निप्पॉन इंडिया म्युचुअल फंड के डिप्टी सीआईओ (इक्विटी निवेश) शैलेश राज भान ने बिजनेस स्टैंडर्ड को दिए साक्षात्कार में कहा कि सीधे या म्युचुअल फंड, पीएमएस के जरिये घरेलू बचत का इक्विटी के रूप में वित्तीयकरण अप्रत्याशित रहा है। इससे वैश्विक जोखिम के दौरान मजबूत सहारा मिला है। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश..
भारतीय बाजारों की सुदृढ़ता काफी असाधारण रही है क्योंकि वैश्विक स्तर पर भारी उठा-पटक के बीच उसने रिकॉर्ड स्तर को छू लिया। वैश्विक स्तर पर कम जोखिम के चरण की ओर बढ़ने से वैश्विक व उभरते बाजारों की इक्विटी से तेजी से निकासी हुई। भारतीय बाजारों ने भी विदेशी निवेशकों की तरफ से तेज विकवाली के चरण का सामना किया और मध्य 2022 में कुछ कमजोरी के साथ यह नई ऊंचाई पर फिर से पहुंच गया। सीधे या म्युचुअल फंड, पीएमएस के जरिये घरेलू बचत के वित्तीयकरण ने वैश्विक स्तर पर कम जोखिम वाले गंतव्यों में निवेश के दौरान मजबूत सहारा मिला।
चूंकि हम 2023 में प्रवेश कर रहे हैं, लिहाजा हमने एक ऐसा माहौल देखा जहां महंगाई व वृद्धि की रफ्तार घट रही है। भारत शायद एक बार फिर सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था के तौर पर उभरेगा। अल्पावधि की वैश्विक अनिश्चिताएं जल्द दूर शायद नहीं होंगी, इसलिए अल्पावधि में नरम रिटर्न रहेगा। आय कुछ समय तक चुनौतीपूर्ण रहेगी क्योंकि वैश्विक रफ्तार कमजोर हो रही है और कोविड के बाद स्थानीय आर्थिक स्थितियां सामान्य ट्रेंड पर लौट सकती है।
अंतरराष्ट्रीय निवेशको प्रिज्म ऑफ डाइवर्सिफिकेशन व सापेक्षिक तौर पर अदुभत माना जाना चाहिए। देसी निवेशकों ने पिछले कुछ वर्षों में शानदार रिटर्न पाया है और इसे आसानी से समझा जा सकता है कि निवेशकों ने आवंटन में कुछ बदलाव व भागीदारी के मोड में परिवर्तन किया होगा। उदाहरण के लिए पिछले 11 महीने में एसआईपी के जरिए निवेश 30 फीसदी से ज्यादा बढ़ा और इसके 6 करोड़ खाते चालू हैं। हमारी राय में कई दिलचस्प थीम हैं, जिसे देसी वृद्धि की संभावना से लाभ मिल सकता है। बैंक, विनिर्माण आदि।
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देसी वृद्धि को देखते हुए फंडामेंटल अन्य के मुकाबले बेहतर स्थिति में है। भारत केंद्रित थीम मसलन बैंकिंग, गैर-उधारी वाले फाइनैशियल्स, ट्रैवल ऐंड टूरिज्म, इंजीनियंरिंग आदि आकर्षक दिख रहे हैं। इसके साथ ही कुछ बदलाव हेल्थकेयर, स्टेपल्स और आईटी में हो सकते हैं।
मुझे लगता है निवेश से पहले हमारे लिए अहम यह है कि मौजूदा हालात से हमें ध्यान नहीं हटाना चाहिए और जोखिम लेने की अपनी ताकत व निवेशित अवधि के हिसाब से हर परिसंपत्ति वर्ग में जोखिम-प्रतिफल की संभावना देखनी चाहिए। अपेक्षाकृत उच्च ब्याज दर और वैश्विक वृद्धि की रफ्तार में नरमी को देखते हुए दोनों परिसंपत्ति वर्गों में जोखिम-प्रतिफल समान रूप से संतुलित दिख रहा है। बाजार में गिरावट लंबी अवधि के निवेशकों के लिए मौके सृजित कर सकता है।