भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) इस साल मई से रीपो दर में 225 आधार अंक का इजाफा कर चुका है और बॉन्ड प्रतिफल भी बढ़ गए हैं। 10 साल के बेंच मार्क बॉन्ड का प्रतिफल इस समय 7.29 फीसदी चल रहा है जो कुछ महीने पहले 6.37 फीसदी था।
फंड प्रबंधकों का कहना है कि अभी दरों में एक बार इजाफा और हो सकता है। ट्रस्ट म्युचुअल फंड में फंड प्रबंधक आनंद नेवतिया कहते हैं, ‘महंगाई अपना चरम छूकर नीचे आ चुकी है और वित्त वर्ष 2024 की पहली तिमाही तक खुदरा महंगाई आरबीआई के सहज दायरे के भीतर आ जाने का अनुमान है। इसलिए हमें लगता है कि दरों में इजाफे का सिलसिला खत्म होने को है। फरवरी 2023 में मौद्रिक नीति समिति दरों में 25 आधार अंक का इजाफा कर सकती है और उसके बाद वह शांत हो जाएगी।’
सतर्कता के साथ चलने वाले निवेशकों को डेट म्युचुअल फंड में शॉर्ट ड्यूरेशन फंड जरूर चुनने चाहिए। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की दी गई परिभाषा के अनुसार यह फंड 1 से 3 साल की अवधि वाले डेट और मनी मार्केट साधनों में निवेश करते हैं।
रीपो दर में 25 आधार अंक का एक और इजाफा करने के बाद आरबीआई शांत बैठ सकता है। इस समय आरबीआई सब तरह की राहत खत्म करता दिख रहा है। जब यह रुकेगा तब तटस्थ नजरिया अपना लेगा। उसके बाद यह अर्थव्यवस्था को विस्तार करने देगा। दर इजाफे में विराम काफी लंबा हो सकता है और निवेशकों को ऐसा पोर्टफोलियो तैयार करना चाहिए, जो इस विराम के अनुकूल हो।
एक्सीलेंट एप्सिलन मनी मार्ट के सह संस्थापक और मुख्य कार्य अधिकारी (सीईओ) अभिषेक देव बताते हैं, ‘शॉर्ट ड्यूरेशन फंड 1 से 3 साल की परिपक्वता अवधि वाली प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं। इन फंडों में उतार-चढ़ाव कुछ कम रहता है।’
इस समय ज्यादातर रिटर्न पोर्टफोलियो से होने वाले प्रतिफल से मिलने की संभावना है। निवरिया समझाते हैं, ‘शॉर्ट ड्यूरेशन फंडों को डेट बाजार में एक्रुअल और ब्याज दोनों से फायदा होता है। इन्हें इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि निवेशकों को बहुत लंबी अवधि के बॉन्ड में निवेश करने पर होने वाले अतिरिक्त जोखिम और उतार-चढ़ाव से कभी नहीं जूझना पड़ता। दरों में तेज गिरावट की छोटी सी अवधि को छोड़ दें तो वे ओपन एंडेड डेट योजनाओं से या तो ज्यादा प्रतिफल देते हैं या उनके बराबर रिटर्न रहता है।’
अर्थव्यवस्था अभी तो विस्तार चक्र के मध्य में है लेकिन कुछ समय बाद यह चक्र के अंतिम छोर की तरफ बढ़ेगी। उस समय या तो मांग बहुत बढ़ जाती है या पूंजी आवंटन की दिक्कत आती है। ऐसा होते ही केंद्रीय बैंक फिर सख्ती शुरू कर देगा। उस समय वह अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी करने के लिए रीपो दर में इजाफा करेगा। जब आरबीआई ऐसा करता है तब लंबी अवधि के फंड (जिनकी औसत अवधि 7 साल से अधिक होती है) पर दांव लगाने का सही समय होगा क्योंकि सख्ती के कारण अर्थव्यवस्था मैं सुस्ती आते ही केंद्रीय बैंक दरें घटाना शुरू कर देगा।
इस समय बांड प्रतिफल में भी उतार-चढ़ाव नहीं है। छोटी और मझोली अवधि के बॉन्डों की तुलना में लंबी अवधि के बॉन्डों का प्रतिफल ज्यादा आकर्षक नहीं है। निवेशकों को लंबी अवधि के फंडों में निवेश के कारण होने वाले जोखिम की भरपाई के लिए कुछ नहीं मिल रहा। मगर कुछ विशेषज्ञों को लगता है कि यह लंबी अवधि के फंडों में निवेश करने का माकूल वक्त है।
सिनर्जी कैपिटल सर्विसेज के प्रबंध निदेशक विक्रम दलाल समझाते हैं, ‘इस समय शॉर्ट ड्यूरेशन फंड कर कटौती से पहले 6.5 से 7 फीसदी तक प्रतिफल देंगे। अगले 6 से 12 महीने में ब्याज दर का चक्र उल्टा चलने लगेगा। छोटी अवधि के फंडों के मुकाबले लंबी अवधि के फंड का रिटर्न ज्यादा बढ़ेगा।’ वाइन फंडों में निवेश की ही सलाह देते हैं।
ऐसे में निवेशक क्या करें? उन्हें अपनी निवेश की अवधि के आसपास अवधि वाले फंड ही चुनने चाहिए। 3 साल या उससे कुछ ज्यादा अवधि वाले रूढ़िवादी निवेशकों को शॉर्ट ड्यूरेशन फंड में रकम लगानी चाहिए। देव की सलाह है, ‘जो निवेशक इंडेक्सेशन का फायदा उठाना चाहते हैं उन्हें 3 साल से ज्यादा समय के लिए निवेश करना चाहिए।’ डेट फंड यूनिट बेचने से होने वाले फायदे को दीर्घावधि पूंजीगत लाभ माना जाता है और उस पर इंडेक्सेशन के साथ 20 फीसदी कर ही लगता है। 7 साल या उससे भी ज्यादा समय वाले निवेशक लंबी अवधि के फंड में रकम लगा सकते हैं।