 26 पैसे/यूनिट देंगे

उपभोक्ता धारणा में सुधार मगर अब भी यह निचले स्तर पर

Last Updated- February 17, 2023 | 9:16 AM IST
e commerce in india

जनवरी 2023 में उपभोक्ताओं की धारणा में सुधार हुआ और उस महीने उपभोक्ता धारणा सूचकांक (आईसीएस) 83.9 (सितंबर-दिसंबर के दौरान आधार 100) पर पहुंच गया।

यह कोविड महामारी के दौरान फिसलने के बाद सूचकांक का अब तक का सर्वाधिक स्तर है। हालांकि कोविड महामारी के पूर्व के स्तरों से यह सूचकांक अब भी निचले स्तर पर है। फरवरी 2020 में सूचकांक 105.3 के स्तर पर था। मार्च 2020 में यह 8 प्रतिशत तक लुढ़क गया था और उसके बाद अप्रैल में इसमें 53 प्रतिशत की बड़ी गिरावट दर्ज हुई थी।

कोविड महामारी आने पर यह सूचकांक जल्द लुढ़क गया था और बाद में जब लॉकडाउन लागू हुआ तो इसमें और बड़ी गिरावट दर्ज हुई।

अर्थव्यवस्था का हाल बताने वाले जितने भी संकेतक हैं उनमें उपभोक्ताओं की धारणा में सुधार सबसे धीमा रहा है। कोविड महामारी के झटके से अधिकांश संकेतक तेजी से उबर गए मगर देश में परिवारों की आर्थिक सेहत और भविष्य को लेकर उनकी धारणा में पूरी तरह सुधार नहीं हुआ है। सुधार की गति बहुत धीमी है और अब भी अधूरी है। उपभोक्ताओं के आत्मविश्वास पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के एक सर्वेक्षण के अनुसार सुधार की गति बहुत धीमी रही है मगर यह पूरी हो गई प्रतीत होती है।

सीएमआईई का उपभोक्ता सूचकांक शहरी एवं ग्रामीण भारत के प्राप्त प्रतिक्रिया पर आधारित है। मासिक सूचकांक अमूमन 44,000 परिवारों की प्रतिक्रिया पर आधारित होते हैं जिनमें 28,500 परिवार शहरी और शेष 15,500 ग्रामीण क्षेत्र से होते हैं। आरबीआई का सर्वेक्षण 19 शहरों के 6,000 लोगों की प्रतिक्रिया पर आधारित हैं।

सीएमआईई का कंज्यूमर पिरामिड्स हाउसहोल्ड सर्वे दर्शाता है कि उपभोक्ता धारणा सूचकांक फरवरी 2020 की तुलना में 20 प्रतिशत कम है। इसके ठीक बाद मार्च में कोविड महामारी फैलनी शुरू हो गई थी और चारों तरफ पाबंदी लगने का सिलसिला शुरू हो गया था। ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्र में अंतर काफी अधिक है।

इस सूचकांक की गणना करते समय लोगों से पांच सवाल पूछे जाते हैं। कोविड महामारी आए तीन वर्ष से अधिक समय हो चुके हैं। इनमें प्रत्येक वर्ष परिवार लगातार तनाव में रहे हैं और अपने भविष्य को लेकर उनका नजरिया निराशावादी है। इससे पहले कि हम इन पांच संकतेकों की बात करें, हमें विश्लेषणात्मक ढांचे को समझ लेना चाहिए। इन पांच प्रश्नों में प्रत्येक के उत्तर में परिवार यह बताते हैं कि उसकी स्थिति एक साल पहले की तुलना में बेहतर या एक साल पहले की तुलना में बदतर हुई है या एक साल पहले की तरह ही है। यहां मायने यह रखता है कि इस साल पहले की तुलना में अपनी स्थिति बदतर बताने वाले परिवारों को समायोजित करने बाद कितने प्रतिशत परिवार यह कहते हैं कि उनकी स्थिति बेहतर हुई है।

कोविड महामारी से पहले करीब 31 प्रतिशत परिवारों का कहना था कि एक साल पहले की तुलना में उनकी वित्तीय हालत अच्छी हुई है और 8 प्रतिशत का कहना था कि उनकी हालत बदतर हुई है। इस तरह शुद्ध आधार पर 22 प्रतिशत परिवारों ने कहा कि एक साल पहले की तुलना में उनकी माली हालत में सुधार हुआ है।

