उपभोक्ता अक्सर सामान बनाने वाली कंपनियों और सेवा प्रदान करने वालों से परेशान रहते हैं और उनकी शिकायत करते रहते हैं। मगर शिकायत होने पर क्या करना चाहिए, इसकी जानकारी नहीं होने के कारण हम उलझकर रह जाते हैं और कोई हल नहीं निकलता। समस्याओं को कम खर्च में आसानी से निपटाने का एक जरिया उपभोक्ता अदालतें हैं। आइए, आपको बताते हैं कि उधर का रुख करने से पहले हमें किन गलतियों से बचना चाहिए।
क्या आप उपभोक्ता हैं
सबसे पहला और जरूरी सवाल है कि आप उपभोक्ता की परिभाषा पर खरे उतरते हैं या नहीं। कंज्यूमर गाइडेंस सोसाइटी ऑफ इंडिया के मानद सचिव एमएस कामत कहते हैं, ‘आप उपभोक्ता तभी कहलाएंगे, जब आपने सामान निजी इस्तेमाल के लिए खरीदा हो। अगर आपने व्यावसायिक मकसद से सामान की खरीद की है तो आपको उपभोक्ता नहीं माना जाएगा।’
उपभोक्ता सामान या सेवा में किसी कमी की शिकायत लेकर अदालत में जा सकता है मगर वह किसी योजना या नियम की वैधता को चुनौती नहीं दे सकता। नई दिल्ली में रहने वाले उपभोक्ता मामलों के वकील सुमित कुमार बताते हैं, ‘मान लीजिए कि आप कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के सदस्य हैं और आपकी शिकायत है कि योजना गलत तरीके से लागू होने के कारण आपको नुकसान हो रहा है। उस सूरत में आप योजना को चुनौती दे सकते हैं। मगर बतौर उपभोक्ता आप योजना की वैधता को चुनौती नहीं दे सकते।’
सही फोरम चुनें
शिकायत किस फोरम में दर्ज करानी है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपने कितना मुआवजा मांगा है। इंटरनैशनल कंज्यूमर राइट्स प्रोटेक्शन काउंसिल (ICRPC) के अध्यक्ष अरुण सक्सेना कहते हैं, ‘यदि 1 करोड़ रुपये से कम मुआवजा मांगा है तो जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में जाएं। 1 करोड़ रुपये से अधिक मगर 10 करोड़ रुपये से कम मुआवजे का दावा है तो राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में शिकायत करें और अगर मुआवजा 10 करोड़ रुपये से ऊपर है तो इसे नई दिल्ली में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में लेकर जाएं।’
कई उपभोक्ता गलत फोरम में मुकदमा कर देते हैं और कई साल तक इंतजार करते रहते हैं। बाद में उन्हें दूसरे फोरम में जाने को कहा जाता है।
समय सीमा और अदालती शुल्क
जिस दिन आपको उत्पाद या सेवा में कमी की शिकायत हुई है, उसके दो साल के भीतर ही मामला दायर किया जा सकता है। सक्सेना बताते हैं कि 5 लाख रुपये से कम मुआवजा मांगा गया है तो कोई कोर्ट फीस नहीं लगती।
अदालत एनसीएलटी में है?
ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (IBC) आने के साथ ही कर्ज में डिफॉल्ट के मामले राष्ट्रीय कंपनी विधि पंचाट (एनसीएलटी) में जाने लगे हैं। कुमार समझाते हैं, ‘मान लीजिए कि आपने किसी बिल्डर के खिलाफ उपभोक्ता मामला दर्ज कराया है मगर उसका मुकदमा मॉरेटोरियम में चला जाता है। उस सूरत में उपभोक्ता तब तक काम नहीं करेंगी, जब तक मॉरेटोरियम हटा नहीं लिया जाता।’
वाकई बन रहा मामला?
सबसे पहले पक्का मालूम कर लीजिए कि कानूनी नजरिये से आपका मामला बनता भी है या नहीं। मान लीजिए कि आपने 1 साल की वारंटी वाला कोई टेलीविजन खरीदा है। खरीदने के दो साल बाद टीवी खराब हो गया। अब आप भावनाओं में बहकर यह नहीं कह सकते कि इतना महंगा टीवी कम से कम पांच-छह साल तो चलना ही चाहिए था। कामत कहते हैं, ‘सच यह है कि वारंटी खत्म हो गई है, जिससे उपभोक्ता इस मामले में कुछ भी नहीं कर सकता।’
सख्त हो रहीं अदालतें
पहले उपभोक्ता अदालतें नियमों और शर्तों की व्याख्या काफी उदारता और नरमी के साथ करती थीं। मगर वक्त बदलने के साथ ही अब नियमों और शर्तों की व्याख्या काफी सख्ती के साथ होने लगी है। वाहन बीमा को ही लीजिए। अगर आपकी दुर्घटना हो जाती है मगर आपके पास वैध रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (आरसी) या परमिट नहीं है तो अदालत यह कहकर आपके बीमा के दावे के खारिज कर सकती हैं कि आपने बीमा कंपनी के साथ करार के अहम प्रावधान का उल्लंघन किया है। जीवन बीमा के फॉर्म अक्सर एजेंट भरते हैं और ग्राहक आंख मूंदकर उन पर दस्तखत कर देते हैं। अगर ग्राहक को पहले से कोई बीमारी रहती है तो अक्सर वे उसकी जानकारी ही नहीं देते। पहले मौत होने पर उपभोक्ता अदालतें परिवार को राहत दिलाने के लिए बीमा राशि का कुछ हिस्सा तो बतौर मुआवजा दिला ही देती थीं।
मगर कुमार बताते हैं, ‘अब अदालतें मानती हैं कि यदि आपने किसी फॉर्म पर हस्ताक्षर किए हैं, तो उसमें लिखी हुई सभी बातों पर आपने अपनी रजामंदी दी है। कानून की सख्त व्याख्या देखते हुए ग्राहकों को किसी करार पर दस्तखत करने से पहले उसे ध्यान से पढ़ना जरूर चाहिए।’
समझबूझकर आगे बढ़ें
उपभोक्ता अदालतों में भी कमियां होती हैं। इसलिए उपभोक्ताओं को खरीदारी के समय ही पूरी सावधानी बरतनी चाहिए। उन्हें उत्पाद के बारे में लोगों की समीक्षा और प्रतिक्रिया पढ़नी चाहिए। कामत की सलाह है, ‘यदि उपभोक्ता समझबूझकर खरीदारी करते हैं और खराब उत्पाद से कन्नी काट लेते हैं तो कंपनियों की कमाई पर चोट पड़ेगी। इससे उन्हें समस्या दूर करने पर मजबूर होना पड़ेगा और वे उपभोक्ताओं के प्रति लापरवाही दिखाना बंद कर देंगे।’