Old vs New tax regime: असेसमेंट ईयर 2025-26 के लिए इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने का समय करीब है और इसी के साथ करोड़ों टैक्सपेयर्स के सामने यह अहम सवाल खड़ा है—पुरानी टैक्स व्यवस्था चुनें या नई?
इनकम टैक्स विभाग ने ई-फाइलिंग पोर्टल खोल दिया है और कंपनियां 15 जून तक फॉर्म 16 जारी कर देंगी। ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि टैक्सपेयर्स दोनों टैक्स सिस्टम को अच्छी तरह समझें ताकि सही विकल्प चुनकर टैक्स की बचत की जा सके और नियमों का पालन भी हो।
न्यू टैक्स रिजीम में इनकम टैक्स स्लैब
अगर आप न्यू टैक्स रिजीम (New Tax Regime) को चुनते हैं, तो आपकी सालाना आय के आधार पर टैक्स इस तरह लगेगा:
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नए टैक्स सिस्टम में मिलने वाली कुछ अहम छूटें:
ओल्ड टैक्स रिजीम में इनकम टैक्स की दरें:
ओल्ड टैक्स रिजीम क्यों हो सकती है फायदेमंद? समझिए आसान भाषा में
अगर आप टैक्स की पूरी प्लानिंग करना चाहते हैं और साथ ही साथ वेल्थ क्रिएशन पर भी ध्यान देना चाहते हैं, तो आपके लिए ओल्ड टैक्स रिजीम (Old Tax Regime) बेहतर विकल्प हो सकती है। इसके तहत कई तरह की छूट और कटौतियां मिलती हैं, जो आपकी टैक्स देनदारी को कम कर सकती हैं।
ओल्ड टैक्स रिजीम में उपलब्ध मुख्य कटौतियां:
क्या कहते हैं टैक्स एक्सपर्ट्स?
टैक्सबडी डॉट कॉम के फाउंडर Sujit Sudhakar Bangar कहते हैं, “अगर कोई टैक्स बचाने के साथ ही लंबी अवधि के लिए निवेश करना चाहता है, तो उसके लिए पुरानी टैक्स व्यवस्था बेहतर हो सकती है।”
क्लियरटैक्स की टैक्स एक्सपर्ट Shefali Mundra के मुताबिक, “पुरानी टैक्स व्यवस्था में मिलने वाली कटौतियों और छूटों को ध्यान में रखकर नेट टैक्सेबल इनकम का हिसाब लगाना चाहिए। इसके आधार पर नई व्यवस्था से तुलना करना आसान हो जाता है।”
बंगर यह भी कहते हैं कि अब टैक्सपेयर्स के पास ज्यादा विकल्प हैं। “अगर कोई टैक्स बचाने के लिए खर्च नहीं करना चाहता, तो वह नई टैक्स व्यवस्था को चुन सकता है।”
एक और अहम बात — लॉस (घाटा) को भी ध्यान में रखें
अगर आपको हाउस प्रॉपर्टी, कैपिटल गेन या बिजनेस से नुकसान हुआ है, तो उस नुकसान को भी ध्यान में रखना जरूरी है। खासकर पुरानी व्यवस्था में नुकसान को आगे के वर्षों में एडजस्ट करने की सुविधा मिलती है। लेकिन अगर आप नई व्यवस्था चुनते हैं, तो पिछली अवधि के घाटे को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता, जिससे भविष्य में टैक्स प्लानिंग पर असर पड़ सकता है।
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आईटीआर फाइल करने से पहले इन बातों का रखें ध्यान, वरना रिटर्न हो सकता है अमान्य
इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) भरने के बाद अगला जरूरी कदम होता है उसका वेरिफिकेशन। अगर तय समयसीमा में रिटर्न वेरिफाई नहीं किया गया, तो उसे अमान्य (Invalid Return) माना जाएगा। आयकर विभाग केवल उसी रिटर्न की प्रोसेसिंग करता है जिसे समय पर वेरिफाई किया गया हो।
टैक्समैन के वाइस प्रेसिडेंट Naveen Wadhwa ने कहा, “इनकम टैक्स रिटर्न की वेरिफिकेशन सिर्फ करदाता स्वयं या उनके अधिकृत व्यक्ति के जरिए ही की जा सकती है।”
पुरानी और नई टैक्स व्यवस्था—दोनों में अपनी कुल आय, कटौतियों और टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स की गणना करें। इसके लिए ऑनलाइन कैलकुलेटर या टैक्स एक्सपर्ट की मदद ली जा सकती है।
रिटर्न भरने से पहले पैन, आधार, फॉर्म-16, बैंक स्टेटमेंट, निवेश प्रमाण पत्र और अन्य जरूरी दस्तावेज तैयार रखें, ताकि रिटर्न भरने में कोई गलती न हो।
आयकर विभाग कुछ जानकारियां पहले से ही ITR फॉर्म में भरकर देता है, लेकिन सबमिट करने से पहले इन जानकारियों को ध्यान से जांचना जरूरी है।