इन दिनों लगभग सभी निवेशक शेयर बाजार में डुबकी लगाने से पहले सार्वजनिक क्षेत्र (पीएसयू) के बैंकों पर जरूर निगाहें दौड़ाते हैं। बैंकिंग क्षेत्र पर नजर रखने वाले विशेषज्ञ भी सार्वजनिक क्षेत्र के 12 बैंकों पर नजर गड़ाए हुए हैं। इसका कारण समझना बहुत मुश्किल नहीं है।
दिसंबर तिमाही में 12 पीएसयू बैंकों में से सात में शुद्ध गैर-निष्पादित आस्तियां (एनपीए) 1 फीसदी से भी कम थीं, जबकि शेष बैंकों के मामले में यह 2 फीसदी से कम रही थीं। देश के सबसे बड़े कर्जदाता एसबीआई में शुद्ध एनपीए मात्र 0.64 फीसदी थीं। पीएसयू बैंकों के बहीखाते यदा-कदा ही इतने साफ-सुथरे दिखते हैं।
12 में से 8 पीएसयू बैंकों में कम से कम 40 फीसदी और 50 फीसदी तक हिस्सेदारी कम लागत वाले चालू खाता बचत खाता (कासा) की थी। इतना ही नहीं, कुछ भारी भरकम निजी बैंकों को छोड़ दें तो इस क्षेत्र के अधिकांश निजी बैंकों की तुलना में ये पीएसयू बैंक बचत खाते पर काफी कम ब्याज दे रहे हैं।
अब इस पर विचार करते हैं कि पिछले एक वर्ष में इन पीएसयू बैंकों का प्रदर्शन कैसा रहा है? 23 फरवरी तक के एक साल में बीएसई का संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 22.43 फीसदी उछल चुका था, वहीं एनएसई का निफ्टी भी 26.54 फीसदी ऊपर जा चुका है। इन दोनों सूचकांकों की तुलना में 10 बैंक शेयरों वाले एसऐंडपी बीएसई बैंकेक्स में 17.63 फीसदी तेजी आई है। 12 सर्वाधिक कारोबार करने वाले बैंकिंग शेयरों का सूचकांक भी लगभग 17.04 फीसदी उछला है।
मगर पीएसयू बैंकों के प्रदर्शन को आंकने में मदद करने वाला निफ्टी पीएसयू बैंक सूचकांक लगभग 95 फीसदी उछल चुका है! इस सूचकांक में एसबीआई, बैंक ऑफ बड़ौदा (बीओबी), केनरा बैंक, पंजाब नैशनल बैंक (पीएनबी), यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, इंडियन ओवरसीज बैंक (आईओबी), यूको बैंक और पंजाब ऐंड सिंध बैंक (पीऐंडएस बैंक) आदि शामिल हैं।
बैंकेक्स में केवल दो पीएसयू बैंक एसबीआई और बीओबी हैं। बैंक निफ्टी में शामिल 12 बैंकों में तीन पीएसयू- एसबीआई, बीओबी और पीएनबी- हैं। ये आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि पीएसयू बैंकों का बाजार पूंजीकरण निजी क्षेत्र के उनके समकक्षों की तुलना में कहीं बेहतर है।
12 पीएसयू बैंकों में से 8 ने निवेशकों को पिछले एक साल में 100 फीसदी से अधिक प्रतिफल दिए हैं। सबसे कम प्रतिफल-46 फीसदी- एसबीआई के शेयर ने दिया है मगर निजी क्षेत्र के सूचीबद्ध बैंकों से तुलना करें तो यह कहीं से कम नहीं है। तीन छोटे पुराने निजी बैंकों को छोड़कर किसी ने भी पिछले एक वर्ष में 100 फीसदी से अधिक प्रतिफल नहीं दिया है। निजी क्षेत्र के बड़े बैंकों में आईसीआईसीआई बैंक का शेयर 26 फीसदी और ऐक्सिस बैंक का शेयर 30 फीसदी से अधिक उछला है।
