facebookmetapixel
UPITS-2025: प्रधानमंत्री मोदी करेंगे यूपी इंटरनेशनल ट्रेड शो 2025 का उद्घाटन, रूस बना पार्टनर कंट्रीGST कट के बाद ₹9,000 तक जा सकता है भाव, मोतीलाल ओसवाल ने इन दो शेयरों पर दी BUY रेटिंग₹21,000 करोड़ टेंडर से इस Railway Stock पर ब्रोकरेज बुलिशStock Market Opening: Sensex 300 अंक की तेजी के साथ 81,000 पार, Nifty 24,850 पर स्थिर; Infosys 3% चढ़ानेपाल में Gen-Z आंदोलन हुआ खत्म, सरकार ने सोशल मीडिया पर से हटाया बैनLIC की इस एक पॉलिसी में पूरे परिवार की हेल्थ और फाइनेंशियल सुरक्षा, जानिए कैसेStocks To Watch Today: Infosys, Vedanta, IRB Infra समेत इन स्टॉक्स पर आज करें फोकससुप्रीम कोर्ट ने कहा: बिहार में मतदाता सूची SIR में आधार को 12वें दस्तावेज के रूप में करें शामिलउत्तर प्रदेश में पहली बार ट्रांसमिशन चार्ज प्रति मेगावॉट/माह तय, ओपन एक्सेस उपभोक्ता को 26 पैसे/यूनिट देंगेबिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ इंटरव्यू में बोले CM विष्णु देव साय: नई औद्योगिक नीति बदल रही छत्तीसगढ़ की तस्वीर

रोजगार के लिए शिक्षा के स्तर से जुड़ी चुनौतियां

Last Updated- February 05, 2023 | 11:04 PM IST
Economic Survey 2024: To make India developed by 2047, industry will have to focus on generating employment Economic Survey 2024: 2047 तक विकसित भारत बनाने के लिए उद्योग जगत को रोजगार पैदा करने पर देना होगा जोर

भारत के कामकाजी वर्ग में से अधिकांश कम शिक्षित हैं। देश में कार्यरत लोगों में से अधिकांश की अधिकतम शिक्षा हाईस्कूल तक ही है। सितंबर से दिसंबर 2022 तक लगभग 40 प्रतिशत कार्यबल (हम नियोजित लोगों के प्रतिनिधित्व को दर्शाने के लिए इस शब्द का इस्तेमाल करते हैं) में हाईस्कूल पास करने वाले लोग थे। उनकी पढ़ाई का अधिकतम स्तर 10वीं और 12वीं कक्षा तक था।

भारत में कामकाजी वर्ग की शिक्षा का स्तर निचले स्तर तक सीमित है जिसकी वजह से उन्हें खराब गुणवत्ता वाली नौकरियों से ही संतोष करना पड़ता है। अधिकांश रोजगार अनौपचारिक और असंगठित क्षेत्र में ही हैं। हालांकि यह कोई नई बात नहीं है। लेकिन भारत अब भी इस पुरानी समस्या को हल करने में असमर्थ है।

कामकाजी वर्ग में से 48 प्रतिशत ने अपनी 10वीं की परीक्षा भी पास नहीं की थी जबकि 28 प्रतिशत ने छठी और नौवीं कक्षा के बीच की पढ़ाई पूरी की थी, वहीं केवल 20 प्रतिशत ही पांचवीं कक्षा पास कर पाए थे। कार्यबल के अंतिम 20 प्रतिशत के हिस्से पर गौर करें जिन्होंने पांचवीं कक्षा उत्तीर्ण की है तो उन्हें काफी हद तक अशिक्षित माना जा सकता है क्योंकि पांचवीं कक्षा तक पहुंचने के लिए एक कक्षा से दूसरी कक्षा में जाने के लिए परीक्षा पास करना आवश्यक नहीं होता है। कार्यबल का केवल 12 प्रतिशत हिस्सा ही स्नातक या स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी कर चुका है। संदर्भ के तौर पर देखें तो अमेरिका में यह अनुपात 25 वर्ष या उससे अधिक उम्र के व्यक्तियों के लिए लगभग 44 प्रतिशत है।

भारत में 1990 के दशक के अंत से उच्च शिक्षा में काफी तेजी देखी गई। सबसे पहले, आईटी इंजीनियरों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए इंजीनियरिंग शिक्षा में बड़े पैमाने पर तेजी देखी गई। फिर, वित्तीय बाजारों की जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रबंधन स्कूलों की तादाद बढ़ने लगी और इसके साथ ही बिक्री एवं मानव संसाधन प्रबंधन में भी वृद्धि देखी गई।

1990 के दशक और 2000 के दशक की शुरुआत में तेजी से वृद्धि कर रही अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कई अन्य विशेष पाठ्यक्रम भी शुरू हुए थे। उच्च शिक्षा में तेजी अपने चरम स्तर से आगे निकल सकती है। उस चरण के अंत में भारत के कुल कार्यबल में स्नातक और स्नातकोत्तर का हिस्सा करीब 12 प्रतिशत है।

स्नातक कर चुके लोग भारत छोड़ देते हैं और कई छोड़ना चाहते हैं और यह पूरी तरह से गलत अनुमान नहीं हो सकता है कि प्रतिभाशाली लोग बेहतर संभावनाओं के लिए भारत छोड़ देते हैं। हमने पहले ही इस बात का जिक्र किया है कि भारत पर्याप्त नौकरियां देने में सक्षम नहीं है और यहां अच्छी गुणवत्ता वाली पर्याप्त नौकरियां नहीं हैं। उच्च शिक्षा के हिसाब से श्रम बाजार की स्थिति ठीक नहीं है। यह शैक्षणिक योग्यता के विभिन्न स्तरों पर बेरोजगारी दर से भी स्पष्ट हो जाता है।

