भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने नीतिगत दर 50 आधार अंक बढ़ाकर 5.9 प्रतिशत कर दी है, वित्त वर्ष 2023 के लिए वृद्धि अनुमान 7.2 प्रतिशत से घटाकर 7 प्रतिशत कर दिया है और अपनी नई मौद्रिक नीति में वर्ष के लिए मुद्रास्फीति अनुमान को अपरिवर्तित रखा है। मौद्रिक नीति का रुख ‘समायोजन खत्म करते हुए, वृद्धि को समर्थन देना’ जारी रखना है।
ये फैसले अपेक्षित रुझान पर ही आधारित हैं। बॉन्ड और इक्विटी बाजार दोनों ने आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास की हैरान न करने वाली नीति को लेकर उत्साह दिखाया। उन्होंने कहा कि नीतिगत दर पर भारतीय रिजर्व बैंक का निर्णय घरेलू परिस्थितियों के विचारों से प्रेरित होगा, न कि इस बात पर कि दुनिया के अन्य केंद्रीय बैंक क्या कर रहे हैं।
मैं दिसंबर में एक बार और दरों में वृद्धि की उम्मीद करूंगा और यह संभवतः 35 आधार अंक हो सकती है। वित्त वर्ष समाप्त होने से पहले नीतिगत दर को 6.5 प्रतिशत के स्तर पर ले जाने के लिए फरवरी 2023 में एक बैठक हो सकती है। आखिर मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं यह जानने के लिए रिजर्व बैंक के गर्वनर के बयान के इस हिस्से पर गौर करेः
उन्होंने कहा, ‘मौद्रिक नीति जून 2019 में तटस्थ से समायोजन वाले रुख की ओर बढ़ी थी। उस समय रीपो दर 5.75 फीसदी थी जबकि सीपीआई मुद्रास्फीति 3 प्रतिशत के आसपास थी और वर्ष 2019-20 की दूसरी छमाही में इसके 3.4 से 3.7 प्रतिशत के दायरे में रहने की उम्मीद थी।
उन्होंने कहा, ‘आज मुद्रास्फीति 7 प्रतिशत के आसपास के स्तर पर है और हमें उम्मीद है कि यह 2022-23 की दूसरी छमाही में करीब 6 प्रतिशत के उच्च स्तर पर रहेगी। इस तरह हाल में भले ही नॉमिनल नीतिगत रीपो दर में अब तक 190 आधार अंकों की वृद्धि की गई है, लेकिन मुद्रास्फीति के लिए समायोजित नीतिगत दर 2019 के स्तर से पीछे ही है।’
यहां बात को स्पष्ट किए बिना दास ऋणात्मक वास्तविक दर का जिक्र कर रहे हैं। जब खुदरा मुद्रास्फीति 3 प्रतिशत थी और इसके 3-4-3.7 प्रतिशत तक बढ़ने की उम्मीद थी, तब नीतिगत दर 5.75 प्रतिशत थी। इस वक्त जब मुद्रास्फीति 7 प्रतिशत के आसपास है और वर्ष की दूसरी छमाही में इसके 6 प्रतिशत से अधिक होने की उम्मीद है, तब नीतिगत दर 5.9 प्रतिशत है। हालांकि इसे आगे बढ़ाने की जरूरत है और यही प्राथमिकता है। नीतिगत बयान में मुद्रास्फीति, नकदी की स्थिति और विदेशी मुद्रा भंडार के संबंध में काफी चीजों को स्पष्ट किया गया है।
वित्त वर्ष 2023 की पहली छमाही में भारत में कच्चे तेल की कीमत करीब 104 डॉलर प्रति बैरल थी। वहीं दूसरी छमाही में कच्चे तेल की दर 100 डॉलर प्रति बैरल मानते हुए, वर्ष 2022-23 में मुद्रास्फीति अनुमानतः 6.7 प्रतिशत के स्तर पर रह सकती है और जोखिम को समान रूप से संतुलित करते हुए इसे दूसरी तिमाही में 7.1 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 6.5 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.8 प्रतिशत के स्तर पर रखा गया। वित्त वर्ष 2024 की पहली तिमाही में मुद्रास्फीति में कमी आने के साथ इसके 5 प्रतिशत के स्तर पर पहुंचने का अनुमान है।
अगस्त में उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति 7 प्रतिशत थी, जो लगातार आठ महीनों तक आरबीआई के स्वीकार्य मुद्रास्फीति लक्ष्य के दायरे (4 प्रतिशत +/- 2 प्रतिशत) के ऊपरी स्तर पर बनी हुई है। सितंबर में इसमें और बढ़ोतरी होगी। कानून के तहत अगर मुद्रास्फीति लगातार नौ महीने उच्च स्तर के दायरे में रहती है तब आरबीआई को सरकार को स्पष्टीकरण देना होता है। बयान में कहा गया है कि कच्चे तेल सहित वैश्विक जिंस कीमतों में गिरावट जारी रहती है तब आने वाले महीनों में लागत का दबाव कम हो सकता है।
