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भारतीय स्टार्टअप के सपने साकार करने के लिए वेंचर कैपिटल ईकोसिस्टम को बढ़ावा देना आवश्यक

हमें ऐसा नीतिगत ढांचा तैयार करना चाहिए जो भारत में गैर-पारिवारिक वेंचर कैपिटल और प्राइवेट इक्विटी कंपनियों के विकास को बढ़ावा दे

Last Updated- September 09, 2025 | 10:20 PM IST
India startup

अक्सर मेरे पास राज्यों या केंद्र सरकार के अधिकारियों के फोन आते हैं जो मुझे उनके द्वारा आयोजित स्टार्टअप सम्मेलनों में बोलने के लिए आमंत्रित करते हैं। मेरे लिए ऐसे सभी फोन कॉल को संभालना मुश्किल होता है। जब भी मैं ऐसे सम्मेलनों में शामिल होता हूं तो वहां सैकड़ों कॉलेज छात्र दिन भर मेरे जैसे उद्यमियों और सरकारी अधिकारियों के भाषण सुनते हैं और प्रस्तुतियां देखते हैं। इन बैठकों को ध्यान में रखते हुए मुझे आश्चर्य होता है कि आखिर क्यों और कैसे स्टार्टअप उन सामान्य कारोबारी चक्र में शामिल हो जाते हैं जिनसे हम सब गुजरे हैं: 1960 के दशक की हरित क्रांति, 1970 के दशक में सार्वजनिक उपक्रमों को उद्धारक के रूप में देखने का दौर (हिंदुस्तान मशीन टूल्स, भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स, मॉडर्न ब्रेड आदि), 1990 के दशक का मुक्त बाजार और 2000 के दशक के आरंभ में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश।

अपने अर्थशास्त्री दोस्तों की नाराजगी का खतरा मोल लेते हुए भी मैं एक सवाल करना चाहता हूं। क्या ये कारोबारी लहरें उसकी तरह की हैं जो हमने अपनी महिला मित्रों के वास्तविक फैशन की दुनिया में देखीं यानी: रेशम की साड़ी की जगह नायलॉन की साड़ी और उसके बाद नीली जींस और काली टी-शर्ट, या फिर सलवार-कमीज का कश्मीर से कन्याकुमारी तक तमाम भारतीय लड़कियों और महिलाओं की पसंद बन जाना। इन पहनावों का चलन किस प्रकार जोर पकड़ा, यह कैसे तय होता है कि इनमें से कौन-सा चलन कितने समय तक रहेगा और फिर गायब हो जाएगा? फैशन की दुनिया के चुनिंदा दोस्तों द्वारा अपनाया जाना और उसके बाद बॉलीवुड के अदाकारों और मॉडल द्वारा अपनाया जाना। यही सबसे स्पष्ट व्याख्या नजर आती है।

ऐसे में क्या हम ‘कीन्सवाद’, ‘मुक्त बाजार’, ‘थैचरवाद’, ‘वॉशिंगटन सहमति’, ‘नव-उदारवाद’ जैसे शब्दों को फैशन की शब्दावली के रूप में देख सकते हैं और यह मान सकते हैं कि आर्थिक नीतियों की प्रवृत्तियां भी वैसी ही ताकतों से संचालित होती हैं, जैसे फैशन ट्रेंड्स होते हैं? दूसरे शब्दों में, क्या हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि भारत में हम उन देशों के ‘मॉडल’ को अपनाते हैं जिन्हें हम किसी विशेष समय में प्रशंसा की दृष्टि से देखते हैं? स्टार्टअप की दुनिया में, आज के फैशन लीडर मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका और इसमें भी विशेष रूप से सिलिकन वैली में स्थित हैं इसलिए उस फैशन राजधानी से आने वाले संदेशों को समझना जरूरी हो जाता है। जैसा कि इन दिनों आम हो गया है, मैंने यह सवाल चैटजीपीटी के समक्ष रखा और मुझे यह उत्तर मिला:

‘सिलिकन वैली का दुनिया का प्रमुख स्टार्टअप केंद्र बनना किसी एक वजह से नहीं हुआ है, बल्कि यह इतिहास, संस्कृति और संस्थागत ढांचे के दुर्लभ संयोजन का परिणाम है, जो एक-दूसरे को मजबूती प्रदान करते रहे। इसकी शुरुआत 20वीं सदी के मध्य में हुई, जब अमेरिका ने रडार, सेमीकंडक्टर और कंप्यूटिंग पर रक्षा खर्च के माध्यम से बे एरिया में निवेश किया। स्टैनफर्ड विश्वविद्यालय फ्रेडरिक टरमन के नेतृत्व में, छात्रों और शिक्षकों को अपने शोध को व्यावसायिक रूप देने के लिए प्रोत्साहित करता था। इससे ह्युलिट-पैकर्ड और फेयरचाइल्ड सेमीकंडक्टर जैसी कंपनियां अस्तित्व में आईं और शैक्षणिक संस्थानों, उद्योग और सरकार के बीच करीबी सहयोग का एक मॉडल तैयार हुआ।

