सोना पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत के रूप में आगे बढ़ता है। ऐसे गहनों की कीमत अक्सर सिर्फ पैसों से नहीं, बल्कि भावनाओं से भी जुड़ी होती है। लेकिन कई बार सवाल उठता है कि विरासत में मिली ज्वेलरी पर टैक्स देना पड़ता है या नहीं। चार्टर्ड अकाउंटेंट्स के मुताबिक, इस पर तुरंत टैक्स देनदारी नहीं बनती। टैक्स का मामला तब आता है जब इसे बेचा जाता है।
इनकम टैक्स एक्ट के अनुसार, इनहेरिटेंस को इनकम नहीं माना जाता। यानी अगर आपको माता-पिता या दादा-दादी से सोने के गहने विरासत में मिले हैं, तो उस वक्त कोई टैक्स नहीं देना पड़ता। चार्टर्ड अकाउंटेंट रुचिता वाघानी ने हाल ही में एक सोशल मीडिया पोस्ट में यह नियम समझाया। उनके मुताबिक, सोना विरासत में मिलने पर इसे टैक्सेबल इनकम नहीं माना जाता।
टैक्स तब लगता है जब आप इन गहनों को बेचते हैं। बेचे गए गहनों से होने वाले मुनाफे को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन यानी LTCG में गिना जाता है। यहां तक कि अगर आपने सोना लंबे समय तक अपने पास रखा है, तब भी इसे लॉन्ग टर्म असेट माना जाएगा।
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रुचिता वाघानी बताती हैं कि जब भी विरासत में मिला सोना बेचा जाता है, तो उस पर LTCG के तहत टैक्स लगता है और इंडेक्सेशन का लाभ भी मिलता है।
टैक्स की गणना इस तरह होती है— बिक्री मूल्य में से (घटाकर) इंडेक्सेशन के बाद की कॉस्ट = लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन। इस पर 20 प्रतिशत टैक्स लगाया जाता है। इसके अलावा सरचार्ज और हेल्थ-एजुकेशन सेस भी जुड़ता है।
उदाहरण के तौर पर, अगर 2010 में विरासत में मिले 2 लाख रुपये के सोने को आज 6 लाख रुपये में बेचा जाए, तो टैक्स सीधे 6 लाख पर नहीं लगेगा। पहले कॉस्ट को कॉस्ट इंफ्लेशन इंडेक्स के आधार पर एडजस्ट किया जाएगा। टैक्स सिर्फ महंगाई एडजस्ट करने के बाद के मुनाफे पर ही लगेगा।
इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 54F के तहत, अगर गहनों की बिक्री से मिली रकम को किसी रिहायशी प्रॉपर्टी में लगाया जाए तो टैक्स से छूट मिल सकती है। कुछ शर्तें पूरी होने पर टैक्स का बोझ काफी कम या खत्म किया जा सकता है।