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शिपयार्ड-लाभ पर दबाव

Last Updated- December 07, 2022 | 6:02 AM IST

भारती शिपयार्ड और एबीजी शिपयार्ड जो छोटे सूखे बल्क कैरियर का निर्माण करती है,के पास इससमय हैंडीसाइड बल्कर और सपोर्ट वेसेल्स के अच्छे खासे ऑर्डर हैं।


हालांकि स्टील की ऊंची कीमतों की वजह से इस कंपनी के लाभ में इस साल कमी देखी जा सकती है। गौरतलब है कि स्टील की कीमतों में साल की शुरुआत से 30 फीसदी तक की बढ़ोत्तरी हो चुकी है।

इसका कुछ प्रभाव भारती शिपयार्ड के वित्त्तीय वर्ष 2008 के परिणामों में भी दिखा जबकि 699 करोड़ की इस कंपनी के ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन में 3.3 फीसदी की कमी देखी गई और उसका ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन 26.9 फीसदी केस्तर पर आ गया। इसके अतिरिक्त सरकार इन कंपनियों को आर्थिक मद्द उपलब्ध कराना जारी रखेगी ताकि ये कंपनियां निर्यात के लिए और घरेलू बाजार के लिए भी 60 फिट के शिप का निर्माण कर सके,में भी संदेह दिखता है।

पिछले साल एबीजी शिपयार्ड को भारत सरकार से 81.6 करोड़ की सब्सिडी मिली थी। कंपनी का टॉपलाइन ग्रोथ भी 8.4 फीसदी बढ़कर 965 करोड़ पर पहुंच गई। एबीजी और भारती दोनों जहाज कंपनियां यरोप की जहाज और तेल कंपनियों को इन शिप का निर्यात करती हैं। इन कंपनियों की ऑर्डर बुक काफी मजबूत है। भारती के पास इससमय करीब 4,635 करोड़ रुपयों का बैकलॉग है जबकि पिछले छ: महीनों से कंपनी को कोई नया ऑर्डर नहीं मिला है।

कंपनी के पास वर्तमान ऑर्डर उसकी वित्त्तीय वर्ष 2008 में बिक्री का 5.6 गुना है। कंपनी रत्नागिरी,गोवा और कोलकाता में अपनी पूरी क्षमता की सेवाएं प्रदान करती है। कंपनी अब नए ऑर्डर की ओर गौर कर सकती है क्योंकि कंपनी का दाभोल प्लांट शुरु हो चुका है। लेकिन यह प्लांट 2010 तक ही अपनी पूरी क्षमता में चालू हो पाएगा। जबकि एबीजी केपास 8,300 करोड़ के जबरदस्त ऑर्डर है जो कि अगले चार-पांच साल के पर्याप्त होगा।

कंपनी की वित्त्तीय वर्ष 2008 में प्रति शेयर आय 31.55 रुपये रही जिसे 2009 तक 56 रुपये के आसपास तक पहुंच जाना चाहिए। मौजूदा बाजार मूल्य 408 रुपये पर कंपनी के स्टॉक का कारोबार 7.3 गुना केस्तर पर हो रहा है। जबकि दूसरी ओर 430 रुपये पर भारती केस्टॉक का कारोबार वित्त्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 11 गुना के स्तर पर हो रहा है।

एशियाई बाजार-पूंजी निकासी

पिछले चार महीनों से लगातार जारी पूंजी के निकास की स्थिति से रूबरु एशियाई बाजार को इस हफ्ते भी राहत नहीं मिली। 11,जून को समाप्त हुए इस हफ्ते में एशियाई बाजारों से 56 अरब के करीब पूंजी का निष्कासन हुआ।

यह पिछले दो हफ्तों के पूंजी निष्कासन 10 अरब से भी ज्यादा है। इसीतरह ग्लोबल इमर्जिंग मार्केट फंड से पूंजी के निष्कासन में तेजी देखी गई। यह पिछले तीन महीनों में सर्वाधिक रहा। फंड मैनेजर एशियाई बाजरों से अपनी पूंजी का निष्कासन क्यों कर रहें हैं। इसके भी कुछ स्पष्ट वजहें हैं। पहली वजह है कि इन देशों की अर्थव्यवस्था पर तेल की बढ़ती कीमतों का बहुत प्रभाव पड़ा है। अगर भारत की बात की जाए तो तेल की बढ़ती कीमतों की वजह से यहां महंगाई में भी तेजी आई है।

भारत में महंगाई आठ फीसदी के स्तर से भी ऊपर पहुंच गई है। इसका असर यह भी पड़ेगा कि आगे ब्याज दरों में बढ़ोतरी देखी जा सकेगी। फंड मैनेजरों को चिंता है कि इन हालातों की वजह से रिटेल और कारपोरेट दोनों निवेशक उधार लेने में कतरा रहें हैं। रिटेल क्रेडिट के भी सिंगल डिजिट में ही बढ़ने के आसार हैं। जब तक तेल के दामों में कोई सुधार नहीं होता है तब तक फंड मैनेजर एशियाई बाजारों से दूरी बनाए रखेंगे।

First Published - June 17, 2008 | 10:53 PM IST

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