इसके बाद एक ऐसी संस्कृति विकसित हुई जो जोखिम को अपनाती थी और असफलता को कलंक नहीं, बल्कि सीखने का अवसर मानती थी। इस क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने वाले वेंचर कैपिटलिस्ट ने इस सोच को और मजबूत करते हुए उद्यमियों पर बार-बार भरोसा किया और स्टॉक विकल्पों के जरिये कर्मचारियों को दीर्घकालिक सफलता से जोड़ दिया। उत्साह और विचारों की सघनता भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण थी। एक छोटे से क्षेत्र में इंजीनियर और उद्यमी स्वतंत्र रूप से ज्ञान का आदान-प्रदान करते थे, जबकि स्टैनफर्ड और बर्कले लगातार नई प्रतिभाएं तैयार करते रहे। प्रवासी लोगों ने महत्त्वाकांक्षा और विविधता जोड़ी, और अमेरिकी बाजार ने उन्हें विस्तार का मंच दिया। आखिरकार सफल संस्थापक मेंटर और निवेशक के रूप में फिर से निवेश करते हैं। इससे एक सतत चक्र बनता है, जो आज भी सिलिकन वैली की वैश्विक नवाचार में अग्रणी भूमिका को बनाए रखे हुए है।’

जैसा कि आप चैटजीपीटी की उपरोक्त टिप्पणी से देख सकते हैं, टेक स्टार्टअप के क्षेत्र में सिलिकन वैली के दबदबे में ढेर सारे वेंचर कैपिटल और रक्षा खरीद का योगदान है जिन्होंने स्टार्टअप को शुरुआत में सक्रिय और सकारात्मक माहौल मुहैया करया। अमेरिका के कुल स्टार्टअप में 20 फीसदी सिलिकन वैली में हैं। इसके अन्य केंद्र हैं- न्यूयॉर्क (करीब 15 फीसदी), बोस्टन (10 फीसदी), लॉस एंजिलिस (8 फीसदी) सिएटल (6 फीसदी) और ऑस्टिन (5 फीसदी) ।
बहरहाल, भारत के लिए सही नीतिगत उपाय तैयार करने के क्रम में हमें शायद वे सबक अपनाने की आवश्यकता है जो हमें यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई), आधार और किफायती मोबाइल फोन और इंटरनेट के मिश्रण से मिली हैं। इनके चलते देश में 50 करोड़ से अधिक ग्राहकों, 6.5 करोड़ दुकानदारों और इस व्यवस्था से जुड़े 675 बैंकों का एक नेटवर्क तैयार हुआ है। देश के कुल डिजिटल भुगतान में 85 फीसदी यूपीआई से होते हैं और दुनिया भर में होने वाले रियल टाइम डिजिटल लेनदेन में उसका योगदान करीब आधे का है।

इसके बाद हमें अपने रक्षा विभागों को प्रोत्साहित करना होगा कि वे भारतीय स्टार्टअप से खरीदारी करें। अभी हाल ही में उन्होंने घरेलू खरीद को बढ़ावा दिया है लेकिन यह ज्यादातर उन वस्तुओं के लिए है जो किसी विदेशी कंपनी से लाइसेंस लेकर स्थानीय स्तर पर निर्मित की जा रही हैं। अंतिम और सबसे महत्त्वपूर्ण कदम यह है कि भारत को अपने शुरुआती चरण के निवेश और वेंचर कैपिटल व्यवस्था को मजबूत करना होगा। हमारे पास शुरुआती चरण में निवेश करने वाली, तकनीकी समझ रखने वाली वेंचर कैपिटल कंपनियां बहुत कम हैं। जो कुछ मौजूद हैं, वे या तो विदेशी (मुख्यतः अमेरिकी) कंपनियों की सहायक इकाइयां हैं या सरकारी संस्थाएं, जिनके कर्मचारी आमतौर पर तकनीकी जोखिम उठाने की संस्कृति से परिचित नहीं होते। ये संस्थाएं अक्सर स्टार्टअप उद्यमियों से एक दिल तोड़ने वाला सवाल पूछती हैं: ‘और किसने ऐसा करने में सफलता पाई है?’

देश के सकल घरेलू उत्पाद में पारिवारिक कारोबारों की हिस्सेदारी 80 फीसदी है। अमेरिका में इनकी हिस्सेदारी 55 फीसदी है। यह भी स्टार्टअप के लिए एक चुनौती है। इन कंपनियों से निवेश लेने का मतलब होता है ऐसे निवेशकों से पेश आना जो तकनीकी समझ नहीं रखते, और यह खतरा भी बना रहता है कि स्टार्टअप को उस पारिवारिक व्यवसाय में समाहित कर लिया जाएगा। हमें पूरी ताकत से काम करना चाहिए और ऐसा नीतिगत ढांचा तैयार करना चाहिए जो भारत में गैर-पारिवारिक वेंचर कैपिटल और प्राइवेट इक्विटी कंपनियों के विकास को बढ़ावा दे। यही वह रास्ता है जिससे भारतीय स्टार्टअप के सपने साकार हो सकते हैं।

First Published - September 9, 2025 | 10:14 PM IST

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