जनवरी 2023 में 31 प्रतिशत परिवारों ने कहा कि उनकी स्थिति में सुधार हुआ मगर 23 प्रतिशत ने कहा कि उसकी स्थिति बिगड़ी है। इसका नतीजा यह हुआ कि अपनी स्थिति बेहतर बताने वाले परिवारों की तुलना में उन परिवारों की संख्या शुद्ध आधार पर 2 प्रतिशत अधिक रही जिन्होंने कहा कि उनकी वित्तीय स्थिति बिगड़ी है। हालांकि कोविड महामारी के प्रसार के बाद अब तक का यह बड़ा सुधार है मगर यह अब भी यह नकारात्मक है।

महामारी से पहले शुद्ध आधार पर 27 प्रतिशत परिवार अगले एक वर्ष में अपनी वित्तीय स्थिति में सुधार को लेकर आशावादी थे। जनवरी 2023 में शुद्ध आधार पर 6 प्रतिशत परिवार एक साल बाद अपनी संभावित वित्तीय स्थिति को लेकर हतोत्साहित लग रहे थे। 18 प्रतिशत से कम परिवारों को लगता है कि एक साल बाद उनकी स्थिति सुधर जाएगी और करीब 24 प्रतिशत परिवारों को अगले एक साल में वित्तीय हालत बिगड़ने की उम्मीद है। यह आंकड़ा भी कोविड महामारी के दौरान सबसे खराब दौर की तुलना में एक बड़ा सुधार है मगर भविष्य को लेकर अपेक्षाओं में पूरा सुधार अब भी बहुत दूर है।

उपभोक्ता धारणा सूचकांक का एक हिस्सा उद्योग जगत के लिए विशेष मतलब का है। यह हिस्सा वह प्रश्न है जो पूछता है कि क्या मौजूदा समय एक साल पहले की तुलना में उपभोक्ता वस्तुओं जैसे वाहन, रेफ्रिजरेटर आदि खरीदने के लिए अच्छा है या खराब है या वैसा ही है? इस प्रश्न का उत्तर हमें यह बताता है कि कितने परिवार अपने विवेकाधीन खर्च बढ़ाना चाहते हैं।
कोविड महामारी से पहले परिवारों का मानना था कि मौजूदा समय उपभोक्ता वस्तु खरीदने के लिए बेहतर है और ऐसे परिवारों का अनुपात

बढ़ता दिख रहा था, जो यह सोचते थे कि मौजूदा समय बेहतर है। ऐसी धारणा उद्योग जगत के लिए अच्छी थी और यह भारतीय परिवारों में संपन्नता और आर्थिक गतिविधियों में उनकी हिस्सेदारी बढ़ने का संकेत था। मगर कोविड महामारी आने के बाद रुझान बदल गया और उन परिवारों का अनुपात बढ़ गया जो यह सोचने लगे कि मौजूदा समय उपभोक्ता वस्तुएं खरीदने के लिए अनुकूल नहीं रह गया है।

मगर इस रुझान में तेजी से बदलाव आया। मगर आज भी ऐसे परिवारों की संख्या अधिक है जो सोचते हैं कि मौजूदा समय उपभोक्ता वस्तुएं खरीदने के लिए ठीक नहीं है। हालांकि ऐसे परिवारों का अनुपात कम हो रहा है। विवेकाधीन खर्च को लेकर नकारात्मकता कम हो रही है। अप्रैल 2020 की तुलना में यह नकारात्मकता सबसे निचले स्तर पर है।

उपभोक्ता धारणा सूचकांक में दो प्रश्न आर्थिक एवं कारोबारी माहौल से जुड़े हैं। शुद्ध आधार पर भविष्य में आर्थिक एवं कारोबारी माहौल को लेकर अधिक परिवार हतोत्साहित दिख रहे हैं। इस लिहाज से सभी पांच संकेतक नकारात्मक हैं। उपभोक्ता सूचकांक में तेजी से सुधार हो रहा है। मगर कोविड महामारी से पूर्व की स्थिति में पहुंचने का रास्ता अब भी बहुत छोटा नहीं है।

(लेखक सीएमआईई के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्या​धिकारी हैं।)

First Published - February 17, 2023 | 12:19 AM IST

संबंधित पोस्ट