आरबीआई ने बैंकिंग तंत्र में नकदी की कमी को लेकर मच रहे बवाल को ज्यादा तवज्जो नहीं दी है। दास ने इस ओर इशारा किया कि अधिशेष नकदी जून-जुलाई के 3.8 लाख करोड़ रुपये से घटकर अगस्त-सितंबर 2022 (28 सितंबर तक) के दौरान 2.3 लाख करोड़ रुपये हो गई है, लेकिन यह अस्थायी स्थिति है क्योंकि साल की दूसरी छमाही में सरकारी खर्च बढ़ेगा।
इसके अलावा बैंकिंग प्रणाली में अतिरिक्त नकद आरक्षित अनुपात और अतिरिक्त सांविधिक नकदी अनुपात (बैंकों के पोर्टफोलियो में सरकारी बॉन्ड) है जिसके जरिये वे पूंजी जुटा सकते हैं। उन्होंने बाजार को आश्वस्त किया है कि आरबीआई समय-समय पर आवश्यक नकदी डालने के साथ ही इस पर नियंत्रित करने की कोशिशें जारी रखेगा। शुरुआत में, इसने 28 दिनों के परिवर्तनीय रिवर्स रीपो या वी-आरआरआर बोली को खत्म करते हुए 14-दिनों के वी-आरआरआर पर टिकना शुरू कर दिया।
आरबीआई अपने रिवर्स रीपो तकनीक के माध्यम से बैंकों की अतिरिक्त नकदी को हटाता है। इसका एक हिस्सा एक निश्चित दर पर और बाकी परिवर्तनीय दर पर किया जाता है। आरबीआई पिछले एक साल में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 100 अरब डॉलर से अधिक की गिरावट के बावजूद भी बेफिक्र दिखता है। चालू वित्त वर्ष के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में करीब 67 प्रतिशत की गिरावट अमेरिकी डॉलर की मजबूती और उच्च स्तर के अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल से मूल्यांकन में आए बदलावों के कारण आई है।
इसका मतलब यह है कि रिजर्व बैंक के विदेशी मुद्रा भंडार में अन्य मुद्राओं में गिरावट के अलावा अमेरिका में बॉन्ड प्रतिफल में वृद्धि से विदेशी मुद्रा भंडार को नुकसान पहुंचा है। बॉन्ड प्रतिफल और कीमतें विपरीत दिशा में चल रही हैं। जिन कीमतों पर आरबीआई ने बॉन्ड खरीदे थे, वे प्रतिफल में वृद्धि के साथ कम हुए हैं और ऐसे में भारतीय रिजर्व बैंक को घाटे की भरपाई करनी होगी। प्रमुख उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में भारत का बाहरी ऋण और जीडीपी अनुपात सबसे कम है लेकिन दास ने बाहरी फंडिंग आवश्यकताओं को आराम से पूरा करने का भरोसा जताया है।
नीतिगत दर में वृद्धि के साथ, वाणिज्यिक बैंकों की ऋण दर में वृद्धि का एक और दौर आएगा। कर्ज लेने वालों को अधिक भुगतान करना होगा। दिसंबर 2021 तक, बैंकिंग उद्योग के 39 प्रतिशत से थोड़े अधिक ऋण, दिसंबर 2019 में पेश किए गए बाहरी बेंचमार्क-आधारित उधार दर (ईबीएलआर) से जुड़े थे। उस वक्त से ही इसमें और इजाफा हुआ है।
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के साथ-साथ खुदरा ऋणों को दिए गए सभी ऋण ईबीएलआर से जुड़े हुए हैं। बैंक मुख्य रूप से रीपो दर और कुछ योजनाओं के लिए 364-दिनों की ट्रेजरी बिल दर का इस्तेमाल बाहरी बेंचमार्क के रूप में करते हैं। जमा दरों में भी इजाफा होगा। जून 2019 में जब मुद्रास्फीति 3 प्रतिशत और नीतिगत दर 5.75 प्रतिशत थी, भारत के सबसे बड़े ऋणदाता भारतीय स्टेट बैंक की बचत बैंक खाता दर 1 लाख रुपये तक के लिए 3.5 प्रतिशत और 1 लाख रुपये से अधिक की रकम के लिए 3.25 प्रतिशत थी।
जब मुद्रास्फीति 7 प्रतिशत और नीतिगत दर 5.9 प्रतिशत है, ऐसे वक्त में इसका बचत बैंक खाता दर 2.7 प्रतिशत है। इसी तरह जून 2019 में दो साल से कम (दो करोड़ रुपये तक) में परिपक्व होने वाली सावधि जमा पर 7 प्रतिशत ब्याज दर की पेशकश की गई थी। अब यह दर 5.45 प्रतिशत है। अगर नकदी वृद्धि को बरकरार रखना है तब बैंकों के पास जमा दर बढ़ाने के अलावा कोई चारा नहीं है।