Stock selection: शेयर बाजार में यह बात ज्यादा मायने नहीं रखती कि किसी शेयर का पिछला प्रदर्शन कैसा रहा है। व्हाइट ओक कैपिटल म्युचुअल फंड का पिछले दिनों आया एक अध्ययन बताता है कि अगर आप किसी शेयर की हाल-फिलहाल की चाल देखकर निवेश का फैसला करते हैं तो आपको उन निवेशकों से कम रिटर्न मिल सकता है, जो निवेश का एक खास तरीका चुनते हैं और उस पर लंबे अरसे तक टिके रहते हैं।
क्या कहता है अध्ययन
व्हाइट ओक के अध्ययन में वित्त वर्ष 2006 से वित्त वर्ष 2024 तक के बाजार प्रदर्शन को देखा गया है। इस दौरान मिडकैप (निफ्टी मिडकैप 150 टीआरआई) और स्मॉलकैप सूचकांक (निफ्टी स्मॉलकैप 250 टीआरआई) सूचकांकों का प्रदर्शन लार्जकैप सूचकांक (निफ्टी 100 टीआरआई) से अच्छा रहा।
जिस निवेशक ने मिडकैप सूचकांक में निवेश किया होगा और पूरे समय तक उसी में बना रहा होगा, उसने सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) के जरिये 18.1 फीसदी सालाना रिटर्न हासिल किया होगा।
इसी तरह जो निवेशक 19 साल तक स्मॉलकैप सूचकांक में रकम लगाते रहे होंगे, उन्हें 16 फीसदी सालाना रिटर्न मिला होगा। इन दोनों के उलट जो निवेशक बार-बार मिड से स्मॉल कैप में आता-जाता रहा होगा, उसका औसत सालाना रिटर्न 15.1 फीसदी ही रहा होगा। जब रोलिंग रिटर्न का हिसाब लगाया गया तो भी नतीजे यही रहे। इसका मतलब हुआ कि बार—बार बदलाव वाली रणनीति से रिटर्न नहीं बढ़ता है।
बदलाव कारगर क्यों नहीं
अगर निवेशक कमजोर प्रदर्शन कर रहे किसी फंड को छोड़कर ऐसा फंड चुनता है, जिसका हाल के दिनों में अच्छा प्रदर्शन रहा है तो असल में वह ऐसे शेयर को छोड़ता है, जिसकी कीमत कम आंकी जा रही है और ऐसा शेयर चुन लेता है, जिसकी कीमत बहुत ज्यादा आंकी जा रही है।
व्हाइट ओक कैपिटल म्युचुअल फंड के सह-प्रमुख (उत्पाद) चिराग पटेल समझाते हैं, ‘अधिक दाम वाले शेयर खरीदने से रिटर्न भी उम्मीद से कम हो जाता है। जब कोई निवेशक कमजोर प्रदर्न करने वाले सूचकांक में रकम लगाता रहता है तो असल में उसे कम औसत दाम पर यूनिट मिल रही होती हैं। ऐसे में सूचकांक का प्रदर्शन बढ़िया होने पर उसका रिटर्न बहुत अधिक हो जाता है।’
मुनाफा या कमाई तब होती है, जब आप शेयर को कम दाम पर खरीदते हैं और ऊंचे दाम पर बेचते हैं। शेयरखान बाय बीएनपी परिबास के वरिष्ठ उपाध्यक्ष एवं प्रमुख (सुपर इन्वेस्टर) गौतम कालिया का कहना है, ‘कमजोर प्रदर्शन करने वाली संपत्ति श्रेणी छोड़कर ऊंचे प्रदर्शन वाली श्रेणी में जाने का मतलब है कि आप इसका उलटा कर रहे हैं।’
बाजार गोल पहिये की तरह घूमता रहता है और पहिया पूरा घूमने पर यानी निवेश का एक चक्र पूरा होने पर, बाजार की किसी एक श्रेणी में और स्थान पर मध्यम से दीर्घ अवधि में प्रदर्शन दोहरता रहता है।
फंड्स इंडिया डॉट कॉम के शोध प्रमुख अरुण कुमार कहते हैं, ‘अगर आप किसी फंड का तीन या पांच साल का प्रदर्शन देखकर उसमें निवेश करते हैं तो इस बात के आसार ज्यादा हैं कि उसके अच्छे दिन बीत गए हैं और कमजोर प्रदर्शन का दौर शुरू होने वाला है।’
आखिर बदलाव क्यों
इसका बड़ा कारण अधीरता या जलन है। पटेल की सलाह है, ‘निवेशकों को समझना चाहिए कि बाजार में सैकड़ों फंड होते हैं और ऐसे में कुछ फंडों का प्रदर्शन हमेशा उनके निवेश वाले फंडों से अच्छा ही रहेग।’
जबरदस्ती हरकत में आने या पेचीदगी की तरफ बढ़ने की फितरत भी अपना काम करती है। कालिया का कहना हैं, ‘लोगों को लगता है कि ज्यादा उठापटक करने से उन्हें ज्यादा रिटर्न कमाने में मदद मिलेगी। लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ भी नहीं होता। निवेश के मामले में सरलता बरतने और चुपचाप बैठने से अक्सर बेहतर रिटर्न हासिल होता है।’
फिर आप क्या करें
ऐसा पोर्टफोलियो बनाएं, जिसमें अलग-अलग मार्केट कैप, निवेश चक्र और स्थान के हिसाब से विविधता हो। कुमार की सलाह है, ‘निवेशक अपने पोर्टफोलियो को गुणवत्ता, मूल्य, उचित वृद्धि, मिडकैप और स्मॉल कैप तथा इंटरनैशनल जैसी पांच फंड श्रेणी में बांट सकते हैं। जिन्हें देसी शेयरों या फंडों का पोर्टफोलियो ही पसंद आता है, वे अंतरराष्ट्रीय पोर्टफोलियो बदल सकते हैं।’
विविधता भरे इस पोर्टफोलियो में कम से कम सात साल तक निवेश करते रहें। हर साल एक या दो श्रेणी का प्रदर्शन उम्मीद से कम रहेगा मगर सात साल की पूरी अवधि के दौरान इस पोर्टफोलियो से अच्छा रिटर्न मिलने की संभावना है। इस तरह के विविधता वाले पोर्टफोलियो में मंदी के दौरान भी कम गिरावट आएगी।