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भ्रामक हो सकती है देशों के कर अंतर की तुलना

विश्व बैंक की रिपोर्ट से लगता है कि भारत का कर अंतर अन्य उभरते विकासशील देशों के कर अंतर से कम है मगर देशों के बीच तुलना भ्रामक नतीजे दे सकती है। समझा रही हैं

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आर कविता राव   
Last Updated- June 03, 2025 | 11:05 PM IST

देश में राजकोषीय नीति पर चर्चा के दौरान इस बात पर लगातार जोर दिया जाता है कि देश का कर और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अनुपात बढ़ाने की जरूरत है। होने वाली नीतिगत चर्चाओं में लगातार इस बात पर जोर दिया जाता है कि देश के कर-सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अनुपात में सुधार करने की आवश्यकता है। इसमें दो तर्क दिए जाते हैं।

पहला, भारत जैसे विकासशील देश में सरकार की भूमिका में विस्तार होना चाहिए और इसके लिए कर-जीडीपी अनुपात अधिक होना ही चाहिए। इसके लिए राजस्व के नए स्रोत पहचानने और छूट तथा रियायत कम अथवा खत्म करने जैसे नीतिगत उपायों पर जोर दिया जाता है।

दूसरा तर्क ‘कर में कमी’ यानी संभावित कर एवं वास्तविक कर संग्रह के बीच का अंतर मापने को कहता है। इसमें कर प्रशासन सुधारने की बात कही जाती है क्योंकि कर संग्रह में कमी कर चोरी तथा कर से बचने की वजह से हो सकता है। हाल के अध्ययनों में संभावित राजस्व का अनुमान लगाने के लिए देशवार आंकड़ों का इस्तेमाल किया जाता है।

दूसरे तर्क पर हुए अध्ययनों में सभी देशों के आंकड़े साथ लेकर संभावित राजस्व का अनुमान लगाया जाता है। इसलिए यहां संभावित राजस्व विभिन्न देशों के प्रदर्शन की तुलना पर आधारित है। विश्व बैंक ने हाल ही में ‘साउथ एशिया डेवलपमेंट अपडेट, अप्रैल 2025’ रिपोर्ट जारी की, जिसमें अलग तरीका अपनाकर अलग नतीजे पेश किए गए। इस रिपोर्ट का उपयोग हम कैसे कर सकते हैं, इसे समझने के लिए नतीजे नीचे संक्षेप में दिए गए हैं।

अध्ययन में उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को केंद्र में रखकर कर की चार प्रमुख श्रेणियों का प्रदर्शन खंगाला गया है – प्रत्यक्ष करों में कॉरपोरेट कर और व्यक्तिगत आयकर तथा अप्रत्यक्ष करों में उपभोग तथा व्यापार कर। इनमें से हर श्रेणी में भारत के कर अंतर की तुलना उभरते बाजारों वाली विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के औसत प्रदर्शन से की गई है। विश्लेषण से पता चलता है कि भारत में कर अंतर औसत से कम है।

नतीजे इन तथ्यों पर आधारित हैं: व्यक्तिगत आय कर और उपभोगर कर में भारत का कर अंतर उभरते विकासशील देशों के औसत से काफी कम है और यह जीडीपी के 0.25 फीसदी से भी कम है। किंतु कॉरपोरेट आय कर तथा व्यापार कर में प्रदर्शन इतना अच्छा नहीं हैं। कॉरपोरेट आय कर उन देशों के औसत से अधिक है और जीडीपी के 1 फीसदी से भी ज्यादा है। व्यापार कर में भारत का कर अंतर उभरते विकासशील देशों के औसत के बराबर यानी जीडीपी के 0.20 फीसदी के बराबर ही है।

नतीजे दिलचस्प भी हैं और चुनौतीपूर्ण भी। दिलचस्प इसलिए हैं क्योंकि बेहद खराब कर संग्रह व्यवस्था की शिकायत करने वाले इन्हें देखकर कहेंगे कि यह व्यवस्था कुछ कर श्रेणियों में अन्य उभरते विकासशील देशों के समान या उनसे बेहतर है। यह देखकर आश्वस्ति होती है। मगर नतीचे चुनौती भरे क्यों हैं, यह समझने के लिए हम कर राजस्व की कुछ श्रेणियों में नतीजों पर विचार करते हैं।

