मौजूदा समय में 10 ग्राम सोना 73,958 रुपये पर बिक रहा है। पिछले साल 10% से ज्यादा बढ़ने के बाद इस साल भी सोने ने 13% की उछाल दर्ज की है। अमेरिकी डॉलर की मजबूती और ट्रेजरी यील्ड में बढ़ोतरी को इसकी मुख्य वजह माना जा रहा है। हालांकि, मांग भी कम नहीं रही। जनवरी से मार्च के बीच भारत में सोने की खपत 8% बढ़कर 136.6 टन हो गई, जिसमें निवेश और जेवर खरीदी दोनों शामिल हैं।
निवेश के नजरिए से देखें तो पिछले एक साल में सोने ने करीब 20% का रिटर्न दिया है जो अच्छा है। लेकिन अगर आप लंबी अवधि के निवेश की सोच रहे हैं तो सोना शायद उतना फायदेमंद ना हो। पिछले 10 सालों में इसने केवल 8% का ही रिटर्न दिया है, जबकि सेंसेक्स जैसे शेयर बाजारों ने इसी दौरान 12% से ज्यादा का रिटर्न दिया है.
वैल्यू रिसर्च ने बताया कि पिछले एक साल में सोने की कीमत में 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी क्यों हुई:
रुपये के कमजोर होने का असर:
सोने की चमक भले ही दुनियाभर में एक समान हो, लेकिन भारतीयों के लिए इसे खरीदना थोड़ा ज्यादा महंगा पड़ सकता है। इसकी वजह ये है कि वैश्विक बाजार में सोने का कारोबार अमेरिकी डॉलर (USD) में होता है, जबकि भारत में हम इसे रुपये (INR) में खरीदते हैं।
मगर समय के साथ रुपये का मूल्य डॉलर के मुकाबले कम होता जा रहा है। इसका सीधा मतलब ये है कि भले ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमत स्थिर रहे, कमजोर रुपये के चलते भारत में इसे रुपये में खरीदना ज्यादा महंगा हो जाता है।
वैल्यू रिसर्च के पंकज नाकाड़े ने एक नोट में बताया है कि पिछले 5 सालों में सोने ने डॉलर के हिसाब से 70% का रिटर्न दिया है, जबकि रुपये के हिसाब से यह 105% तक बढ़ गया है।
समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं। मान लीजिए एक साल पहले 1 अमेरिकी डॉलर 70 रुपये के बराबर था और 1 औंस सोने की कीमत 1,000 डॉलर थी। ऐसे में 1 औंस सोना खरीदने के लिए आपको 70,000 रुपये (1000 USD * 70 INR/USD) खर्च करने पड़ते थे।
लेकिन अगर अब रुपया कमजोर होकर 75 रुपये प्रति डॉलर हो जाता है, और सोने की अंतरराष्ट्रीय कीमत 1000 डॉलर ही रहती है, तो आपको उसी 1 औंस सोने के लिए 75,000 रुपये (1000 USD * 75 INR/USD) खर्च करने होंगे। यानी सोने की असली कीमत तो नहीं बदली, लेकिन कमजोर रुपये ने इसे आपके लिए रुपये में ज्यादा महंगा बना दिया।
ब्याज दरों में कटौती की आशंका:
ब्याज दरों का सोने की कीमतों पर सीधा असर पड़ता है। आसान शब्दों में समझें तो, ब्याज दरें वो चार्ज हैं जो लोन लेने पर चुकाने होते हैं और वही रिटर्न है जो बचत खातों पर मिलता है। आम तौर पर, जब ब्याज दरें ज्यादा होती हैं, तो सोना कम आकर्षक निवेश बन जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उस वक्त हाई ब्याज दर वाले निवेश विकल्प मौजूद होते हैं। लेकिन अभी उलटी स्थिति है।
अमेरिका का सेंट्रल बैंक, यूएस फेडरल रिजर्व, ब्याज दरों को घटाने की सोच रहा है। कम ब्याज दरों की इस उम्मीद से सोना ज्यादा आकर्षक निवेश बन सकता है। क्योंकि अब लोगों को अपने पैसों पर कम ब्याज मिलेगा। ऐसे में वे सोने जैसे दूसरे निवेशों में पैसा लगा सकते हैं। इससे सोने की मांग बढ़ सकती है और उसकी कीमत भी ऊपर चढ़ सकती है।
बुरे वक्त में सोने पर सबका भरोसा:
आर्थिक उथल-पुथल या शेयर बाजार में गिरावट के दौरान सोना हमेशा एक “सुरक्षित आश्रय” के रूप में जाना जाता रहा है। इसका मतलब है कि ऐसे समय में जब बाकी निवेश जोखिम भरे हो जाते हैं, सोने की कीमत या तो स्थिर रहती है या बढ़ भी सकती है। यही कारण है कि सोना निवेशकों के लिए एक भरोसेमंद विकल्प बन जाता है।
आज दुनिया भर में कई तरह के संघर्ष, जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी एशिया में तनाव, अनिश्चितता का माहौल बना रहे हैं। इस अनिश्चितता के चलते निवेशक सोने की ओर रुख कर रहे हैं। सदियों से अपनी स्थिरता बनाए रखने के कारण लोग सोने को भरोसेमंद विकल्प मानते आए हैं। यहां तक कि कुछ विकासशील देशों के केंद्रीय बैंक भी अपने सोने के भंडार को बढ़ा रहे हैं, जो अनिश्चित समय में सोने पर उनके भरोसे को दर्शाता है।
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (WGC) के अनुसार, भारत में भी यही ट्रेंड देखने को मिला है। जनवरी-मार्च तिमाही में भारतीय सोने की खपत 8% बढ़कर 136.6 टन हो गई, जिसमें निवेश की मांग में 19% और ज़ेवरों की मांग में 4% का इजाफा हुआ।
निवेशकों को क्या करना चाहिए?
