राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) ने मुंबई के अपर वर्ली (लोअर परेल) में वर्ल्ड वन परियोजना में तीन फ्लैट खरीदने वालों को 12 फीसदी ब्याज के साथ 33 करोड़ रुपये लौटाए जाने का आदेश दिया है। इन डेवलपरों को जरूरी वैधानिक मंजूरियों के बिना परियोजना का प्रचार करने और कब्जा देने में चार साल से अधिक देर करने का जिम्मेदार ठहराया गया था।
प्रॉपर्टी खरीदार पहले भी दिक्कतें झेलते थे मगर रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण अधिनियम 2016 (रेरा कानून) आने से इस क्षेत्र में पारदर्शिता एवं जवाबदेही काफी बढ़ गई है। यह कानून मकान खरीदारों और आवंटियों को कई अधिकार देता है।
रेरा कानून के तहत डेवलपरों को परियोजना के सभी चरणों का ब्योरा खरीदारों को देना पड़ता है। यह जानकारी बिक्री समझौते या आवंटन पत्र में स्पष्ट लिखी होनी चाहिए। लूथड़ा ऐंड लूथड़ा लॉ ऑफिसेज इंडिया के पार्टनर गिरीश रावत ने कहा, ‘परियोजना में देर होने पर आवंटी को रेरा कानून के तहत बताए गए उपायों का लाभ मिलता है।’
विशेषज्ञों ने कहा कि निर्माण की समय-सारणी नहीं बताई गई है तो खरीदार को बिल्डर-खरीदार समझौते (बीबीए) पर हस्ताक्षर नहीं करना चाहिए। माईमनीमंत्रा डॉट कॉम के संस्थापक एवं प्रबंध निदेशक राज खोसला ने कहा कि मकान खरीदार अपनी परियोजना के बारे में विस्तृत निर्माण कार्यक्रम की जानकारी रेरा की वेबसाइट से भी हासिल कर सकते हैं।
होम लोन लेने वाले ग्राहक पक्का करें कि निर्माण का कोई निश्चित चरण पूरा होने पर ही बैंक से रकम का एक हिस्सा रियल्टर को मिले। एएसएल पार्टनर्स के एसोसिएट पीसी रॉय ने कहा, ‘अगर किसी मकान खरीदार ने ऋण लिया है तो उसे त्रिपक्षीय समझौते और ऋण समझौते में इस बात की तहकीकात अच्छी तरह कर लेनी चाहिए कि ऋण का अवंटन निर्माण चरणों या निर्माण कार्यक्रम पर आधारित हो।’
रेरा अधिनियम की धारा 19 (3) के अनुसार खरीदार अपनी प्रॉपर्टी पर कब्जे का दावा करने के हकदार हैं। इसके अलावा बिल्डिंग एसोसिएशन प्रॉपर्टी पर कब्जे की तारीख से ही आम उपयोग वाले क्षेत्रों पर दावा करने के हकदार हैं। मकान खरीदारों को बिल्डर-खरीदार समझौते की शर्तों की जांच करनी चाहिए और पहले से ही मौजूद ऐसे किसी शर्त के लिए अपनी स्वीकृति नहीं देनी चाहिए जो उनके लिए आगे चलकर नुकसानदेह साबित हो सकती है।
अगर डेवलपर बिक्री समझौते की शर्तों का पालन नहीं करता है तो रेरा कानून की धारा 19 (4) के तहत आवंटियों को रकम वापस पाने का अधिकार दिया गया है। सार्थक एडवोकेट्स ऐंड सॉलीसिटर्स की पार्टनर मणि गुप्ता ने कहा, ‘रेरा कानून की धारा 18 के तहत आवंटी को अधिकार दिया गया है कि जितनी देर हुई है, उतने समय का लिए ब्याज के साथ वह पूरी रकम वापस मांग सकता है।’
एजेडबी ऐंड पार्टनर्स के सीनियर पार्टनर रवि भसीन के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय ने एक ग्राहक की शिकायत वाले मामले में फैसला सुनाया था कि किसी व्यक्ति को आवंटित प्रॉपर्टी पर कब्जे के लिए अनिश्चित काल तक इंतजार नहीं कराया जा सकता है। देर होने पर रिफंड के साथ उसे मुआवजा भी मिलेगा।
अगर खरीदार ने परियोजना की शुरूआती रूपरेखा में किसी भी बदलाव के लिए अपनी सहमति दी है तो भी देर होने पर उसे रिफंड मिलेगा। भसीन ने कहा, ‘अगर आवंटी को लगता है कि प्रस्तावित बदलावों से उस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा तो उसे रिफंड मांगने का अधिकार है, भले ही उसने आवंटन पत्र में अपनी सहमति क्यों न दी हो।’ ऐसा इसलिए है क्योंकि खरीदार ने बदलाव के नतीजे समझे बगैर रजामंदी दे दी थी। उसे नतीजे पहले से नहीं बताए गए थे।
अगर बिल्डर समय पर मकान का कब्जा देने में विफल रहता है तो खरीदार को उसे कानूनी नोटिस भेजना चाहिए। रॉय ने कहा कि यदि डेवलपर मकान का कब्जा देने या कानूनी नोटिस का जवाब देने में विफल रहता है तो खरीदार को ब्याज और मुआवजे सहित रिफंड हासिल के लिए रेरा कानून के तहत औपचारिक शिकायत दर्ज करनी चाहिए।
रेरा अधिनियम की धारा 19 (5) के तहत खरीदारों को अधिकार दिया गया है कि वे निर्माण के दौरान सभी महत्त्वपूर्ण दस्तावेजों और योजनाओं की जानकारी हासिल कर सकें। भसीन ने कहा, ‘इसका उद्देश्य खरीदार को परियोजना की स्थिति का विश्लेषण करने में सक्षम करना है। साथ ही वह यह भी तय कर सकता है कि कहीं प्रॉपर्टी खरीदने के उसके निर्णय पर कोई प्रभाव तो नहीं पड़ रहा।’ अगर डेवलपर नहीं मानता तो खरीदार धारा 35 के तहत हस्तक्षेप के लिए आवेदन कर सकते हैं।
प्रॉपर्टी में निवेश करने से पहले सभी आवश्यक दस्तावेजों की जांच कर लें। खोसला ने कहा, ‘ऐसा करने से यह सुनिश्चित होगा कि आप जो प्रॉपर्टी खरीदने जा रहे हैं वह वैध है और परियोजना के तहत सभी प्रमुख नियमों का पालन किया जा रहा है। अगर डेवलपर कोई आवश्यक दस्तावेज देने से इनकार करता है तो दिमाग में खतरे की घंटी बजनी चाहिए।’