आखिर स्टॉक एक्सचेंजों पर पीएसयू बैंकों के दमदार प्रदर्शन की वजह क्या है? अतीत के पन्ने पलटें तो निजी क्षेत्रों के बैंकों की तुलना में पीएसयू बैंकों का प्रदर्शन कमजोर रहा है। एक वर्ष पहले तक मूल्यांकन के लिहाज से किसी पीएसयू बैंक के शेयर का तथाकथित प्राइस-टू-बुक वैल्यू यानी बाजार मूल्यांकन एवं बुक वैल्यू का अनुपात अच्छा माना जाता था।
दूसरे शब्दों में कहें तो उनका मूल्यांकन वास्तविकता से कम था। मगर अब निवेशकों को पीएसयू बैंक शेयरों में चमक दिखाई दे रही है क्योंकि परिसंपत्ति गुणवत्ता बेहतर होने से इनके बहीखातों में मजबूती आई है। पीएसयू बैंकों ने अब कारोबार विस्तार से नजर हटाकर ध्यान मुनाफा कमाने पर केंद्रित किया है।
बाजार में पीएसयू बैंकों के शेयरों की उपलब्धता भी कम है। यह बात इनके फायदे में जा रही है। उदाहरण के लिए पीऐंडएस बैंक के केवल 1.75 फीसदी शेयर ही बाजार में खरीदारी के लिए उपलब्ध हैं। पीएसयू बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी भी काफी अधिक है। 12 पीएसयू बैंकों में से एसबीआई में सरकार की हिस्सेदारी सबसे कम 57.5 फीसदी है। एसबीआई अधिनियम के अनुसार यह 55 फीसदी से कम नहीं हो सकती।
आईडीबीआई के अलावा दो अन्य पीएसयू बैंकों के संभावित निजीकरण की खबरों के कारण भी निवेशकों की दिलचस्पी पीएसयू बैंकों में बढ़ रही हैं। तो क्या पीएसयू बैंकों का जोरदार प्रदर्शन यूं ही जारी रहेगा? बाजार की गतिविधियों का अनुमान लगा पाना आसान नहीं होता है मगर कम से कम दो ऐसे कारक हैं जो पीएसयू बैंकों का प्रदर्शन मजबूत रहने के संकेत दे रहे हैं।
पहली बात, जब जमा रकम पाने की होड़ अधिक होती है उस समय शाखाओं का जाल और ग्राहकों की संख्या पीएसयू बैंकों के लिए कम लागत पर कासा खोलने में बहुत काम आते हैं। इससे उन्हें फिक्स्ड डिपॉजिट (सावधि जमा) पर भी तुलनात्मक रूप से कम ब्याज देना पड़ता है। सरकारी बैंकों को सरकार का भी समर्थन प्राप्त होता है जिससे बचतकर्ता इन बैंकों में कम ब्याज के बावजूद रकम रखते हैं।
दूसरी बात, अगले वित्त वर्ष के लिए सरकार अधिक पूंजीगत व्यय की योजना तैयार कर रही है। निजी क्षेत्र से पूंजीगत व्यय अब भी निचले स्तर पर है इसलिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अंतरिम बजट में वित्त वर्ष 2025 के लिए पूंजीगत व्यय 11.1 फीसदी बढ़ाकर 11.11 लाख करोड़ रुपये (सकल घरेलू उत्पाद का 3.4 फीसदी) कर दिया है।
अमूमन पीएसयू बैंक किसी परियोजना के लिए धन मुहैया कराने में निजी बैंकों से आग रहते हैं। अधिक पूंजीगत व्यय की योजना के बाद पीएसयू बैंक खुदरा ऋणों से ध्यान हटाकर दीर्घ अवधि के कंपनी ऋणों के आवंटन में अधिक दिलचस्पी लेंगे। पीएसयू बैंकों को इस अवसर का फायदा मिल सकता है।
हां, यह जरूर है सब कुछ आंख मूंद कर नहीं किया जाना चाहिए। पीएसयू बैंकों के लिए परियोजनाओं का भली-भांति मूल्यांकन करने और जोखिमों को समझने के बाद ही ऋण आवंटन से संबंधित निर्णय लेना उचित होगा। यह उम्मीद की जा सकती है कि पीएसयू बैंक सावधानी से कदम बढ़ाएंगे। खासकर, तब जब सरकार आधारभूत ढांचे के लिए आंख मूंद कर पूंजी देने के लिए शायद ही पीएसयू बैंकों पर कोई दबाव डालेगी।