ऐसा माना जा रहा था कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व, अमेरिकी खुदरा मूल्य सूचकांक को दो फीसदी के स्तर पर लाने का अपना लक्ष्य हासिल करने की ओर बढ़ रहा है। यह काम हाल के सप्ताहों में उस समय मुश्किल हो गया जब अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मजबूती नजर आई और यूक्रेन से निरंतर निर्यात को लेकर चिंताएं उत्पन्न हुईं।
ऐसा प्रतीत होता है कि अमेरिका अब दरों में 50 और आधार अंकों की वृद्धि की ओर बढ़ रहा है। भारत की बात करें अमेरिकी फेड द्वारा और रिजर्व बैंक द्वारा कोविड के बाद के दौर में विस्तार पर काफी हद तक लगाम लगाए रखी गई है। रिजर्व बैंक की दरों में इजाफा न करने की नीति भी सही है।
सन 2021 में अमेरिकी फेड ने अमेरिका में मुद्रास्फीति की समस्या से निपटना शुरू किया और मार्च 2022 के बाद से दरों में 10 बार इजाफा किया। वहां अल्पावधि की दर अब 5 से 5.25 फीसदी के बीच है। उधर रूस ने फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमला कर दिया। इन दोनों घटनाओं ने विश्व अर्थव्यवस्था पर नया दबाव बनाया। हम आपस में जुड़ी दुनिया की बात करते हैं और 2022 के बाद की घटनाओं ने हमें नए सिरे से बताया कि वैश्वीकरण के 50 वर्ष बाद हमारी अर्थव्यवस्थाएं गहराई से आपस में जुड़ गई हैं। पूरी दुनिया इनसे काफी हद तक प्रभावित हो रही है।
अमेरिकी केंद्रीय बैंक की मौद्रिक सख्ती ने दुनिया भर में नकदी की स्थिति और जोखिम वाली परिसंपत्तियों को प्रभावित किया है। भारत में यह स्टार्टअप और क्रिप्टोकरेंसी की बदली हुई दुनिया के रूप में सामने आया। यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने वैश्विक ऊर्जा बाजार में बुनियादी व्यवस्था को प्रभावित किया। यूरोप जो रूसी तेल एवं गैस का सबसे अहम ग्राहक था, उसने इससे दूरी बना ली और नवीकरणीय ऊर्जा के विकास पर जोर बढ़ गया। यूरोप ने 2035 तक उत्सर्जन को विशुद्ध शून्य करने का निर्णय लिया है।
वहीं रूसी गैस तब तक यूरोपीय बाजारों में पहुंचती नहीं नजर आती है जब तक कि रूस में सत्ता परिवर्तन के बाद एक नई लोकतांत्रिक सरकार नहीं बनती। रूस को युद्ध की आर्थिक जरूरत पूरी करने के लिए तेल की अधिकतम बिक्री करना आवश्यक है। पश्चिम ने इस बिक्री पर 60 डॉलर प्रति बैरल की कीमत तय कर दी । आमतौर पर देखें तो जीवाश्म ईंधन उत्पादकों को वैश्विक स्तर पर अकार्बनीकरण का असर देखने को मिल रहा है। इन मुद्दों ने भी वैश्विक ऊर्जा कीमत के माहौल को प्रभावित किया है।
मौद्रिक नीति आर्थिक गतिविधियों को धीमा करके और मांग को कमजोर करके काम करती है। कुछ समय से ऐसा माना जा रहा था कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व मौद्रिक सख्ती के अपने अंतिम चरण में है। परंतु 2 जून को अमेरिका में आश्चर्यजनक रूप से मजबूत रोजगार आंकड़े पेश किए गए। वहां मई में रोजगार में उल्लेखनीय इजाफा हुआ। 24 से 54 की आयु के कामकाजी प्रतिभागियों की तादाद 83.4 फीसदी बढ़ी जो काफी अधिक है। यानी फेड को मांग कम करने के लिए और कदम उठाने होंगे।
