सितंबर तिमाही के नतीजे आने के बाद बैंक प्रमुखों के चेहरे पर रौनक आ गई थी। इस तिमाही के दौरान बैंकिंग उद्योग शानदार मुनाफा दर्ज करने में सफल रहा। दिसंबर तिमाही के बाद बैंकरों की चाल थोड़ी और तेज हो गई। अब अगर कोविड महामारी की तीसरी लहर का बैंकिंग उद्योग पर असर नहीं दिखा तो इनमें कई बैंक कारोबार के मोर्चे पर अपनी चाल और तेज कर सकते हैं।
दिसंबर तिमाही में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का शुद्ध मुनाफा 17,729 करोड़ रुपये रहा है। यह अब तक का सर्वाधिक मुनाफा है। निजी बैंकों को भी शामिल कर लें तो बैंकिंग उद्योग का शुद्ध मुनाफा 44,733 करोड़ रुपये रहा। एक समूह के रूप में निजी बैंकों को केवल एक तिमाही में शुद्ध नुकसान हुआ है। इनकी तुलना में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने दिसंबर 2015 के बाद 25 तिमाहियों में करीब 11 तिमाहियों में शुद्ध नुकसान उठाया है। इस अवधि में पांच तिमाहियों के दौरान मार्च 2018 तिमाही में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 41,630 करोड़ रुपये का तगड़ा नुकसान हुआ था।
माहौल अब भी थोड़ा असहज है मगर दिसंबर 2021 तिमाही में दर्ज आंकड़ों के बाद बैंक प्रमुख जरूर राहत महसूस कर सकते हैं।
जून 2021 के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के सभी बैंक तिमाही आधार पर मुनाफा दर्ज कर रहे हैं। इनमें तीन बैंकों के शुद्ध मुनाफे में कमी आई है। निजी क्षेत्र के बैंकों में साउथ इंडियन बैंक लिमिटेड लगातार नुकसान में चल रहा है मगर इसमें कमी जरूर आई है।
कुल मिलाकर सालाना आधार पर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का शुद्ध मुनाफा 138.5 प्रतिशल उछल गया है जबकि निजी क्षेत्र के बैंकों के शुद्ध मुनाफे में 64 प्रतिशत से अधिक तेजी देखी गई है। आखिर बैंकों का शुद्ध मुनाफा बढऩे की वजह क्या है? बैंकों के मुनाफे में तेजी की सबसे बड़ी वजह शुद्ध ब्याज आय (आवंटित ऋण पर अर्जित ब्याज और जमा रकम पर भुगतान किए जाने वाले ब्याज के बीच का अंतर) में इजाफा है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की यह आय 6.7 प्रतिशत बढ़ी है जबकि निजी बैंकों के मामलो में इसमें 13.4 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। वैसे दिसंबर तिमाही में बॉन्ड के कारोबार, फीस और फंसे ऋणों की वसूली से होने वाली कमाई में गिरावट आई है। निजी बैंकों को अन्य आय के मद में कोई खास फायदा नहीं हुआ है। कुछ अपवादों को छोड़कर ज्यादातर सार्वजनिक और निजी बैंकों की आय में कमी आई है। इसका कारण प्रतिफल में तेजी आने से बॉन्ड कारोबार में हुआ नुकसान है। बैंकों के परिचालन मुनाफे से इनके शुद्ध मुनाफे में रिकॉर्ड बढ़ोतरी का अंदाजा लगाया जा सकता है। निजी बैंकों का शुद्ध मुनाफा महज 2.2 प्रतिशत बढ़ा है जबकि सार्वजनिक बैंकों का परिचालन मुनाफा 0.6 प्रतिशत कम हुआ है। फंसे ऋण के लिए प्रावधान और आपात स्थिति के लिए रखी गई रकम में कमी से शुद्ध मुनाफे को ताकत मिली है। निजी बैंकों के मामले में प्रावधान और आपात रकम में 