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लॉन्ग टर्म के लिहाज से यह उपयुक्त समय: गौतम छाओछरिया

भारत में यूबीएस के प्रबंध निदेशक एवं वैश्विक बाजार प्रमुख गौतम छाओछरिया ने कहा कि विकास की लंबी राह को देखते हुए यह उपयुक्त समय है।

Last Updated- July 07, 2024 | 10:28 PM IST
gautam chhaochharia

यूबीएस और क्रेडिट सुइस के बीच विलय से भारत में स्विस बैंकिंग योजनाओं को बढ़ावा मिला है। भारत में यूबीएस के प्रबंध निदेशक एवं वैश्विक बाजार प्रमुख गौतम छाओछरिया ने समी मोडक और सुंदर सेतुरामन के साथ इंटरव्यू में कहा कि विकास की लंबी राह को देखते हुए यह उपयुक्त समय है। उन्होंने बाजारों और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले कारकों पर चर्चा की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:

-वैश्विक रूप से बाजारों ने इस साल अच्छा प्रदर्शन किया। क्या ऐसी कोई वैश्विक समस्या है जो रफ्तार प्रभावित कर सकती है?

हालांकि बाजारों में अच्छी तेजी आई है, लेकिन अनिश्चितता बढ़ी है और आगे भी बनी रह सकती है। भूराजनीतिक तनाव ने हाल के वर्षों में इस अनिश्चितता को बढ़ाया है। हालांकि इस भूराजनीतिक दबाव के बावजूद हमने वैश्विक वृद्धि में बड़ी कमजोरी या बाजार पर लगातार दबाव दर्ज नहीं किया है।

अमेरिका में बैंकों के बंद होने की आशंका है, चीन में मंदी है और इसके संपत्ति चक्र को लेकर चिंताएं हैं। इसलिए, जब भारतीय संदर्भ सहित व्यापक तस्वीर पर विचार किया जाता है, तो वैश्विक विकास में बड़ी मंदी का जोखिम होता है।

वैश्विक भूराजनीतिक उतार-चढ़ाव के लिहाज से बाजार मजबूत कैसे बने हुए हैं?

इस मजबूती के दो मुख्य कारण हैं। ऐतिहासिक रूप से भूराजनीतिक उतार-चढ़ाव मुख्य तौर पर तेल कीमतों और वित्तीय व्यवस्था के जरिये देखा जाता है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर तेल की कीमतों के झटकों का मौजूदा प्रभाव 20 साल पहले की तुलना में बहुत कम है। वित्तीय व्यवस्था के संदर्भ में रूस और यूक्रेन जैसे देशों का प्रभाव काफी सीमित है। हालांकि, ज्यादा भारांक या वैश्विक वित्तीय व्यवस्था से मजबूत जुड़ाव वाले देश में भूराजनीतिक घटनाक्रम का संभावित रूप से अधिक गहरा प्रभाव हो सकता है।

भारतीय बाजार की बात करें तो क्या बजट में देखने लायक कुछ खास है?

एक पहलू नीतिगत निरंतरता है, खास तौर पर राजकोषीय अनुशासन और पूंजीगत व्यय पर ध्यान केंद्रित करना। चुनाव नतीजों के बाद निवेशकों के बीच सरकार द्वारा अधिक समाजवादी नीतियों की ओर संभावित बदलाव के बारे में काफी बहस हो रही है। मुख्य कारक सामाजिक योजनाओं पर खर्च में वृद्धि पर सिर्फ नजर रखना नहीं बल्कि इस वृद्धि की मात्रा का भी आकलन करना है। सामाजिक खर्च के प्रति दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसका उपयोग आर्थिक विकास और परिसंपत्ति सृजन को बढ़ावा देने के लिए उत्पादक रूप से किया जा सकता है।

मौजूदा हालात में भारत पर चर्चा की जाए तो वैश्विक फंडों का नजरिया कैसा है?