सोने को लेकर वैल्यू रिसर्च की राय थोड़ी अलग है। वे सोने को एक ऐसा निवेश मानते हैं जो लंबे समय में ज्यादा फायदा नहीं देता। क्योंकि सोना खुद कोई चीज पैदा नहीं करता है, इसकी कीमत सिर्फ मार्केट डिमांड पर निर्भर करती है।
वैल्यू रिसर्च के सीईओ पंकज नाकाड़े का कहना है कि भले ही सोने का शॉर्ट टर्म रिटर्न अच्छा लग सकता है, लेकिन लंबे समय में इसने सालाना सिर्फ 7-8% का ही रिटर्न दिया है। वहीं दूसरी ओर, शेयर बाजार (एसएंडपी बीएसई 500) ने पिछले 10 सालों में करीब 14% का सालाना रिटर्न दिया है।
अब अगर आप फिर भी अपने पोर्टफोलियो में सोना शामिल करना चाहते हैं, तो वैल्यू रिसर्च सोने के गहनों या बिस्कुटों की जगह सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (एसजीबी) खरीदने की सलाह देता है. इसकी दो मुख्य वजह हैं:
1. भले ही एसजीबी और सोने के गहनों की कीमतें एक साथ ऊपर नीचे होती हैं, लेकिन एसजीबी पर आपको हर साल 2.5% का अतिरिक्त ब्याज भी मिलता है।
2. अगर आप एसजीबी को मैच्योरिटी तक होल्ड करते हैं, तो आपको मिलने वाले लाभ पर कोई टैक्स नहीं देना पड़ता।
अगर आपने बहुत बड़ी रकम निवेश की है, तो आप सोने और चांदी के फंडों में थोड़ा (लगभग 10%) पैसा लगा सकते हैं। हालांकि, इन फंडों से हर साल हाई रिटर्न की उम्मीद न करें। इनका असली फायदा यह है कि ये आपके पोर्टफोलियो में विविधता लाते हैं और मार्केट के उतार-चढ़ाव के दौरान स्थिरता प्रदान करते हैं।
बढ़ती कीमतें मांग को कम कर रही कम:
सोने की कीमतें पिछले सालों की तुलना में महज पांच महीनों में 60,000 रुपये प्रति 10 ग्राम से बढ़कर 70,000 रुपये प्रति 10 ग्राम हो गई हैं। इस अचानक वृद्धि ने उपभोक्ता मांग को कम कर दिया है, खासकर सोने के गहनों की, जो कुल खपत का 75% हिस्सा है। लोग इतनी ऊंची कीमतों पर खरीदारी करने से कतराते हैं, शायद कीमतों के स्थिर होने का इंतजार करते हैं। इसके अलावा, चालू अवधि (अप्रैल-मई) के दौरान कम शादियां भी सोने के गहनों की खरीद में कमी का कारण हैं, क्योंकि शादियां ऐसी खरीदारी का एक महत्वपूर्ण कारण होती हैं।
चुनाव आते ही सोने और नकदी की आवजाही पर कुछ पाबंदियां लग जाती हैं, जिससे लोगों को खरीदारी करने में दिक्कत आ जाती है। कुल मिलाकर सोने की मांग कम हो सकती है, लेकिन निवेश के लिहाज से सोने को सुरक्षित माना जाता है, इसलिए इसकी कीमतों में बढ़ोतरी का अंदेशा है। कुछ लोग इस बढ़ती कीमत का फायदा उठाकर सोने की छड़ें या सिक्के खरीद सकते हैं।
वहीं दूसरी तरफ कुछ जौहरी मौजूदा स्टॉक ऊंचे दामों पर बेचकर मुनाफा कमा सकते हैं, लेकिन उन्हें नकदी की कमी का सामना भी करना पड़ सकता है जिससे वो दोबारा सामान नहीं खरीद पाएंगे। विश्व स्वर्ण परिषद का मानना है कि चुनावों के दौरान सोने की मांग में खास उछाल आने की संभावना कम है। हालांकि, मई के मध्य में पड़ने वाले अक्षय तृतीया (सोने की खरीदारी के लिए शुभ दिन) के आसपास अगर कीमतें स्थिर रहीं, तो मांग में थोड़ा सुधार देखा जा सकता है।