संसद द्वारा पारित नए आयकर कानून को लागू करने से पहले सरकार कई लंबित कर रिफंड को चालू वित्त वर्ष में जारी करने की योजना बना रही है। इसमें एक दशक पुराने मामले भी शामिल हैं। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने इसकी जानकारी दी। इस तरह के करीब 1,000 करोड़ रुपये का रिफंड जारी किए जाने का अनुमान है। इनमें मुख्य रूप से कर मांग से संबंधित मामले हैं, जिनमें करदाताओं ने अपील प्राधिकारियों से अनुकूल आदेश प्राप्त कर लिए थे लेकिन प्रणालीगत मुद्दों के कारण रिफंड जारी नहीं किए गए थे।
यह आयकर विभाग की नई व्यवस्था में जाने से पहले की कवायद है ताकि आयकर अधिनियम, 2025 को लागू करने से पहले पुराने रिफंड के मामलों का निपटान किया जा सके। नया आयकर कानून 1 अप्रैल, 2026 से प्रभावी होगा।
उक्त सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘विधेयक में नई धाराएं शामिल की गई हैं और प्रणाली को उसके अनुसार व्यवस्थित किया जाना है। हम इन लंबित रिफंड का निपटारा करना चाहते हैं ताकि नए अधिनियम के लागू होने के बाद कोई समस्या न आए।’ उन्होंने कहा, ‘अगर पुराने रिफंड मामले लंबित रहेंगे तो नई प्रक्रियाओं में और उलझ सकते हैं। इनका निपटान करके हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि नया कानून सहज हो और पुरानी जटिलताओं से मुक्त हो।’
एक अन्य अधिकारी के अनुसार नए कानून के प्रावधानों के साथ आयकर विभाग की प्रणालियों को समरूप बनाने के लिए केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के अंतर्गत समूची प्रक्रिया को नए सिरे से दुरुस्त करना होगा, जिसमें रिफंड जारी करने के प्रोटोकॉल भी शामिल है।
उक्त अधिकारी ने कहा, ‘जिन रिफंड की बात की जा रही है, वे मुख्य रूप से ऐसे मामलों से संबंधित हैं जहां आयकर आयुक्त (अपील) या आयकर अपीली पंचाट द्वारा कर मांग कम कर दी गई है। भले ही ऐसे आदेश को विभाग ने आगे चुनौती दी हो मगर रिफंड राशि मौजूदा कानूनी प्रावधानों के अनुसार जारी की जाएगी।’
उन्होंने कहा, ‘ हम इस रिफंड का बड़ा हिस्सा पहले ही जारी कर चुके हैं और आने वाले महीनों में बकाया राशि भी चुका देंगे।’ इस रिफंड के कारण सरकार के राजस्व पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका के बारे में पूछे जाने पर अधिकारी ने कहा कि इन भुगतानों का पहले ही हिसाब लगाया जा चुका है और राजस्व संग्रह पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की आशंका नहीं है। इस तरह के लंबित रिफंड जारी करने की योजना के बारे में जानकारी के लिए वित्त मंत्रालय को ईमेल भेजा गया मगर खबर लिखे जाने तक जवाब नहीं आया।
ग्रांट थॉर्नटन में पार्टनर रियाज थिंगना ने कहा, ‘रिफंड जारी करने में तेजी लाने का कदम सरकार के घोषित उद्देश्यों के अनुरूप है। वित्त मंत्री ने 2025 के वित्त विधेयक को पेश करते समय अपने भाषण में इसे दोहराया भी था। इससे एक ओर करदाताओं के सामने आने वाली वित्तीय कठिनाइयों में काफी राहत मिलेगी वहीं दूसरी ओर विलंबित रिफंड के कारण होने वाले सरकारी खजाने पर ब्याज का बोझ कम हो जाएगा। हालांकि राजस्व प्रवाह पर कुछ असर पड़ सकता है लेकिन कर संग्रह के रुझान को देखते हुए इससे ज्यादा फर्क पड़ने की आशंका नहीं है।’
उन्होंने कहा कि चालू वित्त वर्ष में अभी तक रिफंड में लगभग 10 फीसदी की वृद्धि के कारण शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह में 3.95 फीसदी की गिरावट आई है। मगर इसकी एक वजह यह भी है कि आयकर रिटर्न दाखिल करने की विस्तारित समय सीमा 15 सितंबर तय की गई है। ऐसे में अगले महीने इसमें सुधार की उम्मीद है।