42.5 प्रतिशत कमी आई है जबकि सार्वजनिक बैंकों के मामले में यह 34.5 प्रतिशत कम हुई है। कुल मिलाकर बैंकिंग उद्योग में इन मदों में रकम की जरूरत कम से कम 37 प्रतिशत कम हो गई। निजी क्षेत्र के धनलक्ष्मी बैंक और तीन सार्वजनिक बैंकों को छोड़कर सभी बैंकों को एक वर्ष पहले की तुलना में प्रावधान एवं आपात स्थिति के मद में काफी कम रकम का भुगतान करना पड़ा था। फंसे ऋण में कमी की वजह से यह संभव हो पाया है।
एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह भी है कि बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता कैसी है? लगभग सभी बैंक तिमाही (सितंबर से दिसंबर) आधार पर सकल और शुद्ध गैर-निष्पादित परिसपंत्तियों (एनपीए) में कमी लाने में सफल रहे हैं। मगर ज्यादातर बैंकों के लिए सकल और शुद्ध एनपीए एक वर्ष पहले (दिसंबर 2020) की तुलना में अब भी अधिक है। एनपीए की तुलना सालाना आधार पर करने को अधिक तवज्जो नहीं दी जा सकती क्योंकि उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद बैंकों ने फंसे ऋण को वर्गीकृत करना बंद कर दिया था।
कोई बैंक अपने एनपीए में कैसे कमी लाता है? विभिन्न बैंक फंसे ऋण की वसूली, ग्राहकों से मिली बकाया रकम, नए ऋण को फंसे कर्ज में बदलने से रोकने के उपायों और टेक्रिकल राइट-ऑफ (भारतीय बैंकिंग उद्योग में परिचलित ऐसी व्यवस्था जिसके तहत बैंकों के बहीखाते से सकल एनपीए हट जाते हैं लेकिन बैंकों की शाखाओं में ये ऋण मौजूद रहते हैं) से अपने एनपीए में कमी ला सकते हैं। जब भी ऋणों की वसूली होती है यह बैंकों के शुद्ध मुनाफे में जुड़ जाती है। ऐसा प्रतीत होता है कि सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ बैंक ऐसे राइट-ऑफ का सहारा लेकर अपना सकल एनपीए कम करने में सफल रहे हैं। खासकर इनमें वे बैंक शामिल हैं जिनका आकार विलय के बाद बढ़ गया है। दूसरी तरफ निजी क्षेत्र के बैंकों ने परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनियों को फंसे ऋण बेचकर सकल एनपीए में कमी ला पाए हैं। अब बैंकों से ऋण आवंटन बढऩे के संकेत मिलने लगे हैं। उन्होंने ऋण मंजूर करना शुरू कर दिया है। यह अलग बात है कि इनके आवंटन में थोड़ा समय लग सकता है। खुदरा ऋण की मांग लगातार बनी हुई है मगर अब कंपनियों को भी ऋण आवंटन में तेजी आई है। चालू वित्त वर्ष में ऋण आवंटन में दो अंकों में तेजी दर्ज हो सकती है। अगर ऋण आवंटन बढ़ता है तो प्रतिशत के रूप में एनपीए में और कमी आएगी, बशर्ते फंसे ऋण की मात्रा और नहीं बढ़े।
तो क्या भारतीय बैंकिंग क्षेत्र मुश्किलों से बाहर निकल गया है? यह कहना जल्दबाजी होगी। अभी कई चुनौतियां बरकरार हैं। कई बैंक जोखिम प्रबंधन ढांचा तैयार किए बिना खुदरा ऋण आवंटित कर रहे हैं जबकि कुछ बैंक जोखिमों का सही आकलन किए बिना कंपनियों को ऋण दे रहे हैं। कुछ बैंकों में संचालन व्यवस्था भी एक समस्या रही है मगर यह एक अलग मसला है।
(लेखक बिज़नेस स्टैंडर्ड के सलाहकार संपादक, लेखक और जन स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड में वरिष्ठ सलाहकार हैं।)
