बाजार कारोबारियों का कहना है कि रिटेल निवेशक फ्लोटिंग दर वाले बचत बॉन्डों में निवेश करने से परहेज कर सकते हैं, क्योंकि इन खास बॉन्डों में सिर्फ बढ़ते दर परिवेश में ही मुनाफा कमाने की संभावना रहती है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने ‘रिटेल डायरेक्ट’ के जरिये फ्लोटिंग-दर के सेविंग बॉन्डों की खरीद की अनुमति दी है। रिटेल डायरेक्ट एक ऐसा ऑनलाइन पोर्टल है जो निवेशकों को सरकारी प्रतिभूतियां खरीदने में सक्षम बनाता है।
फ्लोटिंग-दर के बॉन्ड सरकार द्वारा जारी किए जाते हैं और निर्गम की तारीख से इनकी परिपक्वता सात साल की होती है। आरबीआई 8.05 प्रतिशत की ब्याज दर की पेशकश करता है, जो राष्ट्रीय बचत पत्र (एनएससी) दर से 35 आधार अंक अधिक है। इन बॉन्डों पर ब्याज हर साल 1 जनवरी और 1 जुलाई को छमाही आधार पर चुकाया जाता है और संचित ब्याज भुगतान का इनमें प्रावधान नहीं है।
जेएम फाइनैंशियल में प्रबंध निदेशक अजय मंगलूनिया ने कहा, ‘फ्लोटिंग-दर के बॉन्ड बढ़ते दर वाले परिवेश में उपयुक्त हैं। मौजूदा परिवेश में, इन बॉन्डों का चयन करना समझदारी वाला निर्णय नहीं होगा। फिर भी, ब्याज दरों में संभावित वृद्धि से जुड़ी चिंताएं बनी हुई हैं। इसलिए, लोग इनसे जुड़े जोखिम पर ध्यान दे रहे हैं और टी-बिल्स (ट्रेजरी बिल) जैसे अल्पावधि विकल्पों में निवेश को इच्छुक हैं।
इक्विटी निवेशकों, पारिवारिक कार्यालयों और अन्य वित्तीय इकाइयों ने ट्रेजरी बिलों में अपने निवेश को अनुकूल बनाया है और मुख्य तौर पर उनका इस्तेमाल अपनी इक्विटी ट्रेडिंग गतिविधियों के लिए कॉलेटरल के तौर पर किया है।’
माना जा रहा है कि घरेलू दर-निर्धारण पैनल कम से कम अगले वर्ष के लिए रीपो दर को अपरिवर्तित बनाए रखेगा। मौजूदा समय में, छोटे निवेशकों के पास विभिन्न वित्तीय विकल्पों, जैसे केंद्र सरकार की प्रतिभूतियों, ट्रेजरी बिलों, राज्य सरकार की प्रतिभूतियों, और रिटेल डायरेक्ट पोर्टल के जरिये सॉवरिन गोल्ड बॉन्डों में निवेश का विकल्प है।
छोटे निवेशक राज्य और केंद्र सरकार की प्रतिभूतियों और सॉवरिन गोल्ड बॉन्डों के मुकाबले ट्रेजरी बिलों में लगातार ज्यादा निवेश कर रहे हैं। बॉन्ड बाजार के विश्लेषक एवं रॉकफोर्ट फिनकैप एलएलपी के संस्थापक एवं मैनेजिंग पार्टनर वेंकटकृष्णन श्रीनिवासन ने कहा, ‘एक साल तक के संदर्भ में, ट्रेजरी बिलों में निवेश उपयुक्त बन गया है, क्योंकि ये बैंकों के मुकाबले अच्छा प्रतिफल मुहैया करा रहे हैं।’16 अक्टूबर तक, ट्रेजरी बिलों का कुल खरीदारी में 67 प्रतिशत योगदान था।