इन दिनों कमल कुमार जालान सिक्योरिटीज के दक्षिण मुंबई स्थिति ऑफिस में टेलीफोन यदकदा ही घनघनाता है।
पिछले बजट में सिक्योरिटीज ट्रांजेक्शन कर के ढांचे में परिवर्तन किए जाने के बाद जालान की तरह तमाम ऑर्बिट्रेजर कारोबार से लगभग बाहर हो गए हैं। बाद में बाजार में छाई मंदी ने इनकी हालत और खराब कर दी।
अच्छे दिनों में ऑर्बिट्रेजर विक्रम पुरोहित आसानी से प्रतिदिन 5,000 रुपये कमा लिया करते थे। अब वे कहते हैं कि बाजार में उनके लिए कुछ भी नहीं बचा है। वे पूरे दिन सिर्फ चायपान और धूम्रपान ही करते रहते हैं। मुंबई के घाटकोपर स्थित मनाली ट्रेडिंग के निदेशक शैलेश जस्सानी का कहना है कि शेयर बाजार में कारोबार 50 फीसदी गिरा है। इससे छोटे शेयर दलालों की आय में काफी गिरावट आई है।
जस्सानी बताते हैं कि उनके क्लाइंट अपने शेयरों का वेल्यूएशन घटने से काफी परेशान हो रहे हैं। वेल्यूएशन बढ़ने की कोई संभावना भी नहीं दिख रही है। बाजार गिरने की शुरुआत में शेयर खरीदने वाले क्लाइंटों को इस बात का अंदेशा नहीं था कि बाजार इतना नीचे आ जाएगा। अधिकांश ब्रोकरेज फर्म यह मानती हैं कि उनकी परेशानियों के निकट भविष्य में खत्म होने के कोई आसार नहीं हैं क्योंकि बाजार से किसी तरह के सकारात्मक संदेश की उम्मीद अभी तो बिलकुल भी नहीं है।
दिल्ली स्थित केएलजी शेयर ब्रोकर फर्म ने फंड जुटाने के लिए अपनी नान बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी केएलजी कैपिटल सर्विसेज को अवैटा प्रॉपर्टीज के हाथों बेच डाला। निखिल गांधी की अवैटा प्रॉपर्टीज ने बाजार से कंपनी के 20 फीसदी शेयर और खरीदने के लिए 37.5 रुपये प्रति शेयर का ऑफर दिया है। बताया जा रहा है कि केएलजी कैपिटल सर्विसेज को मार्च 2008 में खत्म हुई तिमाही में 4 लाख रुपये का नुकसान हुआ है।
केएलजी अच्छा खरीददार मिलने पर अपनी ब्रोकिंग फर्म को भी बेचना चाहती है। केएलजी के एक प्रवक्ता ने बताया कि अब छोटे ब्रोकरों के लिए कैपिटल मार्केट लाभ का सौदा नहीं रहा। देश में 90 फीसदी ब्रोकर छोटे पैमाने पर धंधा करते हैं। नेशनल शेयर बाजार (एनएसई) ने ब्रोकरों के लिए 1 करोड़ रुपये की संपत्ति होना अनिवार्य कर रखा है। इसमें 80 लाख रुपये एनएसई में बतौर डिपाजिट रखे जाते हैं।
कुल संपत्ति का यह आंकड़ा वायदा एवं विकल्प, कैश मार्केट, डेट मार्केट आदि क्षेत्रों में अलग-अलग होता है। प्रवक्ता के अनुसार उनके बोल्ट ऑपरेटर भी अधीर हो रहे हैं, क्योंकि उनका फोन अब पहले की तरह नहीं घनघनाता। नतीजतन वे चाय की चुस्कियां लेकर समय गुजार रहे हैं। यह हालात तो 2003 के पहले भी नहीं थे जब सेंसेक्स 3,000 के स्तर पर सुस्ता रहा था।
एंजल ब्रोकिंग के प्रबंध निदेशक दिनेश ठक्कर ने बताया कि बड़े ब्रोकर भी फंड जुटाने के लिए बिकवाली कर रहे हैं। एक बड़ी रिटेल ब्रोकिंग चेन इस साल के अंत तक 400 करोड़ रुपये जुटाने के लिए अपनी प्राइवेट इक्विटी बेचने जा रही है। यह सौदा अगले 6 से 8 माह में हो सकता है। ठक्कर इस बात से सहमत हैं कि बाजार में आई मंदी से ब्रोकरेज कारोबार प्रभावित हुआ है। लेकिन वे अब वे रिटेल ब्रोकिंग से हटकर दूसरे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं।
एक अन्य प्रमुख ब्रोकिंग फर्म मोतीलाल ओसवाल भी अपनी वर्किंग कैपिटल की जरूरत को पूरा करने के लिए 800 रुपये उगाहेगी। इस फर्म के मार्फत कई विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) कारोबार करते हैं, लिहाजा वह अच्छा ब्रोकरेज कमीशन कमा लेती है। 2008 की शुरुआत से अब तक एफआईआई 5 अरब डॉलर की बिकवाली कर चुके हैं। इसके बाद भी एफआईआई क्लाइंटों वाली संस्थागत ब्रोकर फर्मों के लिए ब्रोकरेज कमीशन कमाना बिलकुल बंद नहीं हुआ है।