Conservative hybrid funds: जब शेयर बाजार में तेजी बरकरार रहती है तो कई निवेशक, खासकर कम जोखिम वाले निवेशक सुरक्षा चाहते हैं। ऐसे निवेशकों के लिए म्युचुअल फंडों की कंजर्वेटिव हाइब्रिड स्कीम एक सही विकल्प हो सकती है। ये एक ओपन एंडेड योजना होती है जो अपनी परिसंपत्तियों का 10 से 25 फीसदी रकम शेयरों में निवेश करती है और शेष रकम बॉन्ड में लगाती है।
इस प्रकार का पूंजी आवंटन निवेशकों को बॉन्ड के वर्चस्व वाले पोर्टफोलियो में कुछ हिस्सा शेयरों में निवेश का विकल्प देता है, इसलिए इसमें उतार-चढ़ाव की गुंजाइश अपेक्षाकृत कम रहती है। गेनिंग ग्राउंड इन्वेस्टमेंट के संस्थापक रवि कुमार टीवी बताते हैं, ‘डेट में अधिक निवेश से स्थिरता मिलती है जबकि शेयर में अधिक निवेश से रिटर्न को मजबूती मिलती है।’
आमतौर पर ये योजनाएं उच्च गुणवत्ता वाले बॉन्ड और सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करती हंम जबकि कुछ निवेश दीर्घकालिक बॉन्ड में किया जाता है, जिससे ब्याज दर का जोखिम कम हाेता है। अधिकतर मामलों में लॉर्जकैप वाले शेयरों में निवेश किया जाता है। अधिकतर फंड 20 से 25 फीसदी निवेश शेयरों में करते हैं मगर कुछ इसे कम कर 10 से 12 फीसदी ही निवेश करते हैं, इसकी वजह से रिटर्न में काफी विविधता हो सकती है।
ये योजनाएं मध्यम अवधि में सावधि जमा (एफडी) के मुकाबले अधिक रिटर्न चाहने वाले निवेशकों के लिए फायदेमंद हो सकती है। कोटक महिंद्रा असेट मैनेजमेंट कंपनी के फिक्स्ड इनकम प्रमुख अभिषेक बिसेन ने कहा, ‘थोड़ा जोखिम लेते हुए डेट फंडों के मुकाबले अधिक रिटर्न चाहने वाले निवेशक इन फंडों का रुख कर सकते हैं।’
बड़ौदा पीएनपी पारिबा म्युचुअल फंड के मुख्य निवेश अधिकारी (फिक्स्ड इनकम) प्रशांत पिंपले का कहना है, ‘ये फंड उन निवेशकों को अपना पोर्टफोलियो विविध बनाने का विकल्प देते हैं जो यह मानते हुए अपने निवेश पर अधिक रिटर्न हासिल करना चाहते हैं कि उनके पोर्टफोलियो से काफी हद तक निर्धारित आय होती रहे।’
इस योजना में डेट में अधिक निवेश होने के कारण ब्याज दरों में गिरावट की स्थिति में उच्च रिटर्न मिल सकता है। रवि कुमार कहते हैं, ‘ब्याज दरों में गिरावट की स्थिति में इन फंडों को फायदा मिलता है क्योंकि इससे बॉन्ड की कीमतें बढ़ती है और पूंजीगत लाभ होता है। अगर हमें लगता है कि अगले कुछ वर्षों के दौरान ब्याज दरों में गिरावट आने वाली है तो निवेशक इस फंड पर दांव लगा सकते हैं।’ मगर इन योजनाओं के निवेशकों को हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि कम उतार-चढ़ाव बरकरार रहे।
भले ही कम जोखिम वाला डेट पोर्टफोलियो तैयार करना अच्छी रणनीति मानी जाती है मगर तेजी भरे बाजार में उच्च रिटर्न चाहने वालों के लिए यह अच्छा सौदा नहीं होता है। बिसेन का कहना है, ‘जोखिम नहीं लेने की प्रकृति की वजह से इसमें शेयरों में सीमित निवेश होता है, जिससे बाजार में तेजी के दौरान रिटर्न भी सीमित होता है।’
इन फंडों में निवेश करने वालों को कुछ उतार-चढ़ाव के लिए भी तैयार रहना चाहिए। पिंपले ने कहा, ‘भले ही आवंटन के कारण इक्विटी फंड के मुकाबले कम रिटर्न की संभावना रहती है, लेकिन इसका कुछ हिस्सा शेयरों में लगा ही होता है इसलिए इनमें फिक्स्ड इनकम फंड के मुकाबले ज्यादा उतार-चढ़ाव होता है।’ बिसेन ने कहा कि 25 फीसदी शेयरों में आवंटन होने की वजह से बाजार में उठापटक के दौर में इनमें उतार-चढ़ाव बढ़ सकता है।
इन योजनाओं में होने वाले मुनाफे पर निवेशक के कर स्लैब के अनुरूप कर लगता है इसलिए उच्च आयकर वालों को यह रास नहीं आ सकता है। कुमार कहते हैं, ‘कम आयकर स्लैब वाले निवेशकों के लिए कंजर्वेटिव हाइब्रिड फंड निवेश का दमदार विकल्प हो सकते हैं। सावधि जमा के मुकाबले इसमें कर की ज्यादा बचत हो सकती है और निवेश के प्रबंधन के लिए यह बेहतर लचीलापन प्रदान करता है।’
इन योजनाओं में निवेशक एकमुश्त रकम का भी निवेश कर सकते हैं। पिंपले का कहना है, ‘शेयरों में निवेश के मद्देनजर इसमें कम से कम तीन वर्षों के लिए निवेश करना चाहिए।’