सितंबर-दिसंबर 2022 के दौरान भारत में बेरोजगारी दर 7.5 प्रतिशत थी। लेकिन स्नातकों (संक्षेप में स्नातक में हमेशा स्नातकोत्तर शामिल होते हैं) को बेरोजगारी दर का सामना करना पड़ा जो इस संख्या के दोगुने से अधिक 17.2 प्रतिशत था। यह बहुत कम था लेकिन फिर भी यह 10वीं और 12वीं कक्षा के बीच अधिकतम शिक्षा पाने वाले व्यक्तियों के लिए काफी अधिक था, जिन्होंने 10.9 प्रतिशत की बेरोजगारी दर का सामना किया।

कम पढ़े-लिखे लोगों में बेरोजगारी दर भी कम होती है और उनकी श्रम भागीदारी दर भी कम होती है। श्रम भागीदारी दर, शिक्षा के स्तर के साथ बढ़ती है और बेरोजगारी दर भी बढ़ जाती है। हम इसे सितंबर-दिसंबर 2022 के आंकड़ों में देखते हैं जब औसत श्रम भागीदारी दर (एलपीआर) 39.5 प्रतिशत और बेरोजगारी दर 7.5 प्रतिशत थी।

अधिकतम पांचवीं कक्षा तक की शिक्षा पाने वाले लोगों में सिर्फ एक प्रतिशत की बेरोजगारी दर थी जबकि उनकी श्रम भागीदारी दर 30 प्रतिशत के स्तर पर बहुत कम थी। छठी से नौवीं कक्षा के बीच अधिकतम शिक्षा पाने वाले लोगों के लिए श्रम भागीदारी दर 37.6 प्रतिशत थी जबकि बेरोजगारी दर अब भी दो प्रतिशत से कम थी। जिन्होंने 10वीं और 12वीं कक्षा के बीच पढ़ाई की है, उनका श्रम भागीदारी दर बढ़कर 40 प्रतिशत हो जाता है लेकिन बेरोजगारी दर भी बढ़कर 10.9 प्रतिशत तक हो जाती है।

स्नातकों के लिए एलपीआर सबसे अधिक 62.5 प्रतिशत है वहीं बेरोजगारी दर भी 17.2 प्रतिशत के स्तर पर है। स्नातकों के लिए श्रम भागीदारी अधिक हो सकती है। अमेरिका में स्नातकों (24 वर्ष से अधिक आयु) के लिए एलपीआर 2022 में करीब 73 प्रतिशत था। यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि अमेरिका में शिक्षा के स्तर में वृद्धि के साथ बेरोजगारी दर कम हो जाती है। यह अपेक्षित रुझान है। हालांकि भारत में यह इसके बिल्कुल विपरीत है।

अच्छी खबर यह है कि स्नातकों के बीच श्रम भागीदारी दर बढ़ रही है लेकिन वास्तविकता यह भी है कि स्नातकों को भारत में बहुत अधिक बेरोजगारी दर का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि स्थिति धीरे-धीरे ही सही लेकिन लगातार सुधर रही है। सितंबर-दिसंबर 2019 की अवधि में स्नातकों के लिए श्रम भागीदारी की दर 61.5 प्रतिशत के अपने चरम स्तर पर थी। कोविड महामारी के चलते यह सितंबर-दिसंबर 2020 के दौरान 56.7 प्रतिशत के निचले स्तर पर पहुंच गया। उस वक्त के बाद से सितंबर-दिसंबर 2022 में 62.5 प्रतिशत की नई ऊंचाई पर पहुंचने के दौरान ही इसमें तेजी देखी गई।

कोविड से पहले सितंबर-दिसंबर 2019 की अवधि के दौरान स्नातकों में बेरोजगारी दर 14.6 प्रतिशत थी। सितंबर-दिसंबर 2020 के दौरान यह 21.2 प्रतिशत पर पहुंच गया और तब से कमोबेश इसमें लगातार गिरावट आ रही है।

स्नातक कर चुके लोगों के लिए हालात कठिन हैं। उनकी श्रम भागीदारी दर और बेरोजगारी दरों में हाल के सुधार के बावजूद स्नातक नौकरियां इतनी पर्याप्त मात्रा में नहीं हैं कि कार्यबल की संरचना में कोई अंतर दिख सके। सितंबर-दिसंबर 2019 के दौरान कार्यबल में स्नातकों की हिस्सेदारी 13.2 प्रतिशत तक थी। जनवरी-अप्रैल 2020 में उनकी हिस्सेदारी 13.7 के स्तर पर पहुंच गई क्योंकि स्नातकों को वैसा झटका नहीं लगा जो दूसरे शिक्षित वर्ग को भुगतना पड़ा। लेकिन इसके बाद सितंबर-दिसंबर 2020 तक उनकी हिस्सेदारी घटकर 11.7 प्रतिशत रह गई। स्नातक कर चुके लोग अब तक कोविड से पहले के दौर की तरह ही कार्यबल में अपनी हिस्सेदारी हासिल नहीं कर पाएं हैं।

शैक्षणिक योग्यता के संदर्भ में कार्यबल में दिख रहे बदलाव की रफ्तार अपेक्षाकृत रूप से कम है।

(लेखक सीएमआईई प्राइवेट लिमिटेड के एमडी और सीईओ हैं)

First Published - February 5, 2023 | 11:04 PM IST

संबंधित पोस्ट