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BS Editorial: सतर्कता जरूरी

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने अपने वक्तव्य में कहा कि खाद्य मुद्रास्फीति ऊंचे स्तरों पर बनी रह सकती है।

Last Updated- October 27, 2023 | 8:17 PM IST
Reserve Bank of India, RBI MPC Meet Highlights

दुनिया के केंद्रीय बैंक वर्तमान समय में असहज स्थिति का सामना कर रहे हैं। विशेषकर, कोविड महामारी से उत्पन्न चुनौतीपूर्ण स्थिति और इसके पश्चात सुधार का सिलसिला शुरू होने के बाद केंद्रीय बैंकों के लिए परिस्थितियां गंभीर हो गई हैं।

अधिकांश विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति पिछले कुछ दशकों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। शुरू में स्थिति भांपने में विफल रहने और हिचकिचाहट दिखाने के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण केंद्रीय बैंकों ने निर्णायक कदम उठाने शुरू कर दिए।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) भी मुद्रास्फीति नियंत्रित करने के लिए मई 2022 से रीपो दर में 250 आधार अंकों की बढ़ोतरी कर चुका है। हालांकि, अब पिछले आठ महीनों से आरबीआई ने दरें यथावत रखी हैं। पिछले सप्ताह संपन्न द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने नीतिगत दर अपरिवर्तित रखी।

इस बैठक के परिणाम अनुमान के अनुरूप ही रहे, परंतु आरबीआई ने कुछ जोखिमों को अवश्य इंगित किया, जिन्हें लेकर सतर्क रहने की आवश्यकता है।

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने अपने वक्तव्य में कहा कि खाद्य मुद्रास्फीति ऊंचे स्तरों पर बनी रह सकती है। इस वर्ष दक्षिण-पश्चिम मॉनसून में अनियमित वर्षा हुई है और इस कारण मुद्रास्फीति अल-नीनो के प्रभावों पर निर्भर करेगी। वैश्विक स्तर पर खाद्यान्न एवं ऊर्जा के दाम उतार-चढ़ाव देखे गए हैं।

दास ने मौद्रिक नीति के रुख के अनुसार नकदी प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया है। हालांकि, नकदी प्रबंधन के लिए खुला बाजार परिचालन (ओएमओ) की घोषणा से बाजार चकित रह गया। बाजार की इस प्रतिक्रिया का कारण यह था कि आरबीआई ने ओएमओ की घोषणा ऐसे समय में की है जब मौद्रिक नीति का संचालन लक्ष्य (ऑपरेटिंग टार्गेट) – वेटेड एवरेज कॉल रेट- नीतिगत दर से ऊपर रह रहा है।

ओएमओ की घोषणा के बाद 10 वर्ष की परिपक्वता अवधि के मानक सरकारी बॉन्ड पर प्रतिफल 12 आधार अंक उछल गया। नकदी से जुड़ी परिस्थितियों में बदलाव को देखते हुए आरबीआई गवर्नर ने कहा कि फिलहाल हालात सहज नहीं हैं, इसलिए केंद्रीय बैंक सोच-समझकर कदम उठाएगा।

हालांकि, मुद्रास्फीति के प्रबंधन के संदर्भ में बात की जाए तो परिस्थितियां दोतरफा चुनौतियों का सामना कर रही हैं। मुद्रास्फीति बढ़ाने वाले कारकों में बदलाव के साथ ही इसमें बढ़ोतरी भी सबके लिए आश्चर्य का कारण रही है।

चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में नरम पड़ने के बाद खाद्य वस्तुओं के दाम बढ़ने से मुद्रास्फीति फिर बढ़ गई है और आरबीआई द्वारा निर्धारित सहज स्तर के ऊपरी सिरे से भी आगे निकल गई है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि एमपीसी ने चालू वित्त वर्ष के लिए महंगाई का अनुमान स्थिर रखा है।

आरबीआई ने स्पष्ट कर दिया कि इसका लक्ष्य मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत पर नियंत्रित रखना है न कि 2 से 6 प्रतिशत के दायरे में रहने के लिए इसे छोड़ देना है। परंतु, यह लक्ष्य प्राप्त करने के लिए आरबीआई को कुछ समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है। वास्तव में, प्रतीक्षा की अवधि पहले ही लंबी हो चुकी है।

मार्च 2020 से औसत मुद्रास्फीति 6 प्रतिशत से अधिक रही है। अधिकतर महीनों में यह 5 प्रतिशत से ऊपर रही है। अब देखना यह है कि आरबीआई दीर्घ अवधि तक महंगाई 4 प्रतिशत पर रखने का लक्ष्य कब प्राप्त कर पाता है।

यह तो निश्चित है कि नीतिगत उपायों से संबंधित विकल्प अधिक पेचीदा हो गए हैं, क्योंकि खुदरा महंगाई दर इस समय आपूर्ति पक्ष से जुड़े कारणों से बढ़ रही है। दूसरी तरफ, प्रमुख (कोर इन्फ्लेशन) मुद्रास्फीति नरम हुई है। पिछले सप्ताह ही आई मौद्रिक नीति रिपोर्ट के अनुसार आरबीआई ने कच्चे तेल के लिए आधार अनुमानित मूल्य 85 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर रखा है।

पिछले कुछ दिनों में तेल की कीमतें अवश्य घटी हैं, परंतु अधिकतर अनुमानों के अनुसार कीमतें ऊंचे स्तरों पर बनी रह सकती हैं। आरबीआई की गणना के अनुसार कच्चे तेल में अनुमानित आधार मूल्य के ऊपर प्रत्येक 10 प्रतिशत बढ़ोतरी से मुद्रास्फीति दर 30 आधार अंक तक बढ़ सकती है।

मौद्रिक नीति से जुड़े पेचीदा विषयों के अलावा आरबीआई गवर्नर ने व्यक्तिगत ऋणों के आवंटन में तेज वृद्धि पर भी बैंकों का ध्यान आकृष्ट किया है। इसे देखते हुए यह निर्धारित करना आवश्यक हो जाता है कि व्यक्तिगत ऋणों में बढ़ोतरी वित्त-तकनीक इकाइयों की सहायता से औपचारिक ऋणों के अधिक से अधिक लोगों तक उपलब्ध होने से हुई है या अन्य कई कारणों से इसमें वृद्धि हुई है।

व्यक्तिगत ऋणों का आवंटन ऐसे समय बढ़ा है जब ब्याज दरें ऊंचे स्तरों पर हैं और दरें कम होने के बाद यह (आवंटन) और बढ़ सकता है। इसे देखते हुए बैंकिंग प्रणाली में ऋण का अंबार और बढ़ सकता है।

First Published - October 8, 2023 | 9:23 PM IST

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