माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के एक जिला सचिव, एक पूर्व निवेश बैंकर और आजीवन कांग्रेसी रहने के बाद साल भर पहले ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होने वाले एक नेता के बीच आखिर क्या समानता है? ये सभी हाल ही में अपने-अपने राज्य में वित्त मंत्री बने हैं।
माकपा नेता के एन बालगोपाल ने केरल के वित्त मंत्री का दायित्व संभाला है। तमिलनाडु में वित्त मंत्रालय चलाने का जिम्मा पलनिवेल त्यागराजन को मिला है। अजंता नियोग असम में वित्त मंत्री बनने वाली पहली महिला हैं। खास बात यह है कि इनमें से किसी ने भी पहले कभी वित्त मंत्रालय नहीं संभाला है। इसके बावजूद इस मुद्दे पर इनकी राय एकदम साफ है कि उनके राज्य का वित्त प्रबंधन किस तरह किया जाना चाहिए? उन्हें अपने मुख्यमंत्री का भरपूर समर्थन भी मिलेगा। ऐसे में हमें राज्यों के अलग स्वर एवं मत सुनने को मिल सकते हैं।
असम, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु एवं पुदुच्चेरी में संपन्न विधानसभा चुनावों में गैर-भाजपा एवं गैर-कांग्रेसी दलों का उभार हुआ है। तृणमूल कांग्रेस ने पहले से भी ज्यादा सीटों के साथ सत्ता में वापसी की। द्रविड़ मुन्नेेत्र कषगम (द्रमुक) ने तमिलनाडु में शानदार जीत दर्ज की। और माकपा की अगुआई वाले वाम गठबंधन ने केरल में फिर सरकार बनाई। हालांकि भाजपा असम में दोबारा सरकार बनाने में सफल रही और पुदुच्चेरी में भी वह गठबंधन सरकार का हिस्सा बनी है।
पहले भी पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा वित्तीय मामलों में राज्य के साथ भेदभाव के आरोप लगाते रहे हैं। लेकिन अब केंद्र सरकार को कहीं अधिक माथा-पच्ची के लिए तैयार रहना होगा क्योंकि मित्रा के सुर में सुर मिलाने के लिए दो अन्य वित्त मंत्री भी होंगे।
ये सभी मुखर होकर खुलेआम यह कह सकते हैं जिसे भाजपा-शासित राज्य केवल बुदबुदा ही सकते हैं। वह बात है कि केंद्र अधिक से अधिक राजकोषीय शक्तियां हासिल करता जा रहा है और राज्यों के कंधों पर सिर्फ वित्तीय दायित्व डालने में लगा हुआ है। मसलन, बालगोपाल आश्वस्त हैं कि शराब एवं पेट्रोलियम को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के दायरे में लाकर केंद्र राजस्व संग्रह की राज्यों की शक्ति पर और चोट पहुंचाने की कोशिश करेगा।
वैसे केंद्र सरकार ने पिछले साल जीएसटी परिषद में ऐसी आशंकाओं को खारिज किया था। जीएसटी राजस्व में आई 2.35 लाख करोड़ रुपये की गिरावट की भरपाई के लिए केंद्र ने राज्यों के समक्ष उधारी जुटाने के दो प्रस्ताव रखे थे। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राजस्व क्षति को ‘भगवान का कृत्य’ बता दिया था। उस समय माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने इसका कड़ा विरोध करते हुए कहा था, ‘जरूरत हो तो सिर्फ केंद्र सरकार को ही उधार लेकर राज्यों को उनका वाजिब हिस्सा देना चाहिए। राज्य खुद क्यों उधारी जुटाएं? यही सहकारी संघवाद है? अर्थव्यवस्था बरबाद करने के बाद राज्यों को लूटने में लग गए हैं।’
वैसे राजगोपाल ने राज्यसभा में माकपा का उपनेता रहते समय ही आगाह किया था कि जीएसटी आगे चलकर राज्यों की राजकोषीय स्वायत्तता को कम करेगा। जीएसटी विधेयक पर अपनी असहमति जताते हुए बालगोपाल ने कहा था, ‘जीएसटी अपने हिसाब से राजस्व जुटाने का अधिकार राज्यों से छीन लेगा। फिर केंद्र एवं राज्य दोनों के वित्त मंत्री महज वितरक एजेंसी बनकर रह जाएंगे।’ उनका यह रुख केरल के तत्कालीन वित्त मंत्री थॉमस आइजक के ठीक उलट था जिन्होंने इस आधार पर जीएसटी का समर्थन किया था कि एक उपभोक्ता राज्य होने से केरल को फायदा होगा। अब केरल में वित्त विभाग की कमान बालगोपाल के हाथों में है और उनके पास अपने भाई के एन हरिलाल जैसे कुछ अच्छे सलाहकार भी हैं। हरिलाल तिरुवनंतपुरम स्थित सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज में प्राध्यापक होने के साथ पिछली सरकार में केरल नियोजन बोर्ड के सदस्य भी थे। तमिलनाडु भी मुश्किल हालात से गुजर रहा है। उस पर 5.78 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है और कोविड महामारी से जूझने के लिए उसके पास पर्याप्त पैसे तक नहीं हैं। तमिलनाडु को एकदम लीक से हटकर सोचने की जरूरत है। शायद कोई निवेश बैंकर ही सही वित्त प्रबंधन कर पाएगा।
तमिलनाडु के वित्त मंत्री त्यागराजन वर्ष 2001 में लीमन ब्रदर्स से जुड़े थे और 2008 में उसके ऑफशोर कैपिटल मार्केट प्रमुख बन गए थे। बाद में वह स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक से जुड़े और 2014 में उसके प्रबंध निदेशक के तौर पर इस्तीफा दिया था। फिर वह द्रमुक की आईटी शाखा के प्रमुख बन गए। उनके पास वित्तीय मामलों को संभालने की पूरी योग्यता है: उन्होंने एमआईटी के स्लोन स्कूल ऑफ मैनेजमेंट से एमबीए किया हुआ है। त्यागराजन राज्यों के अधिकारों में कटौती की प्रवृत्ति को लेकर पहले ही अपनी नाराजगी जता चुके हैं। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा है, ‘इस देश में हम एक उपाय से सारी समस्याएं नहीं हल कर सकते हैं। दरअसल समस्या संरचनात्मक है और जीएसटी तो महज एक वित्तीय पहलू है।’
इन तीनों वित्त मंत्रियों में से अजंता नियोग सबसे सरल हैं। लेकिन शायद उनकी नियुक्ति की वजह भी यही है। मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा भी पिछली भाजपा सरकार में वित्त मंत्री थे। अजंता को वित्त मंत्री बनाने के पीछे शायद यही सोच है कि पर्दे के पीछे से हिमंत ही मंत्रालय संभालते रहेंगे। अजंता का भी सियासी सफर काफी हद तक हिमंत जैसा ही रहा है। वह हिमंत की ही तरह तरुण गोगोई की सरकार में लोक निर्माण विभाग, शहरी विकास एवं आवास मंत्री रही थीं। उन्होंने 2020 में ही भाजपा का दामन थामा था, लिहाजा उन्हें पार्टी के भीतर अपनी अलग पहचान बनानी है और यह बात हिमंत के मुफीद भी है।
बालगोपाल एवं त्यागराजन दोनों ही राज्यों को अधिक वित्तीय स्वायत्तता देने के मुखर समर्थक हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह विमर्श किस दिशा में जाता है। अगर वे जीतते हैं तो उसका लाभ अजंता नियोग को भी मिलेगा।