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बाजार ने की जोरदार वापसी

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 14, 2022 | 6:33 PM IST

रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले और अमेरिका की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों के असर का आकलन करने के बाद शेयर बाजार ने जारदार वापसी की। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने रूस की कार्रवाई को पूरी तरह से हमला बताते हुए रूस पर सख्त प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है, जिससे निवेशकों का मनोबल बढ़ा है। इसके साथ ही तेल और अन्य जिसों के दाम में थोड़ी नरमी से भी निवेशकों की घबराहट थोड़ी कम हुई है।
बेंचमार्क सेंसेक्स 1,328 अंक या 2.4 फीसदी की तेजी के साथ 55,858 पर बंद हुआ। निफ्टी भी 410 अंक या 2.5 फीसदी बढ़त के साथ 16,658 पर बंद हुआ। गुरुवार को दोनों सूचकांकों में करीब 5 फीसदी की बड़ी गिरावट आई थी। बाजार में उतार-चढ़ाव का आकलन करने वाला वीआईएक्स सूचकांक भी 16 फीसदी कम हुआ है जो गुरुवार को 30 फीसदी से ज्यादा उछल गया था।
अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने रूस के तेल निर्यात को प्रतिबंध से बाहर रखा है। इसके साथ ही स्विफ्ट वैश्विक भुगतान नेटवर्क के एक्सेस को भी अवरूद्घ करने से बचा गया है।
अल्फानीति फिनटेक के सह-संस्थापक यूआर भट्ट ने कहा, ‘अधिकतर तेल निर्यात स्विफ्ट प्रोटोकॉल का हिस्सा हैं। ऐसे में रूस को इससे बाहर नहीं रखने के निर्णय से निवेशकों को बड़ी राहत मिली है। रूस और यूक्रेन तनाव का असर बाजार में दिख चुका है। तेल के दाम में भी शायद उच्च स्तर पर पहुंच गए हैं। एक और चिंता आगे गंभीर प्रतिबंध लगाए जाने की है।’
अवेंडस कैपिटल अल्टरनेट स्ट्रैटजीज के मुख्य कार्याधिकारी एंड्रयू हॉलैंड ने कहा, ‘प्रतिबंध उतने सख्त नहीं हैं जितना सोचा जा रहा था। और स्विफ्ट को इसके दायरे से बाहर रखने से काफी हद तक चिंता दूर हुई है। उम्मीद की जा रही है यूक्रेन विवाद का समाधान हफ्ते भर के अंदर हो जाएगा और यह ज्यादा लंबा नहीं खिंचेगा।’
कुछ लोगों का मानना है कि आज आई तेजी पिछले सात दिनों में आई गिरावट के बाद मुख्य रूप से तकनीकी सुधार है। विशेषज्ञों का कहना है कि रूस-यूक्रेन युद्घ को लेकर अनिश्चितता से मुद्रास्फीति और तेल के दाम बढ़ रहे हैं और फेडरल रिजर्व के रुख से भी बाजार पर असर पड़ सकता है।
जूलियस बेयर के कार्यकारी निदेशक नितिन रहेजा ने कहा, ‘बाजार में आई तेजी गुरुवार को तेज गिरावट के बाद प्रतिक्रिया के कारण आई है। निवेशकों को डर था कि नाटो और रूस के बीच विवाद गहरा सकता है। हालांकि अब स्पष्ट है कि नाटो देश लड़ाई में सीधे तौर पर शामिल नहीं होंगे और केवल रूस पर प्रतिबंध जैसे उपाय करेंगे। भारत के दृष्टिकोण से देखें तो भू-राजनीतिक संकट से तेल और जिंसों के दाम में तेजी बड़ा जोखिम है। अगर कच्चा तेल 100 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर बना रहता हे तो इससे अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है और मुद्रास्फीति भी बढ़ सकती है, जिसका असर खलू खाते के घाटे पर पड़ेगा।’
ताजा भू-राजनीतिक घटनाक्रम का असर इस साल पहले ही शेयर बाजार में दिख चुुका है। घरेलू बेंचमार्क सूचकांक इस साल अपने उच्च स्तर से करीब 10 फीसदी नीचे आ चुका है।

First Published : February 25, 2022 | 10:58 PM IST