कॉरपोरेट आय कर के लिए अध्ययन में बाजार पूंजीकरण और कॉरपोरेट कर दरों का इस्तेमाल हुआ है। पिछले पांच साल में भारत के लिए औसत प्राइस-टु-अर्निंग (पी/ई) रेश्यो 21.59 से 23.89 के बीच रहा है। उभरते बाजारों वाले विकासशील देशों के लिए यह औसत 12.23 से 15.27 के बीच रहा है। पी/ई रेश्यो अधिक होने का मतलब एक खास बाजार पूंजीकरण के लिए कम आय है।

इसलिए मान सकते हैं कि बाजार पूंजीकरण का इस्तेमाल करने पर कॉरपोरेट आय कर में बहुत अधिक संभावना दिख सकती है और इसलिए कर अंतर भी ज्यादा हो सकता है। इसकी विधि कर दर इस्तेमाल करती है। भारत में कॉरपोरेट करों की दो व्यवस्थाएं हैं – एक में छूट कम हैं और दर कम है, दूसरी में छूट ज्यादा हैं और दर भी ज्यादा है। यह पता ही नहीं है कि कौन सी दर इस्तेमाल होनी चाहिए या दरें बदलने का नतीजा क्या होगा।

व्यक्तिगत आय कर के लिए श्रम से होने वाली आय को आधार माना जाता है। किंतु आय कर के लिए प्रत्यक्ष कर के आंकड़ों में बताई गई गैर-कॉरपोरेट आय को खंगालें तो 2023-24 में कुल आय में मजदूरी और वेतन का हिस्सा केवल 51 फीसदी नजर आता है। बाकी गैर-कॉरपोरेट व्यवसाय आय, आवासीय संपत्ति से आय और पूंजीगत लाभ से आय है।

संभव है कि गैर कॉरपोरेट आय कर का आधार कम आंक लिया गया हो और इसीलिए व्यक्तिगत आय कर की संभावना भी कम करके आंकी गई हो। छूट की सीमा पर भी विचार करने की जरूरत है। आम तौर पर यही माना जाता है कि बहुत कम लोग और संस्थाएं गैर-कॉरपोरेट आय कर जमा करती हैं क्योंकि इसमें छूट की सीमा बहुत ऊंची है। इसलिए अपेक्षा यही होनी चाहिए कि कम छूट सीमा वाले देशों के मुकाबले भारत का कर अंतर अधिक होना चाहिए। इसीलिए परिणाम विरोधाभासी लगते हैं।

व्यापार कर की बात करें तो विश्लेषण में आयात तथा कर की दरों का इस्तेमाल किया गया है। इस श्रेणी के आंकड़े विभिन्न देशों में ज्यादा बदलते नहीं हैं और इसीलिए प्रदर्शन के लिए बेहतर कसौटी मिलती है। इसलिए यहां कर अंतर इस बात पर निर्भर करता है कि सीमा शुल्क व्यवस्था में कितनी अधिक छूट तथा रियायतें दी गई हैं।

यह भी ध्यान रहे कि कई देश मुक्त व्यापार समझौतों में शामिल हैं और कुछ खास मकसदों से रियायत या छूट देते हैं तथा निर्यात के बदले भी ऐसा करते हैं, इसलिए विश्लेषण में देखना चाहिए कि भारत दूसरे उभरते विकासशील देशों से कितना अलग है। ऐसे औसत देशों की तुलना में भारत अधिक छूट तथा रियायत देता है। इस कारण उभरते विकासशील देश के औसत कर अंतर के मुकाबले कर अंतर भी ज्यादा दिखता है।

इस चर्चा से क्या मिल रहा है? विभिन्न देशों के राजस्व प्रदर्शन की तुलना की व्याख्या सावधानी से करनी चाहिए। कर व्यवस्थाओं और अर्थव्यवस्था के ढांचे में बहुत अधिक अंतर होने के कारण नतीजे भी भ्रामक हो सकते हैं। कॉरपोरेट आय कर और गैर-कॉरपोरेट आय कर के लिए आय को अलग-अलग करना मुश्किल हो सकता है, जिसकी चर्चा पहले की भी जा चुकी है। इसके लिए कुछ और रखकर गणना करेंगे तो तमाम देशों के लिए नतीजे भी अलग-अलग हो जाएंगे।

(लेखिका एनआईपीएफपी, नई दिल्ली में निदेशक हैं)

First Published : June 3, 2025 | 10:29 PM IST