नरेंद्र मोदी सरकार ने यह लक्ष्य रखा है कि 2047 के पहले देश को ‘विकसित राष्ट्र’ का दर्जा दिलाना है। प्राथमिक तौर पर यह लक्ष्य बहुत ऊंचा नजर आता है और किसी को भी उचित ही यह आश्चर्य हो सकता है कि क्या 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने या इसी समय तक जीडीपी में विनिर्माण की हिस्सेदारी 25 फीसदी करने अथवा अगले वर्ष तक अर्थव्यवस्था को 5 लाख करोड़ डॉलर मूल्य की अर्थव्यवस्था बनाने की बातों की तरह यह भी कपोल कल्पना साबित होगी। इसके अलावा सरकार ने ‘विकसित’ देश को परिभाषित भी नहीं किया है और इसके लिए कोई एक अंतरराष्ट्रीय मानक नहीं है।
बहरहाल, विकास के विभिन्न सूचकांक मौजूद हैं जो आय के स्तर, स्वास्थ्य और शिक्षा के स्तर, जीवन की गुणवत्ता मसलन बिजली और पेयजल तक पहुंच आदि, काम की उपलब्धता, गरीबी और असमानता के स्तर, तकनीकी सुविधाओं आदि पर केंद्रित होते हैं।
शुरुआती अनुमान एकदम स्वाभाविक है कि भारत ऐसे संकेतकों पर वांछित स्तर से काफी नीचे है। ऐसे में अगली चौथाई सदी के लिए तय लक्ष्य काफी महत्त्वाकांक्षी है। परंतु बिना महत्त्वाकांक्षा के भला कैसा जीवन? अगर 1947 से 2047 की अवधि पर गौर करें तो वहां तक पहुंचना बहुत श्रम साध्य काम है।
क्या भारत ऐसा कर सकता है? शुरुआती तौर पर भारत को अपनी प्रति व्यक्ति आय को 24 सालों में पांच गुना से अधिक बढ़ाना होगा जिसके लिए 7 फीसदी की सालाना वृद्धि की आवश्यकता होगी। चूंकि देश की आबादी भी निरंतर बढ़ेगी इसलिए जीडीपी में उससे तेज इजाफे की जरूरत होगी। चुनिंदा अवसरों को छोड़ दें तो अब तक यह मुश्किल साबित हुआ है।
निश्चित तौर पर बहुत कम देश लंबे समय तक तेज वृद्धि हासिल कर सके हैं और भारत में अब तक ऐसा करने की संभावना नहीं दिखती। वास्तविकता यही है कि 2047 तक भारत उच्च आय वाला देश नहीं बन सकेगा।
अत्यधिक उच्च मानव विकास की श्रेणी तक पहुंचना अपेक्षाकृत आसान है क्योंकि देश ने बीती चौथाई सदी में मानव विकास के क्षेत्र में तेजी से सुधार किया है। उस दर को बरकरार रखने से भारत को अपने सूचकांक अंक को मौजूदा 0.633 से बढ़ाकर 2047 तक अति उच्च श्रेणी के लिए जरूरी 0.800 करने में मदद मिलेगी।
एक अन्य मानक की बात करें तो किसी देश के विनिर्मित वस्तुओं के निर्यात में उच्च तकनीक वाली वस्तुओं की हिस्सेदारी भी ऐसा ही एक मानक है। भारत की हिस्सेदारी 10 फीसदी है जो ब्राजील और रूस के समान है। वैश्विक औसत 20 फीसदी है और चीन में यह 30 फीसदी है।
पाकिस्तान का आंकड़ा महज एक फीसदी है। शोध उत्पादन की बात करें तो भारत की कुल हिस्सेदारी तेजी से बढ़ी है और अब यह मात्रा के आधार पर चौथे स्थान पर है। परंतु ऐसे शोध उद्धरणों की तादाद के मुताबिक देखें तो यह नौवें स्थान पर है। उद्धरण स्तर के मामले में चीन पांच गुना ऊंचे स्थान पर है। तमाम प्रगति के बावजूद इस क्षेत्र में विकसित देशों के स्तर पर पहुंचने में काफी मशक्कत लगेगी।
एक आकांक्षी भारत में गरीबी के आंकड़ों के परीक्षण की बात करें तो 2.15 डॉलर प्रति दिन के अत्यधिक गरीबी का मानक तब लागू किया गया था जब भारत निम्न आय वाला देश था। अब भारत मध्य आय वर्ग वाला देश बन चुका है जहां यह लागू करना उचित नहीं होगा। ऐसे देशों के लिए मानक 3.65 डॉलर प्रति व्यक्ति प्रति दिन का है यानी करीब 90 रुपये।
क्रय शक्ति समता के हिसाब से चार सदस्यों के परिवार के लिए प्रतिमाह 10,800 रुपये। इस हिसाब से आज लाखों गरीब हैं। उच्च मध्य आय वर्ग वाले देशों के मानक की बात करें तो जब भारत वहां पहुंचेगा तो यह मानक 6.85 डॉलर प्रति दिन हो चुका होगा। यह ध्यान में रखें कि अगर भारत 2047 तक विकसित देश का दर्जा पा भी जाता है तो भी वह विशिष्ट नहीं होगा।
80 से अधिक देश पहले ही विश्व बैंक द्वारा उच्च आय वाले देश घोषित किए जा चुके हैं जबकि भारत अभी भी निम्न मध्य आय वाला देश है। 65 से अधिक देशों को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने मानव विकास के क्षेत्र में ‘अति उच्च’ स्तर वाला घोषित कर रखा है जबकि भारत ‘मध्यम’ स्तर पर ही है। भारत को पहले ‘उच्च श्रेणी’ में पहुंचना होगा। भारत बहुआयामी गरीबी को दूर करने से भी अभी काफी दूर है।
यानी भारत विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ना तो चाहता है लेकिन वहां पहले ही काफी भीड़ है। अगर हम 2047 तक वहां पहुंच भी गए तो भी दूसरों से काफी पीछे ही रहेंगे। इन हकीकतों से यह प्रोत्साहन मिलना चाहिए कि हमारा देश मिथ्या अभिमान को त्यागे। बीते तीन दशकों का प्रदर्शन औसत से बेहतर है लेकिन अभी और मुश्किल काम सामने हैं। भारत को अपने प्रयास और तेज करने होंगे।