facebookmetapixel
Infosys बायबैक के असर से IT शेयरों में बड़ी तेजी, निफ्टी IT 2.8% उछलाBreakout Stocks: ब्रेकआउट के बाद रॉकेट बनने को तैयार ये 3 स्टॉक्स, ₹2,500 तक पहुंचने के संकेतअगस्त में 12.9 करोड़ ईवे बिल बने, त्योहारी मांग और अमेरिकी शुल्क से बढ़ी गतिStocks To Watch Today: Vodafone Idea, Bajaj Auto, Kotak Mahindra Bank समेत ये स्टॉक्स आज बाजार में ला सकते हैं हलचलभारत में ग्रीन हाइड्रोजन की कीमत घटेगी, स्टील सेक्टर को मिलेगा फायदाअमेरिका के बाद यूरोप में खुले भारत के सी-फूड एक्सपोर्ट के नए रास्तेबारिश-बाढ़ से दिल्ली में सब्जियों के दाम 34% तक बढ़े, आगे और महंगाई का डरपब्लिक सेक्टर बैंकों को टेक्नोलॉजी और इनोवेशन पर करना होगा फोकस: SBI चेयरमैन शेट्टीGST 2.0: फाडा ने पीएम मोदी को लिखा पत्र, कंपनसेशन सेस क्रेडिट अटका तो होगा 2,500 करोड़ का नुकसानप्रीमियम स्कूटर बाजार में TVS का बड़ा दांव, Ntorq 150 के लिए ₹100 करोड़ का निवेश

अमेरिका का आउटसोर्सिंग पर 25% टैक्स का प्रस्ताव, भारतीय IT कंपनियां और GCC इंडस्ट्री पर बड़ा खतरा

कानून लागू हुआ हो अमेरिकी कंपनियों को अपनी वैश्विक सोर्सिंग रणनीतियों पर सतर्कता के साथ पुन: विचार करना होगा

Last Updated- September 09, 2025 | 10:58 PM IST
IT Companies

कामकाज आउटसोर्स करने वाली कंपनियों पर 25 प्रतिशत कर लगाने वाला प्रस्तावित अमेरिकी कानून भारतीय आईटी और वैश्विक क्षमता केंद्रों (जीसीसी) की अर्थव्यवस्था को चौपट कर सकता है। उद्योग और कर विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इससे अमेरिकी कंपनियों पर कर का बोझ लगभग 60 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।

अगर यह कानून 1 जनवरी, 2026 से लागू हुआ हो अमेरिकी कंपनियों को अपनी वैश्विक सोर्सिंग रणनीतियों का सावधानीपूर्वक पुन: आकलन करना होगा, क्योंकि उत्पाद शुल्क, राज्य और स्थानीय करों के संयुक्त प्रभाव से विदेशी श्रम और सेवाओं को शामिल करने की लागत में बड़ी वृद्धि हो सकती है।

ओहियो से अमेरिकी रिपब्लिकन सीनेटर बर्नी मोरेनो ने ह​ल्टिंग इंटरनैशनल रीलोकेशन ऑफ इम्पलॉयमेंट (हायर) अधिनियम पेश किया और यदि यह कानून पारित हो जाता है तो अमेरिकियों के बजाय विदेशी श्रमिकों को रोजगार देने वाली किसी भी कंपनी पर 25 प्रतिशत कर लगाया जाएगा और इससे प्राप्त राजस्व का उपयोग अमेरिकी मध्यम वर्ग की मदद के लिए कार्मिक विकास कार्यक्रमों के वित्त पोषण पर किया जाएगा।

अधिनियम में आउटसोर्सिंग को किसी अमेरिकी कंपनी या करदाता द्वारा किसी विदेशी व्यक्ति को श्रम या सेवाओं के संबंध में दिया जाने वाला कोई प्रीमियम, शुल्क, रॉयल्टी, सेवा शुल्क या अन्य भुगतान के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसका लाभ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका में स्थित उपभोक्ताओं को दिया जाता है।

ईवाई इंडिया के वैश्विक अनुपालन समाधान प्रमुख जिग्नेश ठक्कर ने बताया कि राज्य और स्थानीय करों को जोड़कर आउटसोर्स भुगतानों पर कुल कर भार 60 प्रतिशत तक पहुंच सकता है।

ठक्कर ने बताया, ‘अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सेवाओं की आउटसोर्सिंग करने वाली कंपनियों के लिए वित्तीय प्रभाव काफी ज्यादा हो सकता है। उदाहरण के लिए, विदेश से प्राप्त आईटी सेवाओं के लिए 100 डॉलर का भुगतान करने वाली एक अमेरिकी कंपनी को इस लेनदेन पर 25 प्रतिशत उत्पाद शुल्क देना होगा। इसके अलावा, यह भुगतान और उससे जुड़ा उत्पाद शुल्क, दोनों ही कॉरपोरेट कर उद्देश्यों के लिए कटौती योग्य नहीं होंगे, जिससे आउटसोर्सिंग भुगतान पर संघीय और राज्य कॉरपोरेट कर कटौती का नुकसान लगभग 31 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।’

विश्लेषकों का कहना है कि यह मूलतः एक उत्पाद शुल्क है, कॉरपोरेट आयकर नहीं और यह केवल अमेरिकी ग्राहकों द्वारा उपयोग की जाने वाली सेवाओं पर ही लागू होगा। हालांकि, अधिनियम के अनुसार, यह बहीखाते में कटौती योग्य व्यय नहीं है, जो अमेरिकी कंपनियों के लिए दोहरी मार साबित हो सकता है।

बिग 4 ऑडिटर के एक वरिष्ठ टैक्स पार्टनर ने कहा, ‘पिछले कुछ वर्षों में आउटसोर्सिंग के तेज विस्तार और अब कई जीसीसी देशों के आकार और पैमाने में वृद्धि को देखते हुए, अमेरिका में माहौल काफी बदल गया है। इसे देखते हुए, यह कल्पना करना मुश्किल है कि अमेरिकी कंपनियों के लिए महत्वपूर्ण किसी चीज पर इस तरह का कठोर कर लगाया जा सकता है। अमेरिका में आउटसोर्सिंग प्रक्रिया को बदलना आसान नहीं है। मुझे लगता है कि अमेरिकी कंपनियों में यह सुनिश्चित करने के लिए जोरदार पैरवी होगी कि यह अमेरिकी व्यवसायों के लिए यह अच्छा नहीं है।’ इससे भारत के जीसीसी उद्योग पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

First Published - September 9, 2025 | 10:53 PM IST

संबंधित पोस्ट