युद्ध ने नकारात्मक ढंग से चौंकाना जारी रखा है। यूक्रेन में काखोवका नामक बांध रूस के नियंत्रण में था। उसने यहां 18 घन किलोमीटर पानी का जलाशय तैयार किया। यह आकार भाखड़ा नांगल बांध के पीछे गोविंद सागर तालाब के आकार का दोगुना है। गत 6 जून को बांध को उड़ा दिया गया। इससे भारी बाढ़ आई और छह लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई प्रभावित हुई। यूक्रेन खेती प्रधान देश है और युद्ध के कारण उसके निर्यात में 40 फीसदी की गिरावट आई। बांध के टूटने से उसकी निर्यात क्षमता और प्रभावित हुई। इसका असर वैश्विक खाद्यान्न कीमतों पर भी हुआ।
बांध के नष्ट होने ने इस क्षेत्र में विनिर्माण को भी प्रभावित किया। इनमें आर्सेलरमित्तल का संयंत्र भी शामिल है। इससे 2023 में आपूर्ति की नई दिक्कतों की स्थिति बन रही है, हालांकि कोविड के बाद के सुधार के दौर की तुलना में आपूर्ति का यह संकट छोटा ही होगा। अगर इस युद्ध में यूक्रेन तगड़ा जवाब देता है तो भी जिन जमीनों पर दोबारा कब्जा मिल जाएगा वहां कई साल तक आर्थिक स्थितियों में सुधार नहीं होगा क्योंकि पहले ही बड़े पैमाने पर विध्वंस हो चुका है।
इन कठिनाइयों ने अमेरिकी फेड की मूल्य स्थिरता की तलाश को प्रभावित किया है। अमेरिका में खुदरा मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति में सुधार हुआ है लेकिन यह अभी भी पांच फीसदी के स्तर से ऊपर है जो दो फीसदी के मुद्रास्फीति लक्ष्य से काफी अधिक है। ताजा आंकड़े बताते हैं कि अमेरिकी फेड के आगामी कदमों को लेकर नजरिया बदल रहा है। इस बीच 2024 तक दरों में किसी कटौती की उम्मीद भी नहीं है।
भारत में वृहद आर्थिक संदर्भ काफी अलग हैं। रिजर्व बैंक और फेड द्वारा की गई मौद्रिक नीति सख्ती ने महामारी के बाद के विस्तार को थामने में मदद की है। कई अहम संकेतक बताते हैं कि इस वर्ष वृद्धि धीमी रहेगी। शीर्ष मुद्रास्फीति में काफी गिरावट आई है और अप्रैल के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 4.7 फीसदी रही जो चार फीसदी के लक्ष्य से केवल 70 आधार अंक अधिक है। फरवरी 2023 के बाद इजाफा रोकने की रणनीति सही राह पर है।
मुद्रास्फीति को लक्षित करने की प्रक्रिया ने भी सही काम किया है। इसके लिए रिजर्व बैंक को 12 से 18 महीने के मुद्रास्फीति लक्ष्य की घोषणा करनी होती है, अपना काम जनता के बीच लाना होता है और पूर्वानुमानों को लेकर प्रतिक्रिया देनी होती है। मुद्रास्फीति में इजाफे ने रिजर्व बैंक को और तेज कदम उठाने के लिए प्रेरित किया। 2015 में मुद्रास्फीति को लक्ष्य मानकर काम करते समय ऐसा नहीं किया जाता था। मुद्रास्फीति को लक्षित करने संबंधी रुख रिजर्व बैंक को तेजी से कदम उठाने के लिए प्रेरित करता है।
यदि अमेरिकी फेडरल रिजर्व दरों में इजाफा करता है लेकिन रिजर्व बैंक नहीं करता है तो रुपये में कुछ गिरावट देखने को मिल सकती है। इसका धीमी स्थानीय अर्थव्यवस्था पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
घरेलू कारोबारी उत्पादकों के लिए रुपये का अवमूल्यन राजस्व पर असर डालता है क्योंकि आयातित वस्तुएं थोड़ी महंगी हो सकती हैं। घरेलू निर्यातकों की बात करें तो अवमूल्यन के कारण रुपये में अंकित मूल्य वाली वस्तुएं कुछ सस्ती हो सकती हैं। ये दोनों प्रभाव स्थानीय अर्थव्यवस्था को ऐसे समय पर प्रभावित करेंगे जब इसकी आवश्यकता है। (लेखक एक्सकेडीआर फोरम में शोधकर्ता हैं)