उभरते बाजारों में भारत की ओवरवेट स्थिति सबसे कम में से एक है। हालांकि, विदेशी फंड अभी भी ओवरवेट हैं, जो इसकी दीर्घावधि क्षमता पर सकारात्मक दृष्टिकोण का संकेत देता है। ऐतिहासिक रूप से इस अपेक्षाकृत कम ओवरवेट स्थिति का एक कारण महंगा मूल्यांकन है। दूसरी ओर, चीन तुलनात्मक रूप से सस्ता हो गया है, जिससे रिकवरी की उम्मीदें बढ़ गई हैं।

वैश्विक फंडों के लिए अनिश्चितता इसे लेकर है कि क्या भारत का भारांक अभी बढ़ाया जाए या संभावित मूल्यांकन सुधारों की प्रतीक्षा की जाए, विशेष रूप से अगले 6 से 12 महीनों में अन्य बाजारों में बेहतर प्रदर्शन के अधिक आशाजनक अवसरों की उपलब्धता को देखते हुए। निवेशक यह समझने के लिए उत्सुक हैं कि भारत की आय वृद्धि कैसी रहेगी। मूल्यांकन मल्टीपल से संकेत मिलता है कि आय वृद्धि मौजूदा बाजार अनुमानों के पार जा सकती है। इसके बावजूद, भारत की आय वृद्धि निकट भविष्य में चीन सहित अन्य बाजारों के बराबर बनी हुई है।

ऐसे अन्य क्षेत्र या थीम कौन से हैं, जिन पर आप उत्साहित बने हुए हैं?

हम व्यवसाय-से-ग्राहक क्षेत्र की तुलना में व्यवसाय-से-व्यवसाय क्षेत्र को अधिक तरजीह देते हैं, जिसमें यूटीलिटीज और उद्योग के चुनिंदा क्षेत्र शामिल हैं। हालांकि मूल्यांकन आकर्षक नहीं लग सकता है, लेकिन ग्रोथ डेल्टा मायने रखता है। हम उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जिनके बाजार अनुमानों से अधिक विकास स्तर बनाए रखने की उम्मीद है। कई मामलों में, वैल्यूएशन मल्टीपल काफी ऊंचे हैं।

इससे पता चलता है कि बाजार एक बहुत मजबूत पूंजीगत व्यय चक्र में मूल्य निर्धारण कर रहे हैं। अगर शेयर 30-50 गुना या उससे भी ज्यादा पीई पर कारोबार कर रहे हैं, तो बाजार सिर्फ 15-20 प्रतिशत नहीं, बल्कि लंबी अवधि में ज्यादा आय वृद्धि की उम्मीद करता है। यह परिदृश्य एक मजबूत पूंजीगत व्यय चक्र के दौरान हो सकता है।

ह्युंडै के बाद क्या और बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में सूचीबद्धता पर विचार करेंगी?

जब मूल्यांकन अधिक और आकर्षक होता है, तो इसका मतलब है कि सस्ती पूंजी मिल सकती है। सभी व्यवसाय सस्ती पूंजी पसंद करते हैं। हालांकि यह निर्णय विशेष परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है। इसलिए, यह समझना महत्वपूर्ण है कि क्या इस तरह के कदम से भविष्य के विकास के अवसरों से समझौता हो सकता है। अन्य बड़ा रुझान है निजी बाजारों का विस्तार। जैसे ही भारतीय बाजारों का दायरा बढ़ेगा, यह बड़ी निजी इक्विटी कंपनियों (सॉवरिन फंड समेत) को लगातार आकर्षित करेगा।

भारत के लिए यूबीएस की योजनाएं क्या हैं?

हमें अपने लक्ष्य के अनुसार पूंजी पर्याप्तता जरूरतें पूरी करनी चाहिए। हालांकि बढ़ने और निवेश करने के लिहाज से हमारे पास पर्याप्त संभावनाएं मौजूद हैं। भारत में पूंजी व्यवसाय बढ़ाने के लिए हमारी क्षमता में बाधक नहीं बनेगी। इक्विटी एवं शोध के संदर्भ में हमारी मजबूत मौजूदगी पहले से ही है।

First Published - July 7, 2024 | 10:28 PM IST

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