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खुदरा के दम पर तेजी

Last Updated- December 12, 2022 | 4:06 AM IST

सन 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 7.3 फीसदी घटने, कोविड महामारी की तबाही मचाती दूसरी लहर, लगातार मौतों और बेरोजगारी बढऩे की खबरों के बीच भी शेयर बाजार में तेजी का सिलसिला बरकरार है। निफ्टी के मार्च 2020 के अंतिम दिनों में पहला लॉकडाउन लगाए जाने के बाद के निचले स्तर से 107 फीसदी का सुधार हुआ है और इसकी कई वजह बताई जा रही हैं। बाजार पूंजीकरण और जीडीपी अनुपात तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक यानी 100 फीसदी से ज्यादा है। सन 2007 के बाद यह पहला मौका है जब बाजार पूंजीकरण इस स्तर को पार कर सका है। लंबी अवधि का औसत 77 फीसदी है। निवेश गुरु वारेन बफेट के मुताबिक उच्च अनुपात इस बात का प्रमाण है कि बाजार में गिरावट आएगी। प्रथम विश्व के देशों ने जहां लंबे समय से स्थायी उच्च अनुपात कायम रखा है, वहीं विकासशील देशों के लिए यह अस्वाभाविक है। उदाहरण के लिए चीन का अनुपात 80 फीसदी का है।
यह आंशिक रूप से सांख्यिकी संबंधी विसंगति है जो जीडीपी में गिरावट और 2020-21 में कई नई कंपनियों के सूचीबद्ध होने से उत्पन्न हुई क्योंकि इससे बाजार पूंजीकरण बढ़ा है। एक अन्य दिलचस्प आंकड़ा है वित्त वर्ष 2020-21 का कॉर्पोरेट मुनाफा जो जीडीपी के 2.63 फीसदी के साथ 10 वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। एक बार फिर जीडीपी में गिरावट इसकी वजह रही। बहरहाल, वित्त वर्ष 2020-21 की दूसरी छमाही में आय असाधारण गति से नहीं बढ़ी। जनवरी से जून 2021 के बीच जहां निफ्टी में 12 फीसदी की बढ़ोतरी हुई, वहीं समेकित मूल्य आय अनुपात फरवरी के मध्य (जब तीसरी तिमाही के नतीजे आ ही रहे थे) में 41-42 गुना था लेकिन चौथी तिमाही के बाद वह घटकर 29-30 पर आ गया। परंतु यह ऐतिहासिक मानकों से उच्च मूल्यांकन है और अन्य उभरते बाजारों के अनुरूप ही है। लॉकडाउन वाले वर्ष में राजस्व में ज्यादा इजाफा नहीं हुआ। लेकिन लागत कटौती, ब्याज दरों में कमी, जिंस कीमतों के कम होने और कॉर्पोरेट कर के कम होने से मुनाफा तेजी से बढ़ा। लागत में कमी की एक वजह कर्मचारियों की छंटनी और घर से काम करना भी है। अर्थव्यवस्था के सामान्य होने पर ये लागत पुन: बढ़ेंगी। चौथी तिमाही में कर्मचारियों से संबद्ध लागत बढ़ी। वैश्विक जिंस कीमतों में भी बढ़ोतरी हुई।
खुदरा निवेशकों की उत्साहवर्धक भागीदारी भी दिलचस्प पहलू है। उन्होंने सीधे या म्युचुअल फंड के माध्यम से निवेश किया। जब संस्थागत उत्साह धीमा पड़ा तो खुदरा की मदद से मूल्यांकन बढ़ा। मई 2021 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने 6,000 करोड़ रुपये के शेयर बेचे जबकि घरेलू संस्थागत निवेशकों ने केवल 2,000 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे। परंतु खुदरा खरीद के चलते बाजार 7.5 फीसदी उछला। बढ़ती बेरोजगारी और रिजर्व बैंक के पारिवारिक सर्वे में उपभोक्ताओं के कमजोर भरोसे और अपेक्षाओं को देखते हुए खुदरा कारोबारियों का यह उत्साह थोड़ा विसंगतिपूर्ण है। परंतु कम ब्याज दरों ने भी निवेशकों को शेयरों में निवेश करने को प्रेरित किया क्योंकि अन्य परिसंपत्तियों में प्रतिफल बहुत खराब है।
आशा यही है कि दूसरी लहर के बावजूद वित्त वर्ष 2021-22 में एक अंक में उच्च जीडीपी वृद्धि देखने को मिलेगी। पहली छमाही में कम आधार प्रभाव यकीनन उच्च सालाना वृद्धि की वजह बनेगा। निराशावादी, खपत के कमजोर आंकड़ों, उच्च मृत्युदर और जीडीपी वृद्धि अनुमानों में संशोधन की आशंका पर ध्यान देंगे।  यदि चतुर संस्थागत निवेशकों ने पैसे के इस्तेमाल में खुदरा की तुलना में अधिक रूढि़वादी रुख अपनाया गया तो यह भी खतरे की घंटी होगा। ऐतिहासिक तौर पर भारत ने जब भी उच्च बाजार पूंजीकरण और जीडीपी अनुपात को छुआ तब बाजारों में गिरावट आई और कारोबारी मुनाफा भी अधिक सामान्य स्तर पर आया है। निवेशकों, खुदरा निवेशकों को बुनियादी तत्त्वों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए।

First Published - June 2, 2021 | 11